कला-संगीत >> हिट भजनों की स्वरलिपियाँ हिट भजनों की स्वरलिपियाँभारती अग्रवाल
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हिट भजनों की स्वरलिपियाँ
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
1
भक्ति संगीत का अर्थ
संगीत क्या है ?
संगीत एक कला है, जिसे कठोर साधना द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। संगीत
में नियमित अभ्यास आवश्यक है। संगीत में तीन कलाओं का समावेश
है—गायन, वादन एवं नृत्य। वैसे तो यह तीनों ही कलाएं अपने आप
में
स्वतंत्र हैं, फिर भी यह एक-दूसरे के बिना अपूर्ण हैं, अर्थात् ये तीनों
एक-दूसरे पर आश्रित कलाएं हैं। गायन का अर्थ है शब्द, स्वर और ताल के
माध्यम से अपने मन के भाव प्रकट करना। वादन का अर्थ है किसी वाद्ययन्त्र
को बजाकर अपने मन के भावों को प्रकट करना तथा नृत्य का अर्थ है अपनी
भाव-मुद्राओं द्वारा अपने मन के भावों को अभिव्यक्त करना। अतः संगीत एक
ऐसी कला है, जिसमें व्यक्ति गायन, वादन एवं नृत्य द्वारा अपने मन के भावों
को प्रकट करता है।
प्राचीनकाल में संगीत के स्थान पर ‘गन्धर्व’ शब्द का प्रयोग किया जाता था। ‘गन्धर्व’ का अर्थ है-‘ग’ गेय ‘ध’ वादन तथा ‘व’ वाद्ययन्त्र।
संगीत दो प्रकार का होता है—शास्त्रीय संगीत तथा भाव संगीत।
शास्त्रीय संगीत में गायन, वादन तथा नृत्य के लिए कुछ नियम निर्धारित किये जाते हैं, परन्तु भाव संगीत में ऐसे कोई नियम नहीं होते हैं। भाव संगीत के अन्तर्गत आता है—भक्ति संगीत।
प्राचीनकाल में संगीत के स्थान पर ‘गन्धर्व’ शब्द का प्रयोग किया जाता था। ‘गन्धर्व’ का अर्थ है-‘ग’ गेय ‘ध’ वादन तथा ‘व’ वाद्ययन्त्र।
संगीत दो प्रकार का होता है—शास्त्रीय संगीत तथा भाव संगीत।
शास्त्रीय संगीत में गायन, वादन तथा नृत्य के लिए कुछ नियम निर्धारित किये जाते हैं, परन्तु भाव संगीत में ऐसे कोई नियम नहीं होते हैं। भाव संगीत के अन्तर्गत आता है—भक्ति संगीत।
भक्ति संगीत क्या है ?
भगवान, इष्टदेव या किसी श्रेष्ठ व्यक्ति के प्रति श्रद्धा भक्ति कहलाती है
तथा गीत तथा वाद्यों द्वारा भगवत्प्रेम की प्राप्ति एवं भगवान् का गुणगान
करने को ‘भक्ति संगीत’ कहा जाता है। भक्ति संगीत की
परम्परा
प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। ‘ऋग्वेद’ में भक्ति
संगीत के
प्राचीनतम गीत आज भी विद्यमान हैं। ‘सामवेद’ को
ऋग्वेद का ही
रूपान्तर कहा जाता है; क्योंकि ऋग्वेद के मन्त्रों को जब सस्वर गाया गया,
तो उसे ‘सामवेद’ कहा गया। अतः
‘सामवेद’ को
संगीतमय एवं भक्तिमय कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी। दूसरे शब्दों में हम
‘सामवेद’ को प्रथम भक्ति संगीत होने का अधिकारी कह
सकते हैं।
प्राचीनकाल में ‘वाल्मीकीय रामायण’ में लव-कुश द्वारा रामायण-गान को भक्ति संगीत ही कहा जायेगा। भक्ति संगीत रामायण, महाभारत तथा पुराणों से होता हुआ अब आधुनिक काल में भी प्रचलित है। भक्ति संगीत के अन्तर्गत कीर्तन, संकीर्तन, भजन, हरिकथा, कालक्षेप आदि सम्मिलित होते हैं। भक्ति संगीत में स्वरों के साथ-साथ शब्दों का भी बहुत महत्व होता है। भक्ति संगीत में ऐसी शक्ति है कि वह सभी को अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है।
प्राचीनकाल में ‘वाल्मीकीय रामायण’ में लव-कुश द्वारा रामायण-गान को भक्ति संगीत ही कहा जायेगा। भक्ति संगीत रामायण, महाभारत तथा पुराणों से होता हुआ अब आधुनिक काल में भी प्रचलित है। भक्ति संगीत के अन्तर्गत कीर्तन, संकीर्तन, भजन, हरिकथा, कालक्षेप आदि सम्मिलित होते हैं। भक्ति संगीत में स्वरों के साथ-साथ शब्दों का भी बहुत महत्व होता है। भक्ति संगीत में ऐसी शक्ति है कि वह सभी को अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है।
2
स्वर, सप्तक एवं स्वरलिपियां
हमारे प्राचीन शास्त्रों में संगीत को कला के साथ ही विद्या भी कहा गया
