परिवर्तन >> गौरी गौरीसुभद्रा कुमारी चौहान
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हिन्दी साहित्य जगत की पहली निर्भीक कवयित्री और लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानियाँ
सन् १९॰४ में जन्मी और भारत के स्वाधीन होने तक अपनी कलम के माध्यम से न केवल महिलाओं की आवाज बनी रहीं, बल्कि अपनी लेखनी से स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को अपना कर्तव्य स्मरण करवाती रहीं। उनकी कविताओं और कहानियों में अधिकांशतः तत्कालीन समाज में महिलाओं और अन्य सामाजिक समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया जाता रहा है।
जमींदारी प्रथा के चलते सामान्य जन अंग्रेजों और जमींदारों के दोहरे प्रहार से हमेशा पीड़ित रहते थे। अपनी कविताओं और कहानियों में सुभद्रा जी लगातार उन पर जबाबी हमले करती रहीं।
जमींदारी प्रथा के चलते सामान्य जन अंग्रेजों और जमींदारों के दोहरे प्रहार से हमेशा पीड़ित रहते थे। अपनी कविताओं और कहानियों में सुभद्रा जी लगातार उन पर जबाबी हमले करती रहीं।
इस संग्रह की कहानियाँ इस प्रकार हैं
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