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दौलत और ख़ुशी की सात रणनीतियाँ

जिम रॉन

प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7168
आईएसबीएन :9788183221283

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जिम रॉन की फ़िलॉसफ़ी ने लाखों लोगों की ज़िंदगी को बेहतर बनाया है। यह पुस्तक आपके लिए भी कुछ ऐसा कर सकती है!...

Daulat Aur Khushi Ki Sat Raneetiyan - A Hindi Book - by Jim Ron

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

कुछ लोग मानते हैं कि उन्हें दौलत या ख़ुशी में से एक को चुनना होगा। लेकिन ऐसा नहीं है। दौलत और खुशी प्रचुरता के एक ही स्रोत से निकलती हैं। लेकिन अपने भीतर दौलत के उस ख़ज़ाने का ताला खोलने के लिए आपको सफलता की सात प्रमुख रणनीतियों की कुंजी का इस्तेमाल करना होगा। यहाँ आपको यह सिखाया जाएगा कि आप कैसे :

* लक्ष्यों की शक्ति मुक्त करें
* ज्ञान खोजें
* परिवर्तन करना सीखें
* अपनी वित्तीय स्थिति पर नियंत्रण करें
* समय के मालिक बनें
* ख़ुद को विजेताओं के आस-पास रखें
* अच्छी तरह जीने की कला सीखें

जिम रॉन की फ़िलॉसफ़ी ने लाखों लोगों की ज़िंदगी को बेहतर बनाया है। यह पुस्तक आपके लिए भी कुछ ऐसा ही कर सकती है !

वह दिन जिसने मेरी ज़िंदगी बदल दी


पच्चीस-छब्बीस साल की उम्र में मैं अर्ल शोआफ़ से मिला। उस वक्त मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि यह मुलाक़ात मेरी ज़िंदगी बदल देगी...
तब तक मेरी जिंदगी उन बहुसंख्यक लोगों की तरह थी, जिनके नीरस जीवन में सफलता और ख़ुशी नाम मात्र को ही होती है। मेरी शुरुआत बहुत शानदार थी। मैं दक्षिण-पश्चिमी इडाहो में स्नेक नदी केतट से कुछ दूर बसे छोटे से कृषक समुदाय के प्रेमपूर्ण माहौल में बड़ा हुआ था। घर छोड़ते समय मेरे मन में यह आशा हिलोरें मार रही थी कि मैं ख़ुद के लिए अमेरिकन ड्रीम का एक बड़ा टुकड़ा तोड़ लूँगा।

बहरहाल, चीज़ें मेरी उम्मीद के मुताबिक नहीं हुईं। हाई स्कूल पास करने के बाद मैं सीधे कॉलेज चला गया। लेकिन एक साल तक कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि मैं काफ़ी स्मार्ट हो चुका हूँ। बस फिर क्या था, मैंने पढ़ाई छोड़ दी। यह बहुत बड़ी ग़लती साबित हुई—उन शुरुआती दिनों की कई बड़ी ग़लतियों में से एक। मैं काम करने और पैसे कमाने के लिए बेताब था। मेरा ख़्याल था कि मुझे नौकरी पाने में कोई दिक्क़त नहीं होगी और मेरा यह अंदाज़ा सही साबित हुआ। नौकरी पाना मुश्किल नहीं था। (तब मैं आजीविका चलाने और दौलत बनाने के फ़र्क़ को नहीं समझता था।)

उसके कुछ समय बाद ही मैंने शादी कर ली। और किसी आम पति की तरह ही मैंने भी अपनी पत्नी से बहुत सारे वादे कर लिए। मैंने उसे अद्भुत भविष्य के सपने दिखाए, जो मेरे हिसाब से अगले ही मोड़ पर मिलने वाला था। मुझे इस बात पर सचमुच यक़ीन था, क्योंकि मैं आख़िरकार महत्वाकांक्षी था, सफलता पाने के बारे में बहुत संजीदा था और कड़ी मेहनत करता था। कामयाबी तय थी।
यह कम से कम मैं ऐसा सोचता था...

