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आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9788126319329

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बहुआयामी रचनाकार मोहन राकेश का यात्रावृत्तान्त

Aakhiri Chattan Tak - A Hindi Book - by Mohan Rakesh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘आख़िरी चट्टान तक’ बहुआयामी रचनाकार मोहन राकेश का यात्रावृत्तान्त है। दिसम्बर १९५२ से फ़रवरी १९५३ के बीच मोहन राकेश ने गोआ से कन्याकुमारी तक की यात्रा की थी। इस यात्रा के बिम्ब और संस्मरण उनके मन में संचित हो गए थे। कथाकार राकेश ने इस संचित सामग्री को मनुष्य, प्रकृति और विराट जीवन के विवेचन की तरह अपनाते हुए ‘आख़िरी चट्टान तक’ की रचना की है। यात्रा के दौरान उत्पन्न स्वाभाविक ‘अतिरिक्त भावुकता’ लिखते समय तटस्थता में परिवर्तित हुई और मोहन राकेश ने यात्रा का गत्यात्मक मूल्यांकन प्रस्तुत किया। पुस्तक पढ़ते समय अनुभव होता रहता है कि हम एक विलक्षण बुद्धिजीवी की बाह्य और अन्तर्यात्रा के सहपथिक हैं।

मोहन राकेश जीवन के जिन बिम्बों को रचना में प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं, उनके कुछ संवेदनशील उदाहरण ‘आख़िरी चट्टान तक’ में प्राप्त होते हैं। मानव मनोविज्ञान और सामाजिक संरचना की सूक्ष्म समझ के कारण यह यात्रावृत्तान्त भौतिक विवरण और आन्तरिक व्याख्या का निदर्शन बन गया है। हिन्दी साहित्य मे ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ की कमी अनुभव की जाती है। मोहन राकेश अपने इस वृत्तान्त में यात्री, यायावर और घुमक्कड़ की भूमिका में एक साथ दिखाई देते हैं। ‘वांडर लस्ट’ पर विचार करते हुए वे कहते हैं–‘यायावर वृत्ति ? परन्तु वृत्ति लस्ट तो नहीं है। और वास्तव में यह भटकन क्या लस्ट ही है ?’ राकेश ने इन विवरणों में बहुरंगी जीवन को चित्रित किया है। भाषा इतनी पार्दर्शी है कि लेखक के अनुभव पाठक के अनुभव में रूपान्तरित होने लगते हैं।

प्रस्तुत है ‘आख़िरी चट्टान तक’ का पुनर्नवा संस्करण।
गोआ से कन्याकुमारी तक की यह यात्रा दिसम्बर सन् बावन और फ़रवरी सन् तिरपन के बीच की गयी थी। यात्रा से लौटते ही मैंने यह पुस्तक लिख डाली थी। उन दिनों हर चीज़ की छाप मन पर ताज़ा थी। पूरे अनुभव को लेकर मन में एक उत्साह भी था। इसलिए कहीं–कहीं अतिरिक्त भावुकता से अपने को नहीं बचा सका था। इस बार नये संस्करण के लिए पुस्तक को दोहराते समय पहले सोचा था कि मुद्रण की भूलों को ठीक करने के अतिरिक्त और इसमें कुछ नहीं करूँगा। परन्तु समय के अन्तराल ने जहाँ प्रभावों को कुछ धुँधला दिया है, वहाँ मन में उनके प्रति एक तटस्थता भी ला दी है। इसलिए कुछ जगह थोड़ा-बहुत परिवर्तन अनायास ही हो गया है। पुस्तक का कुछ अंश मैंने फिर से लिखा है। शेष में भाषा को जहाँ-तहाँ से छू दिया है। फिर भी मूलतः किसी तरह का परिवर्तन इसमें नहीं हुआ। वह न तो उचित ही था, न अपेक्षित ही।

पहले संस्करण में ही कुछ जगह व्यक्तियों के नाम मैंने बदल दिये थे। जहाँ सम्भव था, वहाँ नाम नहीं बदले। भास्कर कुरुप उस व्यक्ति का वास्तविक नाम है। श्रीधरन् एक बदला हुआ नाम।

 

–मोहन राकेश


प्रथम पृष्ठ

    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

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