कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
श्रेया हंसती हुई, व्यंग्य में बोली, “तुम्हारा भेजा फिर गया है। प्रियांशु ! गकान, आत्मा यह तुम क्या कह रहे हो !...पापा को
'आश्रम' में एक विशेष कमरा दिलवा देंगे ! कूलर, ए.सी. सब लगवा देंगे ! और भी उनके अनेक हम उम्र वहां हैं, उनके साथ आसानी से समय बीत जाएगा।"
पापा को कैसे भेजेंगे 'आश्रम' में..." भर्राए कंठ से प्रियांशु बोला, “वे अनाथ, असहाय नहीं, मेरे पापा हैं..."
“हर बूढ़ा किसी-न-किसी का पापा, बाबा तो होता ही है। इसमें नई बात क्या है? तुम मुझ पर छोड़ दो,” आगे श्रेया बोली, “मैंने 'वृद्धाश्रम' में भी बात कर ली है। वहां व्यवस्था हो जाएगी...मैं सुबह पापा से साफ-साफ कह दूंगी और अपनी गाड़ी में अपने साथ ले जाकर छोड़ आऊंगी...।”
“रिश्ते क्या होते हैं? अपनापन किसे कहते हैं, तुम उस दिन समझोगी, जिस दिन बूढ़ी गाय की तरह तुम्हारे बच्चे, इसी तरह हांकते हुए तुम्हें भी किसी अनाथालय की देहरी पर तड़प-तड़पकर मरने के लिए छोड़ आएंगे...।” प्रियांशु का उग्र स्वर था, “मैं अपने पापा को इस तरह मरने के लिए नहीं छोड़ सकता...। तुम जाओ...| यू में गो बैक...!”
प्रियांशु कह ही रहा था कि तभी दरवाजे का कुंडा खटका। द्वार खुला। देखा-सामने पापा खड़े हैं, मुस्कराते हुए, “पगले हो तुम ! व्यर्थ में शोर मचा रहे हो ! मैंने तुम्हारी सारी बातें सुन ली हैं। अरे, तुम्हारे भारत आने से पहले ही मैंने 'ओल्ड होम' में अपने लिए जगह बुक करा ली है। मेरे लाहौर के दोस्त पिंडीदास और मंगत भी वहीं हैं। कुछ और भी हैं। खूब अच्छी छनेगी जब...।”
प्रियांशु ने देखा-पापा पोपले मुंह से हंस रहे हैं। पर, उस हंसी की ओट में जो रुदन का करुण स्वर था, उसकी थाह वह नहीं ले पा रहा था !
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