जब मुझे काम करते हुए छह साल हो गए और मेरी उम्र पच्चीस साल हो गई, तो मैंने अपनी प्रगति की जाँच करने का फ़ैसला किया। मुझे यह शंका सता रही थी कि चीज़ें सही दिशा में नहीं जा रही थीं। मेरा साप्ताहिक वेतन कुल मिलाकर सत्तावन डॉलर ही था। मैं अपनी पत्नी से किए वादों को पूरा करने में काफ़ी पिछड़ गया था और बिलों के बढ़ते ढेर को पटाने में भी, जो हमारे किचन की जर्जर टेबल पर चारों तरफ़ बिखरे हुए थे।

अब तक मैं पिता बन चुका था और मुझ पर बढ़ते परिवार की बढ़ती जिम्मेदारियों का बोझ भी आ चुका था। लेकिन सबसे ज़्यादा एहसास मुझे इस बात का हुआ कि मैं अभावों की अपनी नियति को धीरे-धीरे, ख़ामोशी से स्वीकार करने लगा था।
सच्चाई से साक्षात्कार के एक पल में मैंने देख लिया कि आर्थिक दृष्टि से आगे बढ़ने के बजाय मैं हर दिन पिछड़ता जा रहा था। स्पष्ट था कि किसी चीज़ को बदलने की ज़रूरत थी... लेकिन किसे ?
मैंने मन ही मन सोचा, शायद कड़ी मेहनत ही काफ़ी नहीं है। इस एहसास से मुझे ज़ोर का झटका लगा, क्योंकि बचपन से ही मुझे यह यक़ीन करना सिखाया गया था कि पुरस्कार उन्हीं लोगों को मिलता है, जो अपने माथे के पसीने से आजीविका कमाते हैं।

बहरहाल, यह उजले दिन की तरह साफ़ था कि हालाँकि मैं ‘‘काफ़ी पसीना’’ बहा रहा था, लेकिन पुरस्कार का नामोनिशान नहीं दिख रहा था। साठ साल की उम्र में मेरा अंत भी उन बहुत सारे लोगों की तरह होने वाला था, जिन्हें मैं अपने चारों तरफ़ देखता था : कंगाल और दूसरों की सहायता पर निर्भर। इससे मैं दहशत में आ गया। मैं इस तरह के भविष्य का सामना नहीं कर सकता था। दुनिया के सबसे अमीर देश अमेरिका में नहीं !

मेरे पास जवाब कम, सवाल ज़्यादा थे। मुझे क्या करना चाहिए ? मैं अपने जीवन की दिशा कैसे बदल सकता हूँ ?
मैंने दोबारा कॉलेज जाने के बारे में सोचा। नौकरी के आवेदन में सिर्फ़ एक साल की कॉलेज की पढ़ाई अच्छी नहीं दिखती है। लेकिन परिवार की ज़िम्मेदारियों के कारण कॉलेज जाना व्यावहारिक नहीं था।
फिर मैंने कोई बिज़नेस शुरू करने के बारे में सोचा। यह ख़ासा रोमांचक विकल्प था ! लेकिन, ज़ाहिर है, मेरे पास बिज़नेस शुरू करने के लिए पूँजी नहीं थी। आख़िर, पैसा मेरी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक था। महीना ख़त्म होने से पहले ही पैसा ख़त्म हो जाता था। (क्या आप कभी ऐसी स्थिति में रहे हैं ?)

एक दिन मुझसे दस डॉलर का नोट ग़ुम हो गया। इस बात से मैं इतना परेशान हो गया कि दो हफ़्ते तक बीमार रहा—दस डॉलर के लिए ! मेरे एक दोस्त ने मुझे यह कहकर तसल्ली देने की कोशिश की, ‘‘देखो जिम, शायद वह नोट किसी ग़रीब व्यक्ति को मिला होगा, जिसे उसकी ज़रूरत रही होगी।’’ लेकिन यक़ीन मानें, उसकी यह बात सुनकर मुझे ज़रा भी तसल्ली नहीं मिली। जहाँ तक मेरा सवाल था, मुझे दस डॉलर गँवाने की नहीं, पाने की ज़रूरत थी। (मुझे स्वीकार करना होगा कि उस वक़्त मैं ज़्यादा उदार नहीं था।)

