लोगों की राय

ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

248 पाठक हैं

संभोग से समाधि की ओर...


तो पश्चिम की अनेक हुकूमतें घबरा गईं हैं इस बात से कि यह रोग अगर बढ़ता चला गया तो उनकी संख्या का क्या होगा। हम यहां घबरा रहे हैं कि हमारी संख्या न बढ़ जाए। पश्चिम के मुल्क घबरा रहे हैं कि उनकी संख्या कहीं कम न हो जाए! क्योंकि स्त्रियों को अगर इतने तीव रूप से यह भाव पैदा हो जाए की मां बनने से सेक्स का रस कम हो जाता है और वह मां न बनना चाहें तो क्या किया जा सकता है! कोई कानूनी जबर्दस्ती की जा सकती है?
किसी को संतति के नियमन के लिए तो कानूनी जबर्दस्ती भी की जा सकती है कि हम जबर्दस्ती बच्चे नहीं होंने देंगे। लेकिन किसी खी को मजबूर नहीं किया जा सकता कि कच्चे पैदा करने ही पड़ेंगे।

पश्चिम के सामने हमसे बड़ा सवाल है। हमारा सवाल उतना बड़ा नहीं है। हम संख्या को रोक सकते हैं जबर्दस्ती, कानूनन लेकिन संख्या को कानूनन बढ़ाने का कोई भी रास्ता नहीं है। किसी व्यक्ति को जबर्दस्ती नहीं की जा सकती कि तुम बच्चे पैदा करो।
और आज से दो सौ साल के भीतर पश्चिम के सामने यह प्रश्न बहुत भारी हो जाएगा, क्योंकि पूरब की संख्या बढ़ती चली जाएगी, वह सारी दुनिया पर छा सकती है। और पश्चिम की संख्या क्षीण होती जा सकती है। स्त्री को मां बनने के लिए उन्हें फिर से राजी करना पड़ेगा।

और उनके कुछ मनोवैज्ञानिकों ने यह सलाह देनी शुरू की है कि बाल विवाह शुरू कर दें, अन्यथा खतरा है। क्योंकि स्त्री होश में आ जाती है तो वह मां नहीं बनना चाहती। उसे सेक्स का रस लेने में ज्यादा ठीक मालूम पड़ता है। इसलिए बचपन में शादी कर दो। उसे पता ही न चले कि वह कब मां बन गई।

पूरब में जो बाल-विवाह चलता था, उसके एक कारणों मे यह भी था, स्त्री जितनी युवा हो जाएगी और जितनी समझदार हो जाएगी और सेक्स का जैसे रस लेने लगेगी, वैसे वह मां नहीं बनना चाहेगी। हालांकि उसे कुछ पता नहीं कि मां बनने से क्या मिलेगा? यह तो मां बनने सै ही पता चल सकता है। इससे पहले कोई उपाय नहीं है।
स्त्री तृप्त होने लगी है मां बनकर-क्यों? उसने एक आध्यात्मिक तल पर सेक्स का अनुभव कर लिया बच्चे के साथ। और इसीलिए मां और बेटे के पास एक आत्मीयता है। मां अपने प्राण दे सकती है बेटे के लिए, मां बेटे के प्राण लेने की कल्पना भी नहीं कर सकती है।
पत्नी पति के प्राण ले सकती है। लिए हैं अनेक बार। और अगर नहीं भी लेगी तो पूरी जिंदगी में प्राण लेने की हालत पैदा कर देगी। लेकिन बेटे के लिए कल्पना भी नहीं कर सकती। वह संबंध बहुत गहरा है।

और मैं आपसे यह भी कह दूं कि उससे अपने पति का संबंध भी इतना गहरा हो जाता है-तो पति भी उसे बेटे की तरह दिखाई पड़ने लगता है, पति की तरह नहीं। यहां इतनी स्त्रियां बैठी हैं और इतने पुरुष बैठे हैं। मैं उनसे यह पूछता हूं कि जब उन्होंने अपनी पत्नी को बहुत प्रेम किया है तो क्या उन्होंने इस तरह व्यवहार नहीं किया है, जैसे छोटा बच्चा अपनी मां के साथ करता है। क्या आपको इस बात का ख्याल है कि पुरुष के हाथ स्त्री के स्तन की तरफ क्यों पहुंच जाते हैं?

वह छोटे बच्चे के हाथ हैं जो अपनी मां के स्तन की तरफ जा रहे हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga