कहानी संग्रह >> काला गुलाब काला गुलाबअलेक्जेंडर ड्यूमा
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कहानी एक महान व्यक्ति ‘कार्नेलियस’ की ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
कहते हैं कोई व्यक्ति यूं ही महान नहीं बन जाता। महान बनने
के लिए उसे अपना सब कुछ दांव पर लगा देना पड़ता है। कदम-कदम पर अपनी
बुद्धि और साहस का परिचय देना पड़ता है। कई बार अपनी इच्छाओं की बलि तक चढ़ा देनी पड़ती है। कुछ को तो अपने
प्राणों की भी आहुति देनी पड़ती है। ऐसे भाग्यशाली व्यक्तियों को अमरत्व
प्राप्त हो जाता है। यह कहानी भी एक ऐसे ही महान व्यक्ति ‘कार्नेलियस’ की
है। सत्रहवीं शताब्दी की बात है। हॉलैंड की राजधानी हेमनगर में दो भाई रहते
थे। एक का नाम ‘जॉन-द-विट’ और दूसरे का नाम
‘कार्नेलियस-द-विट’ था। दोनों भाइयों को अपनी
मातृभूमि से
बहुत प्रेम था।
वे हर समय अपने देश और देशवाशियों की सहायता करने में लगे रहते। वहां के लोग भी बहुत भले और शांति पूर्ण जीवन बिताने वाले थे।
उस समय हॉलैंड कई प्रांतों में बंटा हुआ था। उन प्रांतों पर कई वर्षों तक इन्हीं दोनों भाइयों का शासन रहा। बाद में फ्रांस के राजा लुई चौदहवें ने हॉलैंड पर आक्रमण कर दिया। तब वहां के निवासियों ने अपने देश की रक्षा के लिए शासन व्यवस्था में परिवर्तन करना उचित समझा। उन्होंने जनतंत्र को समाप्त कर दिया।
ओरेज के राजकुमार विलियम को पूरे राज्य का प्रधान नियुक्त किया गया। उस समय वह 22 वर्ष का था। वही विलियम बाद में इंग्लैंड के विलियम तृतीय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वह इंग्लैंड के चार्ल्स प्रथम का नाती और विलियम द्वितीय का पुत्र था।
कार्नेलियस उन दिनों हॉलैंड की विधानसभा का सदस्य था। वह जनतंत्र को समाप्त करने के पक्ष में नहीं था। उसने इसका विरोध किया। इससे लोग भड़क उठे। उसे कैद कर लिया गया। जॉन ने इस नई शासन व्यवस्था को स्वीकार कर लिया। वह विलियम का शिक्षक था। उसे प्रधानमंत्री बना दिया गया, लेकिन उसे इसका कोई लाभ नहीं हुआ। कुछ ही दिनों बाद विद्रोहियों ने उसकी हत्या का षड्यंत्र रचा। एक आदमी ने उसे छुरा मार दिया, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गया।
जॉन जीवित बच गया। इससे विलियम के समर्थकों को संतोष नहीं हुआ। वे सोचते थे कि जब तक यह दोनों भाई जीवित रहेंगे, तब तक उनकी योजना सफल नहीं हो सकती। उन लोगों ने अपनी चाल बदल दी। उन्होंने दोनों के विरुद्ध षड्यंत्र करना प्रारंभ कर दिया।
इस षड्यंत्र में एक डॉक्टर भी आगे-आगे था। उसका नाम टाइकेलर था। उसने झूठा आरोप दर्ज करा दिया कि कार्नेलियस ने उसे विलियम की हत्या करने को कहा है। इसके लिए उसने उसे घूस भी दी है।
यह सूचना पूरे राज्य में जंगल में लगी आग की भांति फैल गई।
राजकुमार विलियम के समर्थक कार्नेलियस की जान के दुश्मन बन गए। 16 अगस्त सन् 1672 ई. को उसे कैद करके जेल में ठूंस दिया गया। ‘बीतेन होफ’ नामक वह जेल हेमनगर के बीचोंबीच स्थित थी। उस भयानक जेलखाने का खंडहर वहां आज भी विद्यमान है।
कार्नेलियस को जेल में खूब कष्ट दिया गया, ताकि वह अपराध स्वीकार कर ले, लेकिन वह टस-से-मस नहीं हुआ। उसने कभी हार मानना नहीं सीखा था। वह चुपचाप सारी यातनाओं को सहता रहा। अंत में हारकर न्यायाधीशों ने फैसला किया कि कार्नेलियस को सभी पदों से हटा दिया जाए, उससे मुकदमे का पूरा खर्च वसूल किया जाए और उसको राज्य से बाहर निकाल दिया जाए।