तो मैं पच्चीस साल की उम्र में इस मुक़ाम पर था—अपने सपनों को साकार करने में बहुत पीछे था और मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि मैं अपनी ज़िंदगी को बेहतर कैसे बना सकता हूँ।
फिर एक दिन अचानक खुशकिस्मती ने मेरे दरवाज़े पर दस्तक दी। यह मेरी ज़िंदगी में उसी समय क्यों हुआ ? अच्छी चीज़ें हमेशा तभी क्यों होती हैं, जब वे होती हैं ? मैं सचमुच नहीं जानता। मेरे लिए, यह ज़िंदगी के रहस्य का हिस्सा है...
चाहे जो हो, मेरी ख़ुशक़िस्मती का दरवाजा तब खुला, जब मैं एक व्यक्ति से मिला—एक बहुत ही ख़ास व्यक्ति से, जिनका नाम अर्ल शोआफ़ था। हमारी मुलाक़ात एक सेल्स कॉन्फ़्रेंस में हुई, जहाँ वे एक सेमिनार आयोजित कर रहे थे। मैं आपको बता नहीं सकता कि उन्होंने उस शाम को क्या कहा, जिसने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया, लेकिन मुझे अब भी याद है, मैं मन ही मन सोच रहा था कि उनके जैसा बनने के लिए मैं कुछ भी दे सकता हूँ।

सेमिनार के अंत में मैं अपनी पूरी हिम्मत बटोरकर उनके पास गया और अपना परिचय दिया। मेरे अटपटे अंदाज़ के बावजूद उन्हें शायद सफल होने की मेरी प्रबल इच्छा नज़र आ गई होगी। वे दयालु और उदार थे और अंततः मुझे पसंद करने लगे। कुछ महीनों बाद उन्होंने मुझे अपने सेल्स संगठन में शामिल कर लिया। अगले पाँच साल तक मैंने मि. शोआफ़ से जिंदगी के कई सबक़ सीखे। उन्होंने मुझसे अपने बेटे की तरह बर्ताव किया और घंटों तक मुझे अपना व्यक्तिगत जीवनदर्शन (philosophy) सिखाया, जिसे मैं दौलत और ख़ुशी की सात रणनीतियाँ कहता हूँ।
फिर एक दिन, 49 साल की उम्र में बिना किसी पूर्व-संकेत के मि. शोआफ़ का देहांत हो गया। अपने मार्गदर्शक के गुज़रने पर अफ़सोस करने के बाद मैंने कुछ समय तक यह मूल्यांकन किया कि उनका मेरे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा था। मुझे एहसास हुआ कि उन्होंने मुझे जो सबसे अच्छी चीज़ दी थी, वह नौकरी नहीं थी। सबसे अच्छी चीज़ यह भी नहीं थी कि उन्होंने मुझे सेल्स ट्रेनी से अपनी कंपनी के एक्ज़ीक्यूटिव वाइस-प्रेसिडेंट के पद तक पहुँचने का अवसर दिया था। इसके बजाय, उनकी दी हुई सबसे अच्छी चीज़ तो उनका जीवनदर्शन था, जो मैंने उनसे सीखा था। यानी उनके जीवनदर्शन की बुद्धिमत्ता और सफल जीवन के उनके बुनियादी सिद्धांत : दौलतमंद कैसे बनें, ख़ुश कैसे रहें।
अगले कुछ वर्षों तक मैंने उनके विचारों को अपनी ज़िंदगी में उतारा... और मैं अमीर बनता चला गया। सच तो यह है कि मैंने बहुत सारा पैसा बनाया। लेकिन मुझे सबसे ज़्यादा संतुष्टि तो उन अनमोल विचारों को अपनी कंपनी के सहयोगियों और कर्मचारियों तक पहुँचाने में मिली। उनकी प्रतिक्रिया उत्साहपूर्ण थी और परिणाम फ़ौरन तथा साफ़ नज़र आने लगे। मैं ख़ुद को मूलतः लेखक या वक्ता नहीं, बल्कि बिज़नेसमैन मानता था। बहरहाल, मैंने उन विचारों को दूसरों तक पहुँचाने का संकल्प किया, जिनसे हर इंसान की ज़िंदगी बदल सकती है और बेहतर बन सकती है।

इस पुस्तक को पढ़ते समय यह कल्पना करें कि आप ख़रीदारी कर रहे हैं। सिर्फ़ वही विचार लें और उन्हीं पर अमल करें, जो आपकी परिस्थितियों पर लागू होते हैं। निश्चित रूप से आपको दूसरे व्यक्ति द्वारा दिखाई जाने वाली हर चीज़ ‘‘ख़रीदने’’ की ज़रूरत नहीं है। लेकिन ख़ुद को एक मौक़ा दें। आगे के पन्ने ख़ुले दिमाग़ से पढ़ें। अगर कोई चीज़ आपको समझदारी भरी लगती है, तो उसे आज़माकर देखें। अगर नहीं लगती है, तो उसे छोड़ दें। याद रखें, आप चाहे जो करें, सिर्फ़ पिछलग्गू न बने; विद्यार्थी बनें।

