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नाटक-एकाँकी >> अनारकली का चुनाव

अनारकली का चुनाव

पुष्पा सक्सेना

प्रकाशक : पुस्तकायन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7190
आईएसबीएन :81-85134-15-4

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विशुद्ध हास्य-रस से सराबोर नाटक जो जीवन को हास्य के इन्द्रधनुषी रंगों में रंग देते हैं।...

Anarkali Ka Chunav - A Hindi Book - by Pushpa Saxena

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

जीवन-यात्रा की राह में फूल और शूल, दोनों मिलते हैं। दुखों के गहन अंधकार में यदि हास्य की फुलझड़ियाँ चेहरों पर मुस्कराहट न ला सकें तो जीना दूभर हो जाता है। ‘अनारकली का चुनाव’ में ऐसे ही नाटक हैं, जो जीवन को हास्य के इन्द्रधनुषी रंगों में रंग देते हैं। ‘हँसना ही जीवन है’ ये नाटक इस कथन को पूर्णतः चरितार्थ करते हैं।
विशुद्ध हास्य-रस से सराबोर ये सभी नाटक रंगमंच-मंचन, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी पर सफल प्रसारण के लिए बहुत उपयुक्त सिद्ध होंगे। हास्य के विविध रंगों से रंजित नाटक, पाठकों एवं दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करने में अवश्य सफल होंगे।

अनुक्रम


१. ऑपरेशन एरर
२. बेचारे प्रिंसिपल साहब
३. अनारकली का चुनाव
४. अदालत में डॉ. श्रीराम
५. मारे गए गुलफ़ाम
६. उस पार जाने के लिए
७. गर्ल्स होस्टल की एक रात
८. फ़र्माइश एक अदद टी.वी. की...
९. नई दिशा

ऑपरेशन एरर


[परदा खुलते ही मंच पर डॉक्टर का केबिन दिखाई देता है। एक मेज, दो कुर्सियाँ, रोगी के बैठने का स्टूल, किनारे पर रोगी के चेक-अप के लिए एक बेड है। एक किनारे नर्स बैठी है। एक मेज सामने है। कुछ चार्टस टँगे हैं। डॉक्टर की मेज पर स्टेथिस्कोप, ब्लड प्रेशर नापने का उपकरण रखा है। दर्शकों की ओर वाली सीढ़ी से डॉक्टर अमर एवं उनके मित्र प्रशान्त का प्रवेश। नर्स खड़ी हो जाती है।]

प्रशान्त : वाह लगता है अच्छा काम जमा लिया है। पूरे शहर में हल्ला है, डॉक्टर अमर, कमाल के सर्जन हैं।
डॉ. अमर : तू अपनी सुना। कॉलेज की लेक्चररशिप कैसी चल रही है ? आजकल कोई रोमांस का चक्कर चल रहा है या नहीं ?
प्रशांत : देख यार, मैं ठहरा लिट्रेचर का प्रोफेसर अगर जीवन में रोमांस न हुआ तो पढ़ाने में इफेक्ट कहाँ से आएगा ? जानता है मोस्ट पापुलर टीचर हूँ।
डॉ अमर : अमंग गर्ल्स ओनली, आई बिलीव। (दोनों हँसते हैं)
प्रशान्त : कितनी देर लगाएगा ? आज शहर का एक चक्कर लगाने का मन था।

डॉ. अमर : क्यों क्या पुरानी यादें ताजा करनी हैं ? वैसे फॉर योर इनफॉरमेशन। तेरी लिली, मीना सबके विवाह हो चुके हैं। बस थोड़ा ठहर, घंटे-दो घंटे में निकल चलते हैं।
प्रशान्त : ओ.के.। यार आज तेरे पेशेंट्स में ही रोमांस खोजूँगा।
डॉ. अमर : बहुत डिसअप्वाइंटमेंट होगा, यहाँ तो सब दिल के मरीज आते हैं।
प्रशान्त : मुँह लटकाए, धीमे कदमों के साथ। (दोनों हँसते हैं)
डॉ. अमर : नर्स, पेशेन्ट्स बुलाइए।
रोगी-१ : (अच्छे परिधान में, सुसम्पन्न व्यक्ति लगता है)
डॉ. अमर : कहिए क्या तकलीफ है ?

रोगी-१ दिल के पास हल्का दर्द हो रहा है। डर लगता है कहीं हार्ट अटैक न हो जाए। जरा चेक कर लीजिए डॉक्टर।
डॉ. अमर : यही तो मुश्किल है। अरे साहब ये लोगों को हार्ट अटैक का नाम क्या पता लग गया कि हर इन्सान उसी का मरीज बन गया है। (ब्लड प्रेशर देखता है)
प्रशान्त : वैसे भाई साहब अगर आपके सीने में दर्द है तो मेरी शुभ कामनाएँ लीजिए। अरे अगर सीने में दर्द नहीं तो जीने में क्या खाक मजा है ? क्यों डॉक्टर ?
डॉ. अमर : मेहरबानी कर आप अपना मुँह बन्द रखिए, मुझे ठीक से चेकअप तो करने दे।
रोगी-१ : डॉक्टर मेरी धड़कन लगता है ठीक नहीं है। जरा ठीक से देखिएगा।
डॉ. अमर : (ब्लड प्रेशर नोट कर पेन रखता है) कुछ नहीं, आप एकदम ठीक हैं। हाँ आपका वजन कुछ ज्यादा है। प्रिकॉशन के लिए फैट्स कम लीजिए।

प्रशान्त : क्या कहते हो डॉक्टर ? मुझे तो यह बहुत वीक दिखाई दे रहे हैं। मेरे ख्याल से तो इन्हें घी, मक्खन खाना चाहिए वर्ना रेजिस्टेंट कहाँ से आएगी ?
रोगी-१ : आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं मुझे तो हर समय कमजोरी लगती है। एक बार आप ठीक से देखिए डॉक्टर साहिब। (प्रशान्त की ओर मुड़ता है)
डॉ. अमर : क्या मैंने ठीक से चेक-अप नहीं किया ? (क्रोध में) और ये डॉक्टर हैं तो इन्हीं से दवा लीजिए।
रोगी-१ : (घबरा कर उठ जाता है)

[रोगी-२ पुकारा जाता है। एक युवा लड़की आती है। चेहरे पर उदासी की परत है।]

रोगी-२ : मैं जिंदगी से बेज़ार हो चुकी हूँ। मैं मरना चाहती हूँ डॉक्टर।
प्रशान्त : बिल्कुल ठीक जगह पहुँच गई हैं, ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
डॉ. अमर : क्या बेजारगी ? यानी फ़ीलिंग ऑफ डिप्रेशन के साथ मरने की इच्छा ? आपको ऐसी फ़ीलिंग कब से शुरू हुई ? प्रशान्त : ओह मरना सोच कर कब से मर रही हैं ?
डॉ. अमर : (प्रशान्त से) व्हॉट नॉन्सेन्स, मिस माला मैं आपकी केस-हिस्ट्री जानना चाहूँगा। मरने की इच्छा रात में ज्यादा होती है या दिन में ?

प्रशान्त : फाँसी लगा कर मरने की इच्छा होती है या जहर खाकर मरने की ? यूँ यहाँ पोटेशियम साइनाइड भी ऐवेलेबल है। आज तक उसका कोई टेस्ट नहीं बता पाया। बहुत ही शान्ति से मृत्यु होगी।
मिस माला : मैं तो स्वयं ही मृत्यु के द्वार पर खड़ी हूं, कोई भी तरीका बताइए। अब तो अपनी धड़कनें बंद होती लगती हैं। (मायूसी)
प्रशान्त : अरे मिस माला, आप तो दूसरों की धड़कनें तेज करती हैं। खुदा न करे आपके दिल की धड़कनें बंद हों।
माला : शुक्रिया। (चेहरे पर चमक-भरी मुस्कान)
डॉ. अमर : लगता है आप पिक्चर्स ज्यादा देखती हैं।
माला : उसी के सहारे तो जिंदा हूँ। यही तो एक सोर्स ऑफ इन्टरटेनमेंट है।
डॉ. अमर : क्यों मॉर्निंग वॉक पर जाना भी तो इन्टरटेनमेंट है ?

प्रशान्त : हाँ हरी घास पर बिखरी ओस की बूँदों पर पड़ते आपके उजले पाँव, लाल-पीले फूलों की मुस्कराहट में खिलता आपका चेहरा देख, आपका ही नहीं सच कहूँ तो दूसरों का भी इन्टरटेनमेंट हो जाएगा—क्यों डॉक्टर। माला जी आप कल से मॉर्निंग वॉक पर निकलिए तो सही, कई लोगों का स्वास्थ्य सुधर जाएगा। सुबह और भी सुन्दर बन जाएगी।
माला : जी नहीं, मुझे तो हर सुन्दर चीज से नफरत है। वह मुझे चुनौती देती दिखाई देती है।
प्रशान्त : वाह-वाह ! क्या बात कही है, मान गए आपकी फिलॉसफी का तो जवाब नहीं। तो ऐसा कीजिए, गंदी नालियों के किनारे चक्कर काट आया कीजिए। बहुत शान्ति मिलेगी।

माला : क्या आप मेरी हँसी उड़ा रहे हैं ? दिस इज हाइली आब्जेक्शनेबल, आई बेटर कन्सल्ट सम अदर डॉक्टर। (जाती है)
डॉ. अमर : ऐसे तो तू मेरा काम ही चौपट कर देगा। क्या उल्टी-सीधी बातें करता है ?
प्रशान्त : अरे छोड़ यार, खूब जानता हूँ ये प्राइवेट नर्सिंग होम में आने वाले झूठे मरीज—इन्हें तो तुझसे ज्यादा अच्छी तरह मैं क्योर कर सकता हूँ। जब तक लम्बी-चौड़ी बीमारी के नाम के साथ दवाइयों की लम्बी-सी लिस्ट न दी जाए इन्हें सन्तोष ही नहीं होता।
डॉ. अमर : पर मैं तो बेईमानी नहीं कर सकता, भले ही एक भी मरीज मेरे पास न आए।
प्रशान्त : ठीक है, बस आज का अपना एक दिन मुझे दे दे। मैं डॉक्टर बनता हूँ। मेरी बात की असलियत का अभी पता लग जाएगा।

डॉ. अमर : क्या बकते हो ? अरे मैंने हिपोक्रेटिक ओथ ली है। अपनी डिग्री का कभी दुरुपयोग नहीं करूँगा।
प्रशान्त : ओह अगर बस एक दिन के लिए अपनी ओथ इस हाइपोक्रेट को दे दे। अरे ये पॉलिटीशियन्स जो वादे हमसे करते हैं पूरे करते हैं। क्या अपनी बीबी से तू जो वादे करेगा सब पूरे कर पाएगा ?
डॉ. अमर : झूठा वादा करूँगा ही क्यों ?
प्रशान्त : तो हो चुकी तेरी शादी। कहे देता हूँ, तेरी सच्चाई जान, दुनिया की कोई लड़की तुझसे शादी नहीं करेगी-भला ये कौन लड़की बर्दाश्त कर पाएगी कि उसे सिनेमा ले जाने की जगह तू किसी लड़की का दिल खोले, पढ़ रहा है।
डॉ. अमर : आपके ख्याल से अगर मैं झूठ नहीं बोलूँ तो कुँवारा रह जाऊँगा।

प्रशान्त : छोड़ यार, अपना जमाना भूल गया जब ओ.टी. में हम नाटक किया करते थे ?
डॉ. अमर : वह हमारी मजबूरी थी, हमें प्ले के लिए समय कहाँ मिलता था ?
प्रशान्त : जी हाँ, शायद इसी चक्कर में आपने एक गरीब के गॉल ब्लैडर की जगह किडनी निकाल दी थी—याद है न ?
डॉ. अमर : प्रशान्त तू नहीं जानता, आदमी एक किडनी के साथ बखूबी जिन्दा रह सकता है।
प्रशान्त : हाँ बेचारे को बस एक किडनी से ही तो हाथ धोना पड़ा और गॉल ब्लैडर के लिए दोबारा पेट चिरवाना पड़ा।
डॉ. अमर : पर हमने उसका गॉल ब्लेडर का ऑपरेशन भी तो मुफ्त ही किया था।
प्रशान्त : ठीक है दोस्त, तेरे सौ खून माफ, पर आज इस हिपोक्रैट को ही डॉक्टर रहने दे। आज भी एक नाटक होने दे।
(जबरन डॉक्टर का कोट पहिन बैठता है) नर्स से रोगी बुलाने को कहता है। वह मुस्कराती है।

रोगी-३ : (एक स्थूलकाय महिला का हाँफते हुए प्रवेश) नमस्ते डॉक्टर साहिब।
प्रशान्त : क्या बात है, आप बहुत डाउन दीख रही हैं मैडम ?
रोगी-३ : कल रात से पेट में ज़ोरों का दर्द है। आज सुबह से कुछ भी नहीं खाया है।
प्रशान्त : रुकिए-रुकिए, ये आपकी साँस इतनी तेजी से क्यों चल रही है ?
रोगी-३ ओह, अभी इतनी सीढ़ियाँ जो चढ़ कर आई हूँ।
प्रशान्त : ओह नो ! क्या कह रही हैं आप ? अरे आपकी क्या ऐसी उम्र है जो ज़रा-सी सीढ़ियाँ चढ़ने में हाँफ जाएँ ? इट इज समथिंग सीरियस मैडम। लेट मी चेक-अप योर ब्लड प्रेशर। (स्टेथिस्कोप उठाता है।)
डॉ. अमर : आप तो ब्लड प्रेशर चेक करने वाले थे ?

प्रशान्त : कर तो रहा हूँ, डोन्ट डिस्टर्ब मी।
डॉ. अमर : स्टेथिस्कोप से ?
प्रशान्त : ज्यादा ठीक रीडिंग आती है।
रोगी-३ : डॉक्टर आप इतने सीरियस क्यों हैं ? क्या सचमुच कुछ सीरियस प्रॉब्लम है ?
प्रशान्त : मैडम अच्छा हो आप अपने हसबैंड को भेज दें।
रोगी-३ : यही तो प्रॉब्लेम है। वह तो हमेशा अपनी बिजनेस के चक्कर में बिजी रहते हैं पर मुझे बताइए व्हॉट इज रांग डॉक्टर ?

प्रशान्त : (गम्भीर स्वर में) कोई भी सीरियस डिज़ीज शुरू से ही तो सीरियस नहीं होती, मैडम।
रोगी-३ : यह तो आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं डॉक्टर, पर मेरी बीमारी किस स्टेज पर है ?
डॉ. अमर : आपके पेट में कल रात दर्द था, मैडम।
प्रशान्त : ओह अमर, तुम इस प्रोफेशन की बारीकियाँ कैसे समझोगे। इनके पेट का दर्द ये साँस का तेज चलना, सब सिम्पटम्स एक ही बीमारी की ओर इशारा कर रहे हैं।
रोगी-३ किस बीमारी की ओर ? ओह डॉक्टर मुझसे छिपाए नहीं।

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