जब उसके भाई जॉन को इस अन्याय की सूचना मिली तो उसने प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया। वह एकांत में रहने लगा। इस प्रकार विलियम का एकछत्र राज्य स्थापित हो गया।
20 अगस्त को कार्नेलियस को देश से बाहर निकाला जाना था। कितना भयानक दिन था वह। एक वीर सुपुत्र को उसकी मातृभूमि से निष्कासित किया जा रहा था। सड़कों पर हजारों की संख्या में देशवासी उपस्थित थे। सबकी आंखों से ज्वाला निकल रही थी। वे नारे लगा रहे थे। उनके हाथों में तलवारें, कुल्हाड़ियां, लाठियां और दूसरे हथियार थे। उस दिन उनका एक ही उद्देश्य था, कार्नेलियस की हत्या। उस कार्नेलियस की हत्या, जिसे वे अब तक भगवान समझते थे। उस कार्नेलियस की हत्या जो अब तक केवल अपने देश और देशवासियों के लिए जीता था।
आज वही कार्नेलियस लोगों को भगवान नहीं, बल्कि एक हत्यारा दिखाई दे रहा था। वही देशभक्त लोगों के लिए एक देशद्रोही बन गया था। वह ऐसे षड्यंत्र में फंस गया था, जिससे निकलना असंभव था।
लोगों का एक बहुत बड़ा समूह जेलखाने की ओर चला आ रहा था। उस समूह का नेतृत्व कर रहा था, वही टाइकेलर नामक डॉक्टर। वह लोगों को भड़काता जा रहा था तथा खून नमक-मिर्च लगाकर यह कहानी सुना रहा था कि किस प्रकार कार्नेलियस ने उसे बहुत सारा धन दिया और विलियम की हत्या करने को कहा। जैसे-जैसे लोग उसकी कहानी सुनते, वैसे-वैसे उनका क्रोध बढ़ता जाता। वे चीख-चीखकर नारे लगाने लगे थे।
उधर जॉन भी चुप नहीं बैठा था। वह घोड़ागाड़ी में बैठकर उसकी नजरों से बचता हुआ जेलखाने के दरवाजे तक पहुंच गया। उसके साथ उसका एक नौकर भी था। वहां पहुंचकर वह जेलर से विनती करते हुए बोला–‘‘देखो ग्राइफस ! मैं यहां अपने भाई को लेने आया हूं। तुम भली-भांति जानते हो कि आज उसे देश से बाहर निकाल दिया जाएगा। मैं स्वयं उसे लेकर किसी दूसरी जगह चला जाऊंगा। लोगों की भीड़ इधर आ रही है। वे मेरे भाई को मार डालेंगे। इसलिए मैं तुमसे अपने भाई के प्राणों की भीख मांगने आया हूं।’’
यह सुनकर जेलर का कठोर हृदय भी मोम हो गया। उसने फाटक की खिड़की से जॉन को अंदर भेज दिया। जेलखाने में एक सुंदर लड़की ने जॉन को नमस्कार किया। वह जेलर की बेटी रोजा थी। उसने उस कोठरी का रास्ता बता दिया, जहां कार्नेलियस पड़ा हुआ कराह रहा था।
जॉन ने जब अंदर का हाल देखा तो चीख उठा कार्नेलियस एक टूटी हुई चौकी पर पड़ा हुआ सिसकी ले रहा था। उसकी कलाइयां तोड़ दी गई थीं। उसकी उंगलियों और पंजों को कुचल दिया गया था। उसके घावों पर पट्टियां तो बांध दी गई थी, लेकिन उसकी छाती और पीठ पर उभरे कोड़ों के निशान सारा भेद खोल रहे थे। उसकी चमड़ी शरीर से बाहर लटक रही थी। उसके शरीर का रंग उजले से लाल होकर अब काला पड़ गया था। जब उसने अपने भाई जॉन को देखा तो वह प्रसन्नता से झूम उठा । उसके चेहरे का रंग फिर से लाल हो गया।
कार्नेलियस बोला–‘‘मैं जानता था भैया कि तुम अवश्य आओगे। मेरे घावों पर मलहम केवल तुम ही लगा सकते हो भैया। देखो, जनता को कितना बड़ा धोखा दिया गया है। कुछ षड्यंत्रकारियों ने जनता को हमारे विरुद्ध भड़का दिया है। हम लोग तो पक्के देशभक्त हैं और अब तक जनता की सेवा करते आए हैं। उन लोगों ने उल्टे हम पर ही आरोप थोप दिए हैं कि हमने फ्रांस से समझौता किया है और अपने देश के साथ गद्दारी की है।’’
जॉन बोला–‘‘ये लोग मूर्ख हैं कार्नेलियस। ये अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते और दूसरों के बहकावे में आ जाते हैं। तुम चिंता मत करो। मोसियो लुवा के साथ जो तुम्हारा पत्र व्यवहार हुआ था, वही इस बात का प्रमाण है कि तुम बेगुनाह हो। वह पत्र ही यह प्रमाणित कर देगा कि तुमने हॉलैंड के लिए कितना बड़ा त्याग किया है और उसकी स्वतंत्रता व गौरव की रक्षा के लिए तुमने कितना बड़ा बलिदान किया है। वैसे तुमने उन पत्रों का क्या किया ? हमारे दुश्मन हमारे पक्ष के उस अंतिम प्रमाण को भी नष्ट करने का प्रयत्न करेंगे।’’
कार्नेलियस ने मुस्कराते हुए कहा–‘‘तुम चिंता मत करो भैया।
वे हर समय अपने देश और देशवाशियों की सहायता करने में लगे रहते। वहां के लोग भी बहुत भले और शांति पूर्ण जीवन बिताने वाले थे।
उस समय हॉलैंड कई प्रांतों में बंटा हुआ था। उन प्रांतों पर कई वर्षों तक इन्हीं दोनों भाइयों का शासन रहा। बाद में फ्रांस के राजा लुई चौदहवें ने हॉलैंड पर आक्रमण कर दिया। तब वहां के निवासियों ने अपने देश की रक्षा के लिए शासन व्यवस्था में परिवर्तन करना उचित समझा। उन्होंने जनतंत्र को समाप्त कर दिया।
ओरेज के राजकुमार विलियम को पूरे राज्य का प्रधान नियुक्त किया गया। उस समय वह 22 वर्ष का था। वही विलियम बाद में इंग्लैंड के विलियम तृतीय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वह इंग्लैंड के चार्ल्स प्रथम का नाती और विलियम द्वितीय का पुत्र था।
कार्नेलियस उन दिनों हॉलैंड की विधानसभा का सदस्य था। वह जनतंत्र को समाप्त करने के पक्ष में नहीं था। उसने इसका विरोध किया। इससे लोग भड़क उठे। उसे कैद कर लिया गया। जॉन ने इस नई शासन व्यवस्था को स्वीकार कर लिया। वह विलियम का शिक्षक था। उसे प्रधानमंत्री बना दिया गया, लेकिन उसे इसका कोई लाभ नहीं हुआ। कुछ ही दिनों बाद विद्रोहियों ने उसकी हत्या का षड्यंत्र रचा। एक आदमी ने उसे छुरा मार दिया, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गया।
जॉन जीवित बच गया। इससे विलियम के समर्थकों को संतोष नहीं हुआ। वे सोचते थे कि जब तक यह दोनों भाई जीवित रहेंगे, तब तक उनकी योजना सफल नहीं हो सकती। उन लोगों ने अपनी चाल बदल दी। उन्होंने दोनों के विरुद्ध षड्यंत्र करना प्रारंभ कर दिया।
इस षड्यंत्र में एक डॉक्टर भी आगे-आगे था। उसका नाम टाइकेलर था। उसने झूठा आरोप दर्ज करा दिया कि कार्नेलियस ने उसे विलियम की हत्या करने को कहा है। इसके लिए उसने उसे घूस भी दी है।
यह सूचना पूरे राज्य में जंगल में लगी आग की भांति फैल गई।
राजकुमार विलियम के समर्थक कार्नेलियस की जान के दुश्मन बन गए। 16 अगस्त सन् 1672 ई. को उसे कैद करके जेल में ठूंस दिया गया। ‘बीतेन होफ’ नामक वह जेल हेमनगर के बीचोंबीच स्थित थी। उस भयानक जेलखाने का खंडहर वहां आज भी विद्यमान है।
कार्नेलियस को जेल में खूब कष्ट दिया गया, ताकि वह अपराध स्वीकार कर ले, लेकिन वह टस-से-मस नहीं हुआ। उसने कभी हार मानना नहीं सीखा था। वह चुपचाप सारी यातनाओं को सहता रहा। अंत में हारकर न्यायाधीशों ने फैसला किया कि कार्नेलियस को सभी पदों से हटा दिया जाए, उससे मुकदमे का पूरा खर्च वसूल किया जाए और उसको राज्य से बाहर निकाल दिया जाए।
जब उसके भाई जॉन को इस अन्याय की सूचना मिली तो उसने प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया। वह एकांत में रहने लगा। इस प्रकार विलियम का एकछत्र राज्य स्थापित हो गया।
20 अगस्त को कार्नेलियस को देश से बाहर निकाला जाना था। कितना भयानक दिन था वह। एक वीर सुपुत्र को उसकी मातृभूमि से निष्कासित किया जा रहा था। सड़कों पर हजारों की संख्या में देशवासी उपस्थित थे। सबकी आंखों से ज्वाला निकल रही थी। वे नारे लगा रहे थे। उनके हाथों में तलवारें, कुल्हाड़ियां, लाठियां और दूसरे हथियार थे। उस दिन उनका एक ही उद्देश्य था, कार्नेलियस की हत्या। उस कार्नेलियस की हत्या, जिसे वे अब तक भगवान समझते थे। उस कार्नेलियस की हत्या जो अब तक केवल अपने देश और देशवासियों के लिए जीता था।