अध्याय १

पाँच अहम शब्द


इस पुस्तक के सभी विचार कुछ अहम शब्दों पर आधारित हैं। इसलिए इस पुस्तक को समझने और इसकी सामग्री से अधिकतम लाभ पाने से पहले इन शब्दों का अर्थ स्पष्टता से समझना अनिवार्य है।

आधारभूत सिद्धांत

सबसे पहले तो हम ‘‘आधारभूत सिद्धातों’’ पर नज़र डालते हैं। आधारभूत सिद्घांतों से मेरा मतलब उन मूलभूत सिद्धांतों से है, जो हर तरह की सफलता की बुनियाद हैं।
आधारभूत सिद्धांत वह शुरुआत हैं, नींव हैं, वास्तविकता हैं, जिनसे बाक़ी हर चीज़ प्रवाहित होती है।
नए आधारभूत सिद्धांतों के बारे में बात करना विरोधाभासी है। ठीक वैसा ही, जैसे कोई नए एंटीक्स (पुरातन मूल्यवान वस्तुएँ) बनाने का दावा करे। इससे हर कोई शक करने लगेगा, है ना ? आधारभूत सिद्धांत युगों पुराने हैं। वे बाइबल के समय से मौजूद हैं और अनंत काल तक मौजूद रहेंगे।

आइए हम देखते हैं कि ‘‘आधारभूत सिद्धांतों’’ का सफलता से कितना गहरा संबंध है। अगर आप आधारभूत सफलता की तलाश कर रहे हैं, यानी स्थायी और ठोस नींव पर बनी सफलता की, तो आपको मनमोहक जवाबों से बचना चाहिए। और मेरा य़कीन करें, इन दिनों बहुत से मनमोहक जवाब दिए जा रहे हैं, ख़ासकर दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया में, जहाँ मैं रहता हूँ।
बहुत सी अफ़वाहें प्रचलित हैं कि सफलता मुश्किल या जटिल है। बहरहाल, सच तो यह है कि सफलता एक सरल प्रक्रिया है। यह आसमान से नीचे नहीं टपकती है। न ही यह जादुई या रहस्यमयी है।

सफलता और कुछ नहीं, सफलता के आधारभूत सिद्धांतों पर जीवन में निरंतर अमल करने का स्वाभाविक परिणाम है।


यही ख़ुशी और दौलत के बारे में भी सही है। वे भी ख़ुशी और दौलत के आधारभूत सिद्धांतों पर जीवन में निरंतर अमल करने के स्वाभाविक परिणाम हैं। कुंजी आधारभूत सिद्धांतों पर निरंतर चलना और अमल करना है।

आधा-दर्जन चीज़ें


मेरे मार्गदर्शक मि. शोआफ़ ने एक दिन मुझसे कहा, ‘‘जिम, हमेशा आधा दर्जन चीज़ें होती हैं, जिनसे अस्सी फ़ीसदी फ़र्क़ पड़ता है।’’
आधा दर्जन चीजें... कितना अहम विचार है।
चाहे हम अपनी सेहत, दौलत, व्यक्तिगत सफलता या व्यावसायिक उद्यम को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हों, सब कुछ इन्हीं आधा दर्जन चीज़ों पर निर्भर करता है। इन्हीं आधा दर्जन चीज़ों को खोजने, इनका अध्ययन करने और इन पर अमल करने के लिए हम कितने समर्पित हैं, इस पर ही हमारी उल्लासपूर्ण सफलता या निराशाजनक असफलता निर्भर करती है।

उदाहरण के लिए, जो किसान शरद ऋतु में अच्छी फ़सल काटना चाहता है, उसे स्पष्ट रूप से इन आधा दर्जन आधारभूत चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करना होगा : मिट्टी, बीज, पानी, धूप, खाद और देखभाल। हर चीज़ का महत्व समान है, क्योंकि साथ मिलकर ही वे सफल फ़सल प्रदान करती हैं।
तो नए लक्ष्य तय करने या किसी भी नए प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले ख़ुद से यह बेहतरीन सवाल पूछें : वे आधा दर्जन चीज़ें कौन सी हैं, जिनसे परिणाम पर सबसे ज़्यादा फ़र्क़ पड़ेगा ? चाहे चित्रकला हो या संगीत, गणित हो या भौतिकी, खेल हो या बिज़नेस, हर क्षेत्र में आधा दर्जन आधारभूत सिद्धांत महत्वपूर्ण होते हैं।

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