लेख-निबंध >> रामसेतु रामसेतुसुब्रमण्यम स्वामी
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रामसेतु के विषय में ऐतिहासिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित तथ्य...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
रामसेतु के विषय में लेखक के अध्ययन में सारे ऐतिहासिक, आर्थिक,
पर्यावरणीय और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित तथ्यों की पड़ताल शामिल है जो
सेतुसमुद्रम शिप चैनल प्रोजेक्ट के निर्माण के लिये जरूरी थी। लेखक ने पाक
स्ट्रेट एवं मन्तार की खाड़ी में रामसेतु को तोड़े जाने का विरोध किया है।
उन्होंने वित्तीय असंगतियों की उपस्थिति और पर्यावरण के प्रति नुकसानदायक
एसएससीपी प्रोजेक्ट को सफेद हाथी की संज्ञा दी है और इसे देश की सुरक्षा
के लिए खतरा बताया है। साथ ही वे तर्क देते हैं कि एसएससीपी की रूपरेखा
विध्वंसक रास्ते पर आधारित है और इससे सरकार हमारे देश की सभ्यता एवं
सनातन धर्म के साथ खिलवाड़ भी कर रही है।
रामायण के अनुसार, इस पुल को राम के निर्देशन पर कोरल चट्टानों और रीफ से बनाया गया था। कोरल चट्टानों और रीफ से बने इस पुल की स्थापना की पुष्टि आधुनिक सैटेलाइट द्वाका खींचे गये चित्रों की मदद से गयी है जिसके अनुसार कहा गया है कि यह एक प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवीय रचना है और इस बात की पुष्टि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा पेश की गयी एक रिपोर्ट में की गयी है जिसे सरकार द्वारा जनता से छुपाया गया।
इसलिए लेखक ने यह तर्क दिया है कि वह जरूरी है कि विशेषज्ञों वाली एक निष्पक्ष एवं स्वतंत्र संस्था की स्थापना की जाए जिससे सरकार की कमियां जनता के सामने आ सकें।
रामायण के अनुसार, इस पुल को राम के निर्देशन पर कोरल चट्टानों और रीफ से बनाया गया था। कोरल चट्टानों और रीफ से बने इस पुल की स्थापना की पुष्टि आधुनिक सैटेलाइट द्वाका खींचे गये चित्रों की मदद से गयी है जिसके अनुसार कहा गया है कि यह एक प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवीय रचना है और इस बात की पुष्टि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा पेश की गयी एक रिपोर्ट में की गयी है जिसे सरकार द्वारा जनता से छुपाया गया।
इसलिए लेखक ने यह तर्क दिया है कि वह जरूरी है कि विशेषज्ञों वाली एक निष्पक्ष एवं स्वतंत्र संस्था की स्थापना की जाए जिससे सरकार की कमियां जनता के सामने आ सकें।
प्रस्तावना
रामसेतु एक आश्चर्यजनक ऐतिहासिक पक्ष है जो भौतिक रूप में उत्तर में बंगाल
की खाड़ी को दक्षिण में शांत और स्वच्छ पानी वाली मन्नार की खाड़ी से अलग
करता है, जो धार्मिक एवं मानसिक रूप से दक्षिण भारत को उत्तर भारत से
जोड़ता है। वाल्मीकि के रामायण में एक ऐसे रामसेतु का जिक्र है जो काफी
प्राचीन है और गहराई में हैं तथा जो 1.5 से 2.5 मीटर तक पतले कोरल और
पत्थरों से भरा पड़ा है। प्राचीन वस्तुकारों ने इस संरचना की परत का उपयोग
बड़े पैमाने पर पत्थरों और गोल आकार के विशाल चट्टानों को कम करने में
किया और साथ ही साथ कम से कम घनत्व तथा छोटे पत्थरों और चट्टानों का उपयोग
किया, जिससे आसानी से एक लंबा रास्ता तो बना ही, साथ ही समय के साथ यह
इतना मजबूत भी बन गया कि मनुष्यों व समुद्र के दबाव को भी सह
सके।
शांत परिस्थिति के कारण मन्नार की खाड़ी में काफी कम संख्या में कोरल और
समुद्र जीव जंतुओं का विकास होता है, जबकि बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में
ये जीव-जंतु पूरी तरह अनुपस्थित हैं। हर साल बंगाल की खाड़ी में हर साल
आने वाले खतरनाक तूफानों से राम सेतु ही बचाता है जिस कारण मन्नार की
खाड़ी में असंतुलन की स्थिति नहीं आती है। इसलिए हम लोग भी वैज्ञानिकों के
अनुसंधान से यह निष्कर्ष पा रहे हैं कि रामसेतु के कारण सुनामी को भी
कमजोर होना पड़ा है। नहीं तो अब तक के अनुभवों के मुकाबले सुनामी के कारण
भयंकर क्षति हो जाती।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि और उसके लेफ्टिनेंट एवं केंद्रीय शिपिंग तथा सड़क परिवहन मंत्री टी आर बालू ने जनता को संबोधित करते हुए रामसेतु की अनुपस्थिति के बारे में कहा था और एसएससीपी के आर्थिक एवं पर्यावरणीय योग्यता के विषय में भी कुछ बातें बताई थीं।
