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मैनेजमेंट फंडा

एन. रघुरामन, विजयशंकर मेहता

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :114
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7004
आईएसबीएन :978-81-8361-091

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मैनेजमेंट फंडा (व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक सूत्र)

Management Funda - A Hindi Book - by N. Raghuraman And Vijayshankar Mehta

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

एन. रघुरामन

पत्रकारिता और प्रबंधन के क्षेत्र में 22 वर्षों से एन. रघुरामन सक्रिय और प्रतिष्ठित हैं। पत्रकारिता में उनका प्रवेश ‘फ्री प्रेस’ एवं ‘द डेली’ से हुआ। सन् 1994 से वित्तीय एवं व्यावसायिक पत्रकारिता में उतरकर इंडियन एक्सप्रेस के बिजनेस प्रकाशन को लांच किया। अनेक बिजनेस जनरल में आप संपादक रहे हैं। कई बिजनेस ग्रुप, दर्जनों पर्यटन परियोजनाओं के लिए आप प्रोफेशनल सलाहकार भी रहे। पत्रकार, प्रबंधक और मार्गदर्शक के रूप में आपने जिन सिद्धांतों को प्रतिपादित किया है, उनका व्यावहारिक पक्ष अनेक संस्थानों के लिए उपयोगी रहा है। भारत के सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले हिन्दी अखबार ‘दैनिक भास्कर’ के संपादकीय प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण पदों पर रहते हुए आप इन्दौर संस्करण के संपादक भी रहे। पत्रकारिता के विभिन्न अंगों के बीच संसाधन, विशिष्ट ज्ञान और सूचना के समन्वयक के रूप में पहचान बनाते हुए, प्रबंधन-कला के जानकार होकर इन दिनों आप नवीनतम अंग्रेजी राष्ट्रीय दैनिक ‘डी एन ए’ मुम्बई में संपादक-योजना के रूप में कार्यरत हैं।

पं. विजयशंकर मेहता

एक साधक के रूप में आध्यात्मिक अनुराग के आग्रही पं. विजयशंकर मेहता रंगकर्म, पत्रकारिता और धर्म के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम है। सम्प्रति भारत के सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले हिन्दी समाचार-पत्र ‘दैनिक भास्कर’ से ब्यूरो सलाहकार तथा ‘धर्मपीठ’ के संपादक के रूप में जुड़े हैं। पत्रकारिता में समाचार-प्रबंधन के दौरान मानव जीवन को निकट से देखा और सरोकार रखते हुए संघर्ष के समाधानकारी सूत्र खोजे।

श्रीसत्यनारायण व्रतकथा, श्रीमदभगवतगीता, श्रीहनुमान चालीसा और श्रीरामचरितमानस के ऊपर देश-विदेश में दिए गए सैकड़ों व्याख्यानों में जीवन-प्रबंधन पर इनकी मौलिक दृष्टि लोगों को आकर्षित और जिज्ञासुओं को संतुष्ट करती रही है। इनके सौ से ज्यादा जीवन केन्दित लेखों में जहाँ व्यवहार से ज्यादा स्वभाव से जीने पर जोर है संपादन, संयोजन और सीधे-सरल लेखन से सजी दस से ज्यादा प्रकाशित पुस्तकों में सुव्यवस्थित जीवन जीने का आग्रह भी है। पं. मेहता द्वारा लिखित श्रीहनुमान चालीसा की चालीस चौपाइयों की व्याख्या वाली पुस्तक ‘जीवन प्रबंधन’ प्रकाशित हो चुकी है। बदलते मापदंडों के बीच आध्यात्मिक अनुराग से जीवन-प्रबंधन का बिरला सूत्र पं. मेहता की पहचान है, निजी खोज और उपलब्धि भी।

मेरी राय में...


यह प्रबंधन का युग है। अब यह सर्वस्वीकृति हो चुका है कि कार्य के पूर्व योजना के समय में जो लोग सजग और सावधान होंगे वे ही सफलता तक पहुँचेगे। यूँ तो प्रबंधन का एक व्यवस्थित पाठ्यक्रम हो सकता है, लेकिन सिद्धान्त और व्यवहार का जब फर्क आता है तब असली परीक्षा होती है। अनेक लोग ऐसे हैं जिन्होंने सैद्धांतिक रूप से प्रबंधन के क्षेत्र में अधिक दक्ष साबित हुए हैं। यह गुण जितना मौलिक है उतना ही सतत अभ्यास भी मांगता है।
जो लोग इस बात के लिए जागरुक हैं कि जो कुछ उनकी व्यवस्था में उनके आसपास घट रहा है उसे योजनाबन्द्ध  तरीके से संपन्न किया जाए तो यही सबसे बड़ा प्रबंधन हो जाता है।

भारत में प्रबंधन की दृष्टि से सबसे बड़ी सुविधा यही है कि हमारे पास प्राचीन काल से चली आ रही एक परम्परा है जिसमें ऐसे साहित्य और विद्वानों के सूत्र हैं जो शायद संसार में कहीं और कम ही उपलब्ध है।
देखा जाए और गहराई से सोचा जाए तो अध्यात्म अपने आप में प्रबंधन है।
आध्यात्मिक व्यक्ति सुव्यवस्थित, सुनियोजित, दूरदर्शी, परिश्रमी, समर्पित और ईमानदार होता है। यह प्रबंधन के विशेष गुण हैं या यूं कहे प्रबंधन की सारी ताकत इन्हीं आचरणों में बसती है।
इस पुस्तक में श्री रघुरामन तथा पं. मेहता ने उन अनुभवों को प्रकाशित किया है जिन्हें उन्होंने न सिर्फ जाना है बल्कि जिया भी है। आधुनिक उदाहरण और आध्यात्मिक प्रसंगों का तालमेल हमें न सिर्फ जानकारी के स्तर पर समृद्ध बनाता है बल्कि चीजों को समझने के लिए और अधिक परिपक्क दृष्टि भी देता है।
मुझे आशा है कि यह पुस्तक हर उस व्यक्ति के लिए उपयोगी है जिसकी नीयत में ईमानदारी, प्रयासों में परिश्रम और आकांक्षा में सफलता है।

सुधीर अग्रवाल

                                   

आधुनिकता और आध्यात्म के संतुलन के साथ...

यह मनुष्य जीवन का वह कालखंड है जब किए जा रहे अनेक प्रयासों में से एक बड़ा प्रयास है संघर्ष और सफलता के बीच के अंतर को खत्म करना। प्रबंधन के इस युग में सफलता प्राप्त करने के कुछ पारंम्परिक तरीके हैं तो कुछ करते-करते सीख जाने वाले मौलिक सूत्र भी। लेकिन यह तय है कि योग्य और श्रेष्ठ प्रबंधन के द्वार पर दस्तक देने के लिए सफलता मजबूर होती है। आधुनिक समझ और साहित्य में प्रबंधन के जितने सूत्र सिमटे हैं उतने ही संकेत हमारे प्राचीन आध्यात्मिक ग्रंथों में भी वर्णित हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथ इस मामले में समग्र हैं कि उनमें सुख शान्ति और विजय प्राप्त करने का वर्णन बड़े प्रबंधकीय रीति-नीति से किया गया है।

इस पुस्तक में हमारा पहला प्रयास यह है कि सांसारिक प्रगति और आध्यात्मिक रुझान के विरोधाभास को मिटाया जाए। जीवन के हर क्षेत्र में प्रबंधन से प्राप्त की जा रही सफलता के लिए जो समझ होती है उसके व्यावहारिक दृष्टि के इक्यावन उदाहरण इस पुस्तक में हैं। ठीक इन उदाहरणों  के सामने वाले पृष्ठ पर व्यावहारिक दृष्टिकोण से मिलते हुए आध्यात्मिक सोच के प्रसंग लिखे गए हैं। पृष्ठ-दर-पृष्ठ यह साबित होता है कि भौतिक युग की आधुनिकता और पौराणिक युग की आध्यात्मिकता के मेल-मिलाप से प्रबंधन का हर पक्ष मजबूत ही होगा।
ज्यादातर प्राचीन कर्मकांड एवं प्रार्थनाओं का अंत भौतिक सुख-समृद्धि के लिए दैवीय सफलता की याचना से होता है। विष्णुसहस्त्रनाम की फलश्रुति इस बात को स्थापित करती है

यशः प्राप्नोति विपुलं ज्ञातिप्राधान्यमेव च।
अचलां श्रियमाप्नोति श्रेयः प्राप्नोत्यत्तमम्।।

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