आज वही कार्नेलियस लोगों को भगवान नहीं, बल्कि एक हत्यारा दिखाई दे रहा था। वही देशभक्त लोगों के लिए एक देशद्रोही बन गया था। वह ऐसे षड्यंत्र में फंस गया था, जिससे निकलना असंभव था।
लोगों का एक बहुत बड़ा समूह जेलखाने की ओर चला आ रहा था। उस समूह का नेतृत्व कर रहा था, वही टाइकेलर नामक डॉक्टर। वह लोगों को भड़काता जा रहा था तथा खून नमक-मिर्च लगाकर यह कहानी सुना रहा था कि किस प्रकार कार्नेलियस ने उसे बहुत सारा धन दिया और विलियम की हत्या करने को कहा। जैसे-जैसे लोग उसकी कहानी सुनते, वैसे-वैसे उनका क्रोध बढ़ता जाता। वे चीख-चीखकर नारे लगाने लगे थे।
उधर जॉन भी चुप नहीं बैठा था। वह घोड़ागाड़ी में बैठकर उसकी नजरों से बचता हुआ जेलखाने के दरवाजे तक पहुंच गया। उसके साथ उसका एक नौकर भी था। वहां पहुंचकर वह जेलर से विनती करते हुए बोला–‘‘देखो ग्राइफस ! मैं यहां अपने भाई को लेने आया हूं। तुम भली-भांति जानते हो कि आज उसे देश से बाहर निकाल दिया जाएगा। मैं स्वयं उसे लेकर किसी दूसरी जगह चला जाऊंगा। लोगों की भीड़ इधर आ रही है। वे मेरे भाई को मार डालेंगे। इसलिए मैं तुमसे अपने भाई के प्राणों की भीख मांगने आया हूं।’’
यह सुनकर जेलर का कठोर हृदय भी मोम हो गया। उसने फाटक की खिड़की से जॉन को अंदर भेज दिया। जेलखाने में एक सुंदर लड़की ने जॉन को नमस्कार किया। वह जेलर की बेटी रोजा थी। उसने उस कोठरी का रास्ता बता दिया, जहां कार्नेलियस पड़ा हुआ कराह रहा था।
जॉन ने जब अंदर का हाल देखा तो चीख उठा कार्नेलियस एक टूटी हुई चौकी पर पड़ा हुआ सिसकी ले रहा था। उसकी कलाइयां तोड़ दी गई थीं। उसकी उंगलियों और पंजों को कुचल दिया गया था। उसके घावों पर पट्टियां तो बांध दी गई थी, लेकिन उसकी छाती और पीठ पर उभरे कोड़ों के निशान सारा भेद खोल रहे थे। उसकी चमड़ी शरीर से बाहर लटक रही थी। उसके शरीर का रंग उजले से लाल होकर अब काला पड़ गया था। जब उसने अपने भाई जॉन को देखा तो वह प्रसन्नता से झूम उठा । उसके चेहरे का रंग फिर से लाल हो गया।
कार्नेलियस बोला–‘‘मैं जानता था भैया कि तुम अवश्य आओगे। मेरे घावों पर मलहम केवल तुम ही लगा सकते हो भैया। देखो, जनता को कितना बड़ा धोखा दिया गया है। कुछ षड्यंत्रकारियों ने जनता को हमारे विरुद्ध भड़का दिया है। हम लोग तो पक्के देशभक्त हैं और अब तक जनता की सेवा करते आए हैं। उन लोगों ने उल्टे हम पर ही आरोप थोप दिए हैं कि हमने फ्रांस से समझौता किया है और अपने देश के साथ गद्दारी की है।’’
जॉन बोला–‘‘ये लोग मूर्ख हैं कार्नेलियस। ये अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते और दूसरों के बहकावे में आ जाते हैं। तुम चिंता मत करो। मोसियो लुवा के साथ जो तुम्हारा पत्र व्यवहार हुआ था, वही इस बात का प्रमाण है कि तुम बेगुनाह हो। वह पत्र ही यह प्रमाणित कर देगा कि तुमने हॉलैंड के लिए कितना बड़ा त्याग किया है और उसकी स्वतंत्रता व गौरव की रक्षा के लिए तुमने कितना बड़ा बलिदान किया है। वैसे तुमने उन पत्रों का क्या किया ? हमारे दुश्मन हमारे पक्ष के उस अंतिम प्रमाण को भी नष्ट करने का प्रयत्न करेंगे।’’
कार्नेलियस ने मुस्कराते हुए कहा–‘‘तुम चिंता मत करो भैया।
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