है। गायन किया जाये अथवा किसी भी वाद्ययन्त्र पर वादन, पूर्ण दक्षता
प्राप्ति के लिए एक कला होने के कारण सतत रियाज आवश्यक ही नहीं, बल्कि
अनिवार्य है। परन्तु संगीत एक विद्या भी तो है, अतः विद्या के रूप में
आपको इसकी वर्णमाला को भी अनिवार्य रूप में सीखना ही होगा। सबसे बड़ी बात
तो यह है कि हिन्दी, अंग्रेजी आदि सभी भाषाओं में पूरी तरह अलग है संगीत
की वर्णमाला। परन्तु एक अद्भुत विशेषता है संगीत के इस अद्भुत संसार में।
सम्पूर्ण विश्व में संगीत की एक ही वर्णमाला है, सभी प्रकार के संगीत में
समान ही हैं इस वर्णमाला के वर्ण। यह बात दूसरी है कि संगीत की इस
वर्णमाला को हिन्दी में सप्तक और अंग्रेजी में ऑक्टेव कहा जाता है, तो
इसके वर्णों को हिन्दी में स्वर तथा अंग्रेजी में नोट्स। वैसे हिन्दी और
अंग्रेजी में यह अन्तर मात्र नामों का है, संगीत भारतीय हो या योरोपियन
अथवा विश्व के अन्य किसी भी भाग का, सभी में स्वरों की संख्या सात ही है,
और ये सात स्वर ही हैं सभी प्रकार के संगीत का मुख्य आधार।
सात शुद्ध स्वर (Seven Notes)
संगीत की वर्णामाला में मात्र सात ही अक्षर
हैं और इन अक्षरों को अक्षर
(Letters) नहीं, बल्कि स्वर (Notes) कहा जाता है। यहां विशेष ध्यान रखने
की बात यह है कि हमारी हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है और इसमें उन्चास
अक्षर हैं। अंग्रेजी भाषा की लिपि रोमन है और इसमें कुल छब्बीस अक्षर हैं।
परन्तु संगीत की भाषा तो पूरे विश्व में एक ही है और इसमें मात्र सात
अक्षर ही हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि हिन्दी और रोमन लिपि के अक्षर
स्वर और व्यंजन दो भागों में विभाजित होते हैं, परन्तु संगीत के इन सातों
अक्षरों को स्वर ही कहा जाता है। इनके लिए शब्द अक्षर नहीं, बल्कि स्वर का
ही प्रयोग होता है, परन्तु अंग्रेजी में इन्हें वॉवल्स (Vowels) नहीं,
बल्कि नोट्स कहा जाता है। हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में इन सात
स्वरों के पूरे शास्त्रीय नाम, सामान्य प्रचलित छोटे नाम और इनके चिह्न इस
प्रकार है—
स्वर का नाम | छोटा नाम | चिह्न | अंग्रेजी नाम | अंग्रेजी चिह्न |
1. षड्ज | सा | स | do | c |
2 ऋषभ | रे | र | re | d |
3. गांधार | गा | ग | me | E |
4. मध्यम | म | म | Fa | F |
5. पंचम | पा | प | Sol | G |
6. धैवत | ध | ध | le | A |
7. निषाध | नि | न | Si | B |
इन सात स्वरों (Notes) पर ही संगीत के संसार का सम्पूर्ण साम्राज्य खड़ा
है, अतः आप इस अध्याय का आगे भी बारम्बार अध्ययन करते रहें और सभी
सूचनाओं, चार्टों, नामों और चिह्नों को अपने मन और मस्तिष्क में अच्छी
प्रकार बसा लें। जैसा कि आप ऊपर देख रहे हैं, हिन्दी में तो स्वरों के
पूरे नाम, छोटे नाम और चिह्न परस्पर मिलते-जुलते हैं। प्रथम स्वर का पूरा
षड्ज, छोटा नाम सा और चिह्न स है, और यही स्थिति सभी नामों की है। परन्तु
अंग्रेजी में इनके पूरे नाम ही हैं, नामों में छोटे-बड़े का भेद नहीं और
इनके नाम व चिह्न भी परस्पर मिलते-जुलते रूप में नहीं हैं। अंग्रेजी में
षड्ज को डू (Do) कहा जाता है, तो इसका चिह्न C है। इसी प्रकार निषाध को सी
(Si) कहा जाता है और इसका चिह्न B है। वैसे आपका काम तो स्वरों के हिन्दी
नामों और चिह्नों को समझने से ही चल जायेगा; क्योंकि आगे इस पुस्तक में
अंग्रेजी नामों और निशानों का प्रयोग नहीं किया गया है। यह जानकारी तो
मात्र इसलिए दी गयी है कि संगीत सभाओं और ऑरकेस्ट्रा में विभिन्न
वाद्ययन्त्रों को बजाने वाले अधिकांश वादक दूसरों को प्रभावित करने के लिए
अंग्रेजी के इन नामों का प्रयोग करते हैं। वैसे आपके समान ही वे भी हिन्दी
की स्वरलिपियों के अनुसार ही धुनें बजाते हैं और हिन्दी में प्रकाशित
पुस्तकों का अध्ययन करते हैं।
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