वास्तव में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 8 अप्रैल, 1999 को भूतल परिवहन मंत्री को लिखे एक पत्र में मत देते हुए कहा था कि एसएससीपी को अनुपयोगी मानते हुए रोक देना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार प्राकृतिक विपदा आ सकती है। यह मत 1998 में नीरी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के विश्लेषण के आधार पर दिया गया था। हालांकि 2004 में मंत्री ने 1998 पर आधारित अपने मत को उलट दिया था। क्यों ? इस बात के लिए किसी तरह का विश्लेषण नहीं दिया गया।
मंत्री महोदय ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक डॉ. एस बद्रीनारायन द्वारा निर्मित एक रिपोर्ट के बारे में जनता की राय जानकर मंत्री महोदय भी आश्चर्यचकित रह गए। जो कि 2002 में समुद्र के पास और सेतु के निकट गए एक अनुसंधान पर आधारित था जिसमें कहा गया है कि रामसेतु का निर्माण 9000 वर्ष पहले हुआ था और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि और उनके अनुनायियों द्वारा कहा गया कि यह एक प्राकृतिक संरचना नहीं है। हालांकि जीएसआई पर बिना ध्यान दिए बना केन्द्र सरकार की ओर से लेखक ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी, जिसमे कहा गया कि रामसेतु मानव निर्मित है, इसके बारे में सरकार को किसी तरह की जानकारी नहीं है, पूर्व एएसआई डीजी एस और राव ने भी सरकार के इस मत पर विरोध प्रकट किया है।
एसएससीपी को बदलने का सरकार का निर्णय उसका खुद का था तथा जो निराधार और हिन्दू धर्म के लिए पक्षपाती निर्णय वाला था। इसलिए इसके बारे में कोर्ट में कोई विशेष जांच नहीं की गई। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट के प्रथम द्रष्टया बहस के आधार पर रामसेतु को समाप्त करने पर रोक लगा दी है। एसएससीपी में आर्थिक नुकसान, पर्यावरणीय, तबाही, राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे और स्मारकों के रूप में भ्रष्टाचार भी है। यह खुदाई करने वाली कंपनियों को काफी आसानी से धन दिला सकता है और एलएलटीटीई के आतंकियों एवं दवा तस्करों को केरल के तट पर आवाजाही की स्वतंत्रता दे सकता है। इसलिए देश विरोधी परियोजना को नष्ट कर देना चाहिए, यदि किसी भी तरह का वैकल्पिक मार्ग बिना रामसेतु को नष्ट किए, दिया जाता है और सरकार द्वारा इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए।
इस प्रकार सत्य की स्थापना और रामसेतु को सुरक्षा प्रदान करने के लिए मैं सोचता हूं कि मुझे केवल कोर्ट में नहीं जाना चाहिए, बल्कि सरकार द्वारा इसकी जांच के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए, साथ ही आसान भाषा में एक किताब लिखनी चाहिए, जितना संभव हो सके, जिसमें सारे मामले से संबंधित सूचना हो और जनता को उनके बारे में जानकारी हो।
इस पुस्तक को लिखने के लिए मुझे कैप्टन एच बालाकृष्णन, डॉ० एस कल्याणरामन और वी० सुंदर, आईएएस (अवकाशप्राप्त), श्रीमती वी०एस० चंद्रलेखा आईएएस (अवकाशप्राप्त) और मेरे सहकर्मी, विशेष रूप से धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने उपयोगी तथ्य उपलब्ध कराए और साथ ही परियोजना के विरोध में चलने वाले संघर्ष में भागीदारी करने के लिए भी कहा, जो कि वर्तमान में निर्मित है।
मेरी पत्नी, डॉ० रॉक्सन एस स्वामी, वकील, सुप्रीम कोर्ट, ने मेरी सहायता के लिए तकलीफें सही और किताब में प्रकाशित तथ्यों के संपादन और उन्हें सही करने का योगदान किया। उससे रामसेतु का भी भ्रमण किया और दूसरों को सूचना भी दी कि क्यों इसे रहना चाहिए तथा कैसा दिखाई देता है ? उसे मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं क्योंकि बिना उसके जिम्मेदारी भरे कार्य के पुस्तक में कई गलतियां शेष रह जातीं।
एम एस सुब्बुलक्ष्मी को मेरा कोटि-कोटि धन्यवाद जिसने बिना शिकायक किए काफी धैर्यपूर्वक विभिन्न मामलों को टाइप किया।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि और उसके लेफ्टिनेंट एवं केंद्रीय शिपिंग तथा सड़क परिवहन मंत्री टी आर बालू ने जनता को संबोधित करते हुए रामसेतु की अनुपस्थिति के बारे में कहा था और एसएससीपी के आर्थिक एवं पर्यावरणीय योग्यता के विषय में भी कुछ बातें बताई थीं।
