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अगर ठान लीजिए

हरिकृष्ण देवसरे

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1998
पृष्ठ :317
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6900
आईएसबीएन :81-288-0833-8

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आपके अंदर छिपी सफलता दिलाने वाली ऊर्जा को जागृत करने वाली एक अद्भुत पुस्तक

Agar Than Leejiye - A Hindi Book - by Hari Krishna Devsare

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

1.    मनुष्य वैसा ही बनता है जैसे उसके विचार होते हैं।
2.    विचार ही हमारा ध्येय, हमारा लक्ष्य निश्चित करते है।
3.    विचार वही श्रेष्ठ हैं जो संसार में नयी सूझ से सफलता के द्वार सबके लिए खोल दें।
4.    सफलता-ध्येय की प्राप्ति में नहीं, वरन् उसे पाने के निरंतर प्रयास में निहित होती हैं।

यूनानी दार्शनिक सुकरात ने एक मंदिर के द्वार पर मोटे अक्षरों में लिखवा दिया था-‘अपने आपको पहचानो।’ हम अक्सर दूसरों की सफलता और उनके सुख के कारणों को खोजने में ही अपनी शक्ति और समय गंवा देते हैं और अपने से अनजान बने रहते है। आत्मचिंतन से हम अपने को पहचानते हैं। हमें अपनी शक्तियों का पता चलता है। अपनी शक्तियों और योग्यताओं का सूक्ष्म निरीक्षण कर बस ‘ठान लीजिए’ कि यह काम करना है। आप अवश्य सफल होंगे। आपके अंदर छिपी सफलता दिलाने वाली ऊर्जा को जागृत करने वाली एक अद्भुत पुस्तक-जो आपको उपदेश नहीं देती, आपसे संवाद करती है।

आपसे संवाद


महापुरुषों की जीवन-कथाएं, उनके महान कार्यो, घटनाओं और संस्मरणों को पढ़ना, मुझे बचपन से ही अच्छा लगता था। उनके प्रति यह आकर्षण धीरे-धीरे बढ़ता ही गया। संयोग से मुझे शिक्षक, गुरु और बड़ी उम्र के मित्र सभी ऐसे मिले जिन्होंने सफल जीवन जीने के वे मंत्र-बीज अनजाने में ही मेरे अंदर अंकुरित कर दिए थे, जो बड़े होने पर कदम-कदम पर मेरा मार्गदर्शन करते रहे। जीवन में संघर्ष तो सभी को करना पड़ता है। संघर्ष न हो तो जीवन नीरस लगता है। मेरे अपने जीवन में संघषों के दौरान जिन बातों ने मेरा मार्गदर्शन किया और मुझे प्रेरणा दी, वे कुछ अलग किस्म की नहीं थी। वे वही रही हैं जिन्हें कोई भी व्यक्ति अपना कर सफलता की मंजिले पा सकता है।

सत्तर के दशक के अंतिम वर्षों में, जब मैं आकाशवाणी भोपाल में था, एक कार्यक्रम शुरू किया गया जिसका उद्देश्य लोगों को प्रेरणादायक बातें बताना था।। तब मैंने ‘जरा सोचें’ शीर्षक से पांच मिनट का वह कार्यक्रम लिखना शुरू किया और उसे मैं स्वयं ही प्रसारित भी करता था। उस कार्यक्रम की लोकप्रियता से उत्साह बढ़ा और काफी दिनों तक उसे जारी रखा गया। बाद में वे आलेख मैंने ‘नवभारत टाइम्स’ दिल्ली को भेजे, जिसमें वे धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुए। इसके बाद मेरा स्थानान्तरण जबलपुर, भुज और फिर दिल्ली हो गया। बढ़ती जिम्मेदारियों, बालसाहित्य लेखन और पारिवारिक दबावों के कारण ‘जरा सोचे’ जैसे विषयों पर लिखना बंद-सा हो गया।

कोई सात-आठ वर्ष पहले इस विषय पर फिर से लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया प्रतियोगिता पत्रिका-सिविल सर्विसेज क्रानिकल (हिन्दी) के प्रधान संपादक श्री एन-एन, ओझा ने। वह चाहते थे कि आज की प्रतिस्पर्धा भरी दुनिया से युवा पीढ़ी को व्यक्तित्व विकास के साथ उन्हें जीवन में सलता के मंत्रों से भी परिचित कराएं। यह भी कि उन्हें महापुरुषों के संस्मरणों और संदेशों के माध्यम से प्रेरणा मिले। और जीवन में समय-समय परआने वाली बाधाओं को हल करने की शक्ति भी वे अपने अंदर जागृत कर सकें। मैंने तब इस तरह के लेख लिखना पुनः आरम्भ किया। मैं तब जीवन की साठ सीढ़ियां पार कर चुका था-इसलिए जब मैंने पीछे मुड़कर देखा, तब मुझे अनेक कड़वे-मीठे अनुभवों, पथरीले रास्तों, छांव देने वाले वृक्षों और प्रेरणा देने वाले मील के पत्थरों की याद हो आई। मुझे तब जीवन में सफलता के मार्ग पर सहारा देने वाली तमाम बातें मेरी अपनी ही कसौटी पर खरी उतरती दिखाई दीं। लेकिन मैं केवल अपने अनुभव को ही आधार नहीं बनाना चाहता था। इसलिए मैंने विश्व के अनेक विचारकों, दार्शनिकों, लेखकों राजनीतिज्ञों आदि के संस्मरणों, अनुभवों और उनके विचारों को पढ़ा। अरस्तू, एमर्सन, गेटे, आइन्सटीन, अब्राहम लिंकन बेंजामिन फ्रैंकलिन आदि की लम्बी सूची है जिनके विचारों को इस पