जीवनी/आत्मकथा >> दूरद्रष्टा नरेन्द्र मोदी दूरद्रष्टा नरेन्द्र मोदीपंकज कुमार
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दूरद्रष्टा नरेन्द्र मोदी
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नरेन्द्र मोदी का उदेश्य है कि 21 वीं सदी का गुजरात अपने सुदृढ़ विकास के
साथ-साथ औद्योगिक विकास, विश्व स्तरीय संस्थान, ऊर्जावान युवाओं की क्षमता
की ऐसी तस्वीर पेश करे कि दुनिया देखे। ‘बदलता गुजरात, विकास की
ओर उन्मुख गुजरात’ मोदी का यही नारा है और वह अपने इस उद्देश्य पर
खरे उतरते दिखाई दे रहे हैं। प्रदेश में विकास का जो फार्मूला उन्होंने अपनाया
वह आज हर तरफ मिसाल की तरह पेश किया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी गुजरात की
जमीनी हकीकत जानते और पहचानते हैं। वहां के प्रशासनिक तंत्र से भली-भांति
वाकिफ हैं। अपने सपनों को साकार रूप देने के लिए प्रदेश मे औद्योगिक
घरानों से लेकर सामाजिक संस्थानों को नई दिशा देने का जो सूत्रपात
उन्होंने किया है आज वह बदलते गुजरात की अलग कहानी कह रहा है। आज वह
गुजरात के तीसरी बार मुख्यमंत्री बनें हैं। उनकी सोच है कि 2010 तब जब
गुजराती अपनी स्वर्ण जयंती मनाएगा उस समय गुजरात की तस्वीर कुछ और हो।
नरेन्द्र मोदी यानी कॉमन मैन
चुनाव जीतने के बाद नरेन्द्र मोदी की यह टिप्पणी कि ‘मैं सात
अक्टूबर 2001 को स राज्य (गुजरात) का मुख्यमंत्री नहीं बना। मैं तो शुरु
से ‘सीएम’ हूँ। आज भी सीएम हूं और कल भी रहूँगा,
क्योंकि सीएम से मेरा मतलब कॉमन मैन’ यानी आम आदमी है।’
मीडिया से लेकर आम आदमी के बीच सुर्खियों में रही। नरेन्द्र मोदी ने यह साबित कर
दिया कि वह कॉमन मैन (आम आदमी) हैं और कॉमन मैन की तरह ही काम करना चाहते हैं। 2001 में जब नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री बने थे तब उनकी छवि एक कट्टर
हिन्दूवादी छवि थी।
लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में इस बात को प्रमाणित किया कि नहीं ऐसी बात नहीं है। गोधरा कांड के बाद नरेन्द्र मोदी की छवि ऐसी उभरकर आयी कि वह नायक, एक खलनायक की भूमिका में है, लेकिन जब नरेन्द्र मोदी ने सफलता के साथ पांच साल गुजरात का नेतृत्व किया तो उनकी नेतृत्व क्षमता के आगे सभी फेल हो गए। यह बात सच है कि पांच सालों में गुजरात ने जो समृद्धि की उसकी मिशाल बहुत कम देखने को मिलती है। मोदी का जनाधार बढ़ा लेकिन मीडिया ने हमेशा उनकी छवि अलग रूप से पेश की। नरेन्द्र मोदी तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने। यह शायद ही कोई बता सके कि इस बात में कितनी सच्चाई है कि गोधरा कांड में नरेन्द्र मोदी का हाथ था, लेकिन यह जरूर है कि वह एक आम आदमी की तरह की काम करते रहना चाहते हैं, इस बात का प्रमाण उनके द्वारा किए गए विकास कार्यों को देखकर मिलता है। नरेन्द्र भाई का यह तर्क बहुत ही लाजवाब है कि क्या अगर गुजरात का विकास हो रहा है, हर गाँव में पीने का पानी जा रहा है, हर गांव में पक्की सड़के हैं तो क्या उस पर यह लिखा होगा कि हिन्दू या मुसलमान के लिए है। यह तो सबके लिए है। नरेन्द्र मोदी भाईचारे की बात करते हैं न कि हिन्दूत्व की।
गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर सभी को निगाहें उन पर थीं। सबके मन में कई तरह के सवाल उठ रहे थे, क्या नरेन्द्र मोदी पुनः सत्ता में आएंगे इस बात को लेकर क्या हिन्दू क्या मुसलमान क्या सिख क्या ईसाई सभी धर्म के लोग आपस में चर्चा करते नजर आ रहे थे। किसी ने कहा कि नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जितना विरोध हो रहा है उसे देखते हुए लगता नहीं है कि वह दुबारा सत्ता में आ पाएंगे। एक तरफ विकास कार्यों की दुहाई दी जा रही थी तो दूसरी ओर विरोधी उनके हिन्दूत्व की छवि को उजागर कर अपने पक्ष में वोट बैंक को करते नजर आ रहे थे।
जमीनी हकीकत कोई नहीं पहचान पा रहा था। हर तरफ एक ही तरह की बात आ रही थी कि कांग्रेस को पहले से फायदा हो सकता है, कितना फायदा होगा। इसका किसी को अंदाजा नहीं था। बस कयास लगाए जा रहे थे। कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही कार्यालयों में चर्चा का दौर जारी था। कांग्रेस के रणनीतिकार और भाजपा के रणनीतिकार अपना-अपना कयास लगा रहे थे। क्योंकि यह लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच न होकर कांग्रेस और नरेन्द्र मोदी के बीच लड़ी जा रही थी। सभी के मन में सवाल था कि भाजपा में बहुत विरोध है। नरेन्द्र मोदी ने सीटिंग विधायकों के टिकट काट दिए। लेकिन नरेन्द्र मोदी की अपनी क्या रणनीति थी इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा था। उन्होंने अपने विरोधियों के टिकट नहीं काटे बल्कि जनता के विरोधियों के टिकट काटे। जनता के इन विरोधियों पर कांग्रेस की नजर थी। कांग्रेसियों का तर्क था कि भाजपा के बागी अगर कांग्रेस के साथ होंगे तो कांग्रेस को फायदा होगा। यह फायदा किस तरह का था बस कयास लगाया जा रहा था। गुजरात के सभी क्षेत्रों के लोग नरेन्द्र मोदी के विरोध में नजर आ रहे थे लेकिन यह विरोध कहां था इसकी तहकीकात करने की जरूरत है। नरेन्द्र मोदी का विरोध गुजरात में नहीं था। दिल्ली में बैठे उन नेताओं के बीच था जिन्हें नरेन्द्र मोदी भाव नहीं देते थे। जिनके कहने पर शासन नहीं करते थे। जिनके लिए वह आम आदमी बनकर रहना चाहते थे। लेकिन उन नेताओं को यह बात बुरी लग रही थी क्यों ? क्योंकि वह चाहते थे कि वह उनके लिए खास बनकर रहे।
नरेन्द्र मोदी के व्यक्तिगत जीवन का उद्देश्य था कि वह सबके लिए आम हों किसी के लिए खास न हों। यह बात गुजरात में भाजपा के उन नेताओं को खटकती थी जो एयरकंडिशन कमरों में बैठकर राजनीति करना चाहते थे। जिनके लिए कॉमन मैन जैसी कोई बात नहीं थी। बस बात यही थी कि उन्हें किसी तरह से सत्ता मिल जाए। नरेन्द्र मोदी ने आम इंसान की नब्ज को पहचाना। गुजरात के विकास कार्यों की ओर ध्यान देना शुरू किया। उनके लिए आम आदमी का विकास हमेशा प्राथमिकता में रहा। 2002 में जब वह मुख्यमंत्री बने तो उनका लक्ष्य गुजरात के वह 18 हजार गांव थे जिनका विकास करना उनकी प्राथमिकता मे शामिल रहा। 2002 में मुख्यमंत्री बनने के बाद गुजरात में ग्राम पंचायत के चुनाव होने थे मोदी ने यह ऐलान किया कि जो गांव सर्वसम्मति से अपने सरपंच का चुनाव करेगा उस गांव के विकास के लिए एक लाख रुपए अलग से दिए जाएंगे। परिणाम यह हुआ कि गुजरात के गाँवों की ज्यादातर विवेकशील जनता ने मोदी के इसी फार्मूले को चुना मोदी अपने इस काम में सफल भी हुए।
व्यक्तिगत तौर पर मौदी का जीवन सरल और सहज रहा है। आज भी उनके मुख्यमंत्री आवास पर उस तरह से भीड़ नहीं रहती है जैसा कि अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के यहां रहती है। क्योंकि वह सबके लिए आम हैं और सबके लिए खास। इसी उद्देश्य के साथ मोदी अपने काम को आगे बढ़ा रहे हैं। उनका जीवन सादा है और इस बात का प्रमाण उनके निजी जीवन में भी मिलता है कि वह एक कॉमन मैन की तरह जीवन जीते हैं। हालांकि कहा जाता है कि वह एक अक्खड़ किस्म के व्यक्ति हैं लेकिन इस बात में सच्चाई नहीं है। उनका स्वभाव ऐसा है कि वह जो कुछ भी बोलते हैं वह कम शब्दों में बोलते हैं और कम बोलने की आदत है परंतु उनके चेहरे ती भाव को देखकर ही लोग यह कहते हैं कि वह अक्खड़ है। नरेन्द्र मोदी से मिलने का सौभाग्य दो-तीन बार मिला वह भी पत्रकार वार्ता के दौरान। कभी व्यक्तिगत तौर पर उनसे लंबी वार्ता नहीं हुई। लेकिन जितनी बार भी मुलाकात हुई वह एक सरल मुलाकात रही। नपे तुले शब्दों में उन्होंने पत्रकारों के सवाल के जवाब दिए। कभी अतिवादिता नहीं झलकी। हमेशा वह आम आदमी की भाषा बोलते रहे और उन्होंने यह साबित भी कर दिया कि अगर जनता साथ है तो विरोध के कोई मायने नहीं रहते।
नरेन्द्र मोदी को लेकर कई प्रकार के समाचार लिखे गए। गोधरा कांड के बाद गुजरात जाने का भी अवसर मिला। गुजरात की जनता के बीच नरेन्द्र मोदी का उस तरह से कोई विरोध देखने को नहीं मिला जिस प्रकार का विरोध दिल्ली में लोग करते रहे। वहां की जनता उनके द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों से खुश है लेकिन विरोधियों का सबसे बड़ा दर्द है कि आम जनता खुश क्यों है। आज नरेन्द्र मोदी तीसरी बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। उनके तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने से पहले और बनने के बाद मीडिया में तरह-तरह कती आशंकाएं जाहिर की गई। जिस दिन चुनाव हो रहा था उस दिन हमारे पास एक एसएमएस आया कि मोदी आउट। यानी मोदी चुनाव हार रहे हैं और कांग्रेस सरकार बना रही है। इस प्रकार का एसएमएस कई और पत्रकार साथियों को भी मिला। मीडिया में इस बात की चर्चा जोरों पर रही कि लगता है मोदी चुनाव हार जाएंगे और कांग्रेस सरकार बना ले जाएगी। इसके पीछे तर्क यही दिया जा रहा था कि मोदी के साथ गुजरात में कोई नहीं है। जितने बड़े नेता हैं सब विरोध में हैं। लेकिन मोदी को विश्वास था कि कोई हो चाहे न हो जनता उनके साथ है और वही चुनाव जीतेंगे। उनके आत्मविश्वास की झलक चुनावों में भी देखने को मिल रही थी। विरोधी परेशान थे कि आखिर मोदी क्यों इतना आत्मविश्वासी हो गए हैं। लेकिन एक बात तय है कि जो व्यक्ति जीवन में संघर्ष कर बुलंदियों को छूता है उसके अंदर हमेशा आत्मविश्वास बना रहता है। यह आत्मविश्वास संघर्ष से निकला हुआ सच है। इसलिए उन्हें आत्विश्वास था और उन्होंने इस आत्मविश्वास के बल पर अपने आपकों ऐसे मुकाम पर पहुँचाया कि देश ही नहीं दुनिया में उनके नाम की चर्चा होती रही।
मोदी, मोदी और मोदी इसी के साथ गुजरात की जनता ने उन्हें तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाया और ‘ए मैन विद ए मिशन’ की भांति काम करने के लिए उनको प्रेरित किया। आने वाले पांच वर्षों में वह क्या करेंगे यह तो भविष्य की गर्त में हैं। लेकिन बीते वर्षों में उन्होंने जो कुछ किया वह करिश्मा ही कहा जा सकता है। क्योंकि गुजरात की जनता समृद्ध है औऱ समृद्धि का यह वाहक लगातार उनकी समृद्धि के बारे में सोच रहा है। आजादी के पचास सालों के बाद गुजरात में जितना विकास नहीं हुआ उतना विकास केवल पांच सालों में हो गया। जो अपने आप में एक दूरद्रष्टा की सोच कही जा सकती है। मोदी का करिशिमाई व्यक्तित्व ऐसा रहा है कि उन्होंने वह काम कर दिखाया जो किसी भी जनसेवक को करना चाहिए।
‘दूरद्रष्टा’ नरेन्द्र मोदी’ पुस्तक का संकलन एक तरह से मीडिया में फैली मोदी की लोकप्रियता और उनके विषय में तमाम तरह के आकलनों की उपज है।
जिस प्रकार में मोदी छाए रहे उसे देखकर हर व्यक्ति जानना चाहेगा कि मोदी का क्या करिश्मा रहा है। यह पुस्तक मोदी के निजी जीवन से ज्यादा उनके कामकाज के तौर-तरीकों पर केन्द्रित है। मेरा मानना है कि व्यक्तिगत जीवन से कहीं महत्वपूर्ण व्यवसायिक जीवन है जिसके बारे में इंसान जानना चाहता है। निजी जीवन में किसके क्या रहा है उसके अंदर नहीं झांकना चाहिए। लेकिन यह सच है कि आज हर कोई निजी जीवन में ताक-झांक करने की कोशिश में लगा है। पुस्तक में मोदी के व्यक्तिगत की झलक को दिखाते हुए उनके काम-काज के तौर तरीकों और उनकी उपलब्धियों को समाहित किया गया है। मीडिया में मोदी को किस तरह से दिखाया गया, बताया गया। वह सारी बातें मीडिया के संदर्भ से ली गई हैं।
अंत में मैं आभारी हूं डायमंड प्रकाशन के श्री नरेन्द्र वर्मा जी का जिन्होंने 23 दिसंबर 2007 को मुझे फोन करके गुजरात के इश गौरव के ऊपर एक किताब लिखने के लिए प्रेरित किया। विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित टिप्पणियों, नरेन्द्र मोदी की पुस्तक’ आपातकाल में गुजरात’ और नरेन्द्र मोदी की जीवनी पर आधारित वेबसाइट के अलावा कई पत्रकार मित्रों के सहयोग से यह पुस्तक आपके सामने हैं। मैं आभारी हूं उन सभी मीडियाकर्मियों और राजनीतिक विश्लेषकों का जिनकी सामग्री का मैंने इस पुस्तक में उपयोग किया है।
लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में इस बात को प्रमाणित किया कि नहीं ऐसी बात नहीं है। गोधरा कांड के बाद नरेन्द्र मोदी की छवि ऐसी उभरकर आयी कि वह नायक, एक खलनायक की भूमिका में है, लेकिन जब नरेन्द्र मोदी ने सफलता के साथ पांच साल गुजरात का नेतृत्व किया तो उनकी नेतृत्व क्षमता के आगे सभी फेल हो गए। यह बात सच है कि पांच सालों में गुजरात ने जो समृद्धि की उसकी मिशाल बहुत कम देखने को मिलती है। मोदी का जनाधार बढ़ा लेकिन मीडिया ने हमेशा उनकी छवि अलग रूप से पेश की। नरेन्द्र मोदी तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने। यह शायद ही कोई बता सके कि इस बात में कितनी सच्चाई है कि गोधरा कांड में नरेन्द्र मोदी का हाथ था, लेकिन यह जरूर है कि वह एक आम आदमी की तरह की काम करते रहना चाहते हैं, इस बात का प्रमाण उनके द्वारा किए गए विकास कार्यों को देखकर मिलता है। नरेन्द्र भाई का यह तर्क बहुत ही लाजवाब है कि क्या अगर गुजरात का विकास हो रहा है, हर गाँव में पीने का पानी जा रहा है, हर गांव में पक्की सड़के हैं तो क्या उस पर यह लिखा होगा कि हिन्दू या मुसलमान के लिए है। यह तो सबके लिए है। नरेन्द्र मोदी भाईचारे की बात करते हैं न कि हिन्दूत्व की।
गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर सभी को निगाहें उन पर थीं। सबके मन में कई तरह के सवाल उठ रहे थे, क्या नरेन्द्र मोदी पुनः सत्ता में आएंगे इस बात को लेकर क्या हिन्दू क्या मुसलमान क्या सिख क्या ईसाई सभी धर्म के लोग आपस में चर्चा करते नजर आ रहे थे। किसी ने कहा कि नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जितना विरोध हो रहा है उसे देखते हुए लगता नहीं है कि वह दुबारा सत्ता में आ पाएंगे। एक तरफ विकास कार्यों की दुहाई दी जा रही थी तो दूसरी ओर विरोधी उनके हिन्दूत्व की छवि को उजागर कर अपने पक्ष में वोट बैंक को करते नजर आ रहे थे।
जमीनी हकीकत कोई नहीं पहचान पा रहा था। हर तरफ एक ही तरह की बात आ रही थी कि कांग्रेस को पहले से फायदा हो सकता है, कितना फायदा होगा। इसका किसी को अंदाजा नहीं था। बस कयास लगाए जा रहे थे। कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही कार्यालयों में चर्चा का दौर जारी था। कांग्रेस के रणनीतिकार और भाजपा के रणनीतिकार अपना-अपना कयास लगा रहे थे। क्योंकि यह लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच न होकर कांग्रेस और नरेन्द्र मोदी के बीच लड़ी जा रही थी। सभी के मन में सवाल था कि भाजपा में बहुत विरोध है। नरेन्द्र मोदी ने सीटिंग विधायकों के टिकट काट दिए। लेकिन नरेन्द्र मोदी की अपनी क्या रणनीति थी इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा था। उन्होंने अपने विरोधियों के टिकट नहीं काटे बल्कि जनता के विरोधियों के टिकट काटे। जनता के इन विरोधियों पर कांग्रेस की नजर थी। कांग्रेसियों का तर्क था कि भाजपा के बागी अगर कांग्रेस के साथ होंगे तो कांग्रेस को फायदा होगा। यह फायदा किस तरह का था बस कयास लगाया जा रहा था। गुजरात के सभी क्षेत्रों के लोग नरेन्द्र मोदी के विरोध में नजर आ रहे थे लेकिन यह विरोध कहां था इसकी तहकीकात करने की जरूरत है। नरेन्द्र मोदी का विरोध गुजरात में नहीं था। दिल्ली में बैठे उन नेताओं के बीच था जिन्हें नरेन्द्र मोदी भाव नहीं देते थे। जिनके कहने पर शासन नहीं करते थे। जिनके लिए वह आम आदमी बनकर रहना चाहते थे। लेकिन उन नेताओं को यह बात बुरी लग रही थी क्यों ? क्योंकि वह चाहते थे कि वह उनके लिए खास बनकर रहे।
नरेन्द्र मोदी के व्यक्तिगत जीवन का उद्देश्य था कि वह सबके लिए आम हों किसी के लिए खास न हों। यह बात गुजरात में भाजपा के उन नेताओं को खटकती थी जो एयरकंडिशन कमरों में बैठकर राजनीति करना चाहते थे। जिनके लिए कॉमन मैन जैसी कोई बात नहीं थी। बस बात यही थी कि उन्हें किसी तरह से सत्ता मिल जाए। नरेन्द्र मोदी ने आम इंसान की नब्ज को पहचाना। गुजरात के विकास कार्यों की ओर ध्यान देना शुरू किया। उनके लिए आम आदमी का विकास हमेशा प्राथमिकता में रहा। 2002 में जब वह मुख्यमंत्री बने तो उनका लक्ष्य गुजरात के वह 18 हजार गांव थे जिनका विकास करना उनकी प्राथमिकता मे शामिल रहा। 2002 में मुख्यमंत्री बनने के बाद गुजरात में ग्राम पंचायत के चुनाव होने थे मोदी ने यह ऐलान किया कि जो गांव सर्वसम्मति से अपने सरपंच का चुनाव करेगा उस गांव के विकास के लिए एक लाख रुपए अलग से दिए जाएंगे। परिणाम यह हुआ कि गुजरात के गाँवों की ज्यादातर विवेकशील जनता ने मोदी के इसी फार्मूले को चुना मोदी अपने इस काम में सफल भी हुए।
व्यक्तिगत तौर पर मौदी का जीवन सरल और सहज रहा है। आज भी उनके मुख्यमंत्री आवास पर उस तरह से भीड़ नहीं रहती है जैसा कि अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के यहां रहती है। क्योंकि वह सबके लिए आम हैं और सबके लिए खास। इसी उद्देश्य के साथ मोदी अपने काम को आगे बढ़ा रहे हैं। उनका जीवन सादा है और इस बात का प्रमाण उनके निजी जीवन में भी मिलता है कि वह एक कॉमन मैन की तरह जीवन जीते हैं। हालांकि कहा जाता है कि वह एक अक्खड़ किस्म के व्यक्ति हैं लेकिन इस बात में सच्चाई नहीं है। उनका स्वभाव ऐसा है कि वह जो कुछ भी बोलते हैं वह कम शब्दों में बोलते हैं और कम बोलने की आदत है परंतु उनके चेहरे ती भाव को देखकर ही लोग यह कहते हैं कि वह अक्खड़ है। नरेन्द्र मोदी से मिलने का सौभाग्य दो-तीन बार मिला वह भी पत्रकार वार्ता के दौरान। कभी व्यक्तिगत तौर पर उनसे लंबी वार्ता नहीं हुई। लेकिन जितनी बार भी मुलाकात हुई वह एक सरल मुलाकात रही। नपे तुले शब्दों में उन्होंने पत्रकारों के सवाल के जवाब दिए। कभी अतिवादिता नहीं झलकी। हमेशा वह आम आदमी की भाषा बोलते रहे और उन्होंने यह साबित भी कर दिया कि अगर जनता साथ है तो विरोध के कोई मायने नहीं रहते।
नरेन्द्र मोदी को लेकर कई प्रकार के समाचार लिखे गए। गोधरा कांड के बाद गुजरात जाने का भी अवसर मिला। गुजरात की जनता के बीच नरेन्द्र मोदी का उस तरह से कोई विरोध देखने को नहीं मिला जिस प्रकार का विरोध दिल्ली में लोग करते रहे। वहां की जनता उनके द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों से खुश है लेकिन विरोधियों का सबसे बड़ा दर्द है कि आम जनता खुश क्यों है। आज नरेन्द्र मोदी तीसरी बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। उनके तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने से पहले और बनने के बाद मीडिया में तरह-तरह कती आशंकाएं जाहिर की गई। जिस दिन चुनाव हो रहा था उस दिन हमारे पास एक एसएमएस आया कि मोदी आउट। यानी मोदी चुनाव हार रहे हैं और कांग्रेस सरकार बना रही है। इस प्रकार का एसएमएस कई और पत्रकार साथियों को भी मिला। मीडिया में इस बात की चर्चा जोरों पर रही कि लगता है मोदी चुनाव हार जाएंगे और कांग्रेस सरकार बना ले जाएगी। इसके पीछे तर्क यही दिया जा रहा था कि मोदी के साथ गुजरात में कोई नहीं है। जितने बड़े नेता हैं सब विरोध में हैं। लेकिन मोदी को विश्वास था कि कोई हो चाहे न हो जनता उनके साथ है और वही चुनाव जीतेंगे। उनके आत्मविश्वास की झलक चुनावों में भी देखने को मिल रही थी। विरोधी परेशान थे कि आखिर मोदी क्यों इतना आत्मविश्वासी हो गए हैं। लेकिन एक बात तय है कि जो व्यक्ति जीवन में संघर्ष कर बुलंदियों को छूता है उसके अंदर हमेशा आत्मविश्वास बना रहता है। यह आत्मविश्वास संघर्ष से निकला हुआ सच है। इसलिए उन्हें आत्विश्वास था और उन्होंने इस आत्मविश्वास के बल पर अपने आपकों ऐसे मुकाम पर पहुँचाया कि देश ही नहीं दुनिया में उनके नाम की चर्चा होती रही।
मोदी, मोदी और मोदी इसी के साथ गुजरात की जनता ने उन्हें तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाया और ‘ए मैन विद ए मिशन’ की भांति काम करने के लिए उनको प्रेरित किया। आने वाले पांच वर्षों में वह क्या करेंगे यह तो भविष्य की गर्त में हैं। लेकिन बीते वर्षों में उन्होंने जो कुछ किया वह करिश्मा ही कहा जा सकता है। क्योंकि गुजरात की जनता समृद्ध है औऱ समृद्धि का यह वाहक लगातार उनकी समृद्धि के बारे में सोच रहा है। आजादी के पचास सालों के बाद गुजरात में जितना विकास नहीं हुआ उतना विकास केवल पांच सालों में हो गया। जो अपने आप में एक दूरद्रष्टा की सोच कही जा सकती है। मोदी का करिशिमाई व्यक्तित्व ऐसा रहा है कि उन्होंने वह काम कर दिखाया जो किसी भी जनसेवक को करना चाहिए।
‘दूरद्रष्टा’ नरेन्द्र मोदी’ पुस्तक का संकलन एक तरह से मीडिया में फैली मोदी की लोकप्रियता और उनके विषय में तमाम तरह के आकलनों की उपज है।
जिस प्रकार में मोदी छाए रहे उसे देखकर हर व्यक्ति जानना चाहेगा कि मोदी का क्या करिश्मा रहा है। यह पुस्तक मोदी के निजी जीवन से ज्यादा उनके कामकाज के तौर-तरीकों पर केन्द्रित है। मेरा मानना है कि व्यक्तिगत जीवन से कहीं महत्वपूर्ण व्यवसायिक जीवन है जिसके बारे में इंसान जानना चाहता है। निजी जीवन में किसके क्या रहा है उसके अंदर नहीं झांकना चाहिए। लेकिन यह सच है कि आज हर कोई निजी जीवन में ताक-झांक करने की कोशिश में लगा है। पुस्तक में मोदी के व्यक्तिगत की झलक को दिखाते हुए उनके काम-काज के तौर तरीकों और उनकी उपलब्धियों को समाहित किया गया है। मीडिया में मोदी को किस तरह से दिखाया गया, बताया गया। वह सारी बातें मीडिया के संदर्भ से ली गई हैं।
अंत में मैं आभारी हूं डायमंड प्रकाशन के श्री नरेन्द्र वर्मा जी का जिन्होंने 23 दिसंबर 2007 को मुझे फोन करके गुजरात के इश गौरव के ऊपर एक किताब लिखने के लिए प्रेरित किया। विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित टिप्पणियों, नरेन्द्र मोदी की पुस्तक’ आपातकाल में गुजरात’ और नरेन्द्र मोदी की जीवनी पर आधारित वेबसाइट के अलावा कई पत्रकार मित्रों के सहयोग से यह पुस्तक आपके सामने हैं। मैं आभारी हूं उन सभी मीडियाकर्मियों और राजनीतिक विश्लेषकों का जिनकी सामग्री का मैंने इस पुस्तक में उपयोग किया है।
कुमार पंकज
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