वास्तव में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 8 अप्रैल, 1999 को भूतल परिवहन मंत्री को लिखे एक पत्र में मत देते हुए कहा था कि एसएससीपी को अनुपयोगी मानते हुए रोक देना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार प्राकृतिक विपदा आ सकती है। यह मत 1998 में नीरी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के विश्लेषण के आधार पर दिया गया था। हालांकि 2004 में मंत्री ने 1998 पर आधारित अपने मत को उलट दिया था। क्यों ? इस बात के लिए किसी तरह का विश्लेषण नहीं दिया गया।
मंत्री महोदय ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक डॉ. एस बद्रीनारायन द्वारा निर्मित एक रिपोर्ट के बारे में जनता की राय जानकर मंत्री महोदय भी आश्चर्यचकित रह गए। जो कि 2002 में समुद्र के पास और सेतु के निकट गए एक अनुसंधान पर आधारित था जिसमें कहा गया है कि रामसेतु का निर्माण 9000 वर्ष पहले हुआ था और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि और उनके अनुनायियों द्वारा कहा गया कि यह एक प्राकृतिक संरचना नहीं है। हालांकि जीएसआई पर बिना ध्यान दिए बना केन्द्र सरकार की ओर से लेखक ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी, जिसमे कहा गया कि रामसेतु मानव निर्मित है, इसके बारे में सरकार को किसी तरह की जानकारी नहीं है, पूर्व एएसआई डीजी एस और राव ने भी सरकार के इस मत पर विरोध प्रकट किया है।
एसएससीपी को बदलने का सरकार का निर्णय उसका खुद का था तथा जो निराधार और हिन्दू धर्म के लिए पक्षपाती निर्णय वाला था। इसलिए इसके बारे में कोर्ट में कोई विशेष जांच नहीं की गई। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट के प्रथम द्रष्टया बहस के आधार पर रामसेतु को समाप्त करने पर रोक लगा दी है। एसएससीपी में आर्थिक नुकसान, पर्यावरणीय, तबाही, राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे और स्मारकों के रूप में भ्रष्टाचार भी है। यह खुदाई करने वाली कंपनियों को काफी आसानी से धन दिला सकता है और एलएलटीटीई के आतंकियों एवं दवा तस्करों को केरल के तट पर आवाजाही की स्वतंत्रता दे सकता है। इसलिए देश विरोधी परियोजना को नष्ट कर देना चाहिए, यदि किसी भी तरह का वैकल्पिक मार्ग बिना रामसेतु को नष्ट किए, दिया जाता है और सरकार द्वारा इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए।
इस प्रकार सत्य की स्थापना और रामसेतु को सुरक्षा प्रदान करने के लिए मैं सोचता हूं कि मुझे केवल कोर्ट में नहीं जाना चाहिए, बल्कि सरकार द्वारा इसकी जांच के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए, साथ ही आसान भाषा में एक किताब लिखनी चाहिए, जितना संभव हो सके, जिसमें सारे मामले से संबंधित सूचना हो और जनता को उनके बारे में जानकारी हो।
इस पुस्तक को लिखने के लिए मुझे कैप्टन एच बालाकृष्णन, डॉ० एस कल्याणरामन और वी० सुंदर, आईएएस (अवकाशप्राप्त), श्रीमती वी०एस० चंद्रलेखा आईएएस (अवकाशप्राप्त) और मेरे सहकर्मी, विशेष रूप से धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने उपयोगी तथ्य उपलब्ध कराए और साथ ही परियोजना के विरोध में चलने वाले संघर्ष में भागीदारी करने के लिए भी कहा, जो कि वर्तमान में निर्मित है।
मेरी पत्नी, डॉ० रॉक्सन एस स्वामी, वकील, सुप्रीम कोर्ट, ने मेरी सहायता के लिए तकलीफें सही और किताब में प्रकाशित तथ्यों के संपादन और उन्हें सही करने का योगदान किया। उससे रामसेतु का भी भ्रमण किया और दूसरों को सूचना भी दी कि क्यों इसे रहना चाहिए तथा कैसा दिखाई देता है ? उसे मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं क्योंकि बिना उसके जिम्मेदारी भरे कार्य के पुस्तक में कई गलतियां शेष रह जातीं।
एम एस सुब्बुलक्ष्मी को मेरा कोटि-कोटि धन्यवाद जिसने बिना शिकायक किए काफी धैर्यपूर्वक विभिन्न मामलों को टाइप किया।
सुब्रमण्यम स्वामी
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