कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
|
8 पाठकों को प्रिय 61 पाठक हैं |
हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
सगीर मियां मिठाई का बड़ा-सा टुकड़ा मुंह में डालते हुए बतलाते हैं कि उनके नाना दिल्ली के चांदनी चौक में कभी कपड़े के बड़े व्यापारी थे, 'अल्ताफ ब्रदर्स' नाम से मशहूर। उनके दादा भी वहां के रईस थे! उन्हें बड़ा फ़ख़ था कि वे दिल्ली के हैं। बंटवारे के बाद पाकिस्तान आए तो मुसीबतों के पहाड़ टूट पड़े। वालिद साहब की आख़िर तक एक ही तमन्ना थी, हिंदुस्तान जाकर एक बार अपना पुराना घर, अपना पुराना मुहल्ला देखने की...
वे कुछ रुककर कहते हैं, "हमारी अम्मीजान की पैदाइश भी वहीं की है न ! चांदनी चौक, किनारी बाज़ार, जामा मस्जिद की गलियां अभी तक भी वे ख्वाबों में देखती हैं। जब से सुना है, आप तशरीफ ला रहे हैं, वे बेताब हैं।”
सहसा कुछ क्षण सन्नाटा-सा रहता है।
"तो कल रात आप सब हमारे गरीबख़ाने पर तशरीफ ला रहे। हैं न ! अम्मीजान आपके लिए हिंदुस्तानी तरीके का खाना बनाएंगी। आप कहें तो बिना लहसुन-प्याज़ का तैयार करें ! हिंदुस्तानी अचार, हिंदुस्तानी पापड़ उन्होंने ज़फर मियां की दुकान से कब से मंगवाकर रख लिए हैं। अपने मैके की तरफ का कोई आए तो कितना अच्छा लगता है !”
कुछ रुककर वे आगे कहते हैं, "चचाजान, आपके तशरीफ लाने में हमें उतनी ही खुशी होगी, जितनी वालिद साहब के आने पर होती...” कहते-कहते सगीर मियां सहसा चुप हो जाते हैं।
वे आदाब कहते हुए जाने के लिए उठते हैं। मैं रमा को इशारे में कुछ समझाते हुए कहता हूं।
मेरी अधखुली अटैची में से वह कढ़ाई वाला रंगीन हरा कश्मीरी शॉल और चूड़ियों का एक पैकेट निकालकर लाती है।
लो बेटी, यह तुम्हारे लिए..."
फातिमा बहू पहले तो संकोच से मना करती है, पर मेरे बार-बार कहने पर अदब के साथ दोनों हाथ फैलाकर, उन्हें थाम लेती है। थागते-थामते वह सहसा भावुक हो उठती है, लपककर दरवाजे की ओर बढ़ती है और ओझल हो जाती है।
|
- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
- सजा
- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
- कुत्ता
- हत्यारे
- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर