कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
"किसी से कहिएगा नहीं..." वह मुझे पुलिस अधिकारी से कुछ दूर एकांत में ले जाता हुआ बोला, "यह भूल... यह भूल मुझसे नहीं, मेरे बेटे से हुई थी। अंधेपन में एक मासूम बच्ची के साथ वह बलात्कार कर बैठा था, जिसमें बच्ची की मौत हो गई थी। भरी जवानी में उसे फांसी के तख्ते पर झूलते या उमर कैद की सजा काटते मैं कैसे देख सकता था ! इसलिए जुर्म मैंने खुद ओढ़ लिया। यों मुझे अब जीना ही कितना है-हद-से-हद साल-छह महीने, बस... !” उसका स्वर भारी हो गया।
बच्चे कभी मिलने आते हैं?" मैंने असह्य मौन तोड़ते हुए कहा।
वह कुछ भी बोल न पाया-प्रत्युत्तर में।
''चिट्ठी-पत्री आती है?"
"न्नां...” कहीं खोया-खोया-सा वह बोला, "कौन लिखेगा मुझे चिट्ठी...सब मुझसे घृणा करते हैं। यही समझते हैं कि यह सब बुढ़ापे में मैंने ही किया। सगे-संबंधी कतराते हैं। पत्नी मेरा मुंह तक देखना नहीं चाहती...जिस बेटे के लिए मैंने यह सब किया, वह मुझे कब का मरा मान चुका है... ये सारे कैदी, जिनकी चादरें मुझसे भी अधिक मैली हैं, मुझ पर थूकते हैं... ! किंतु मुझे इस सबसे दुःख नहीं होता। मेरे बच्चे सुख से रह रहे हैं इससे अधिक मुझे और क्या चाहिए?"
उसकी आवाज़ भीग आई थी। किंतु वह अपनी रौ में बोलता रहा, "यहां मज़दूरी से मुझे साढ़े चार रुपए रोज़ मिलते हैं। अब तक मेरे खाते में जितने भी रुपए जमा हैं, सब मैंने उनके नाम करवा दिए हैं। मेरे मरने के बाद उन्हें अच्छी रक़म मिल जाएगी... बहुत अच्छी..." उसकी लड़खड़ाती आवाज़ में कहीं अपरिमित संतोष का-सा भाव उभर रहा था। इससे अधिक वह कुछ बोल न पाया।
उस सघन अंधकार में धूल उड़ाती हुई हमारी जीप जब लौटने लगी, तब मैंने सहसा मुड़कर देखा-वह वैसा ही मूर्तिवत खड़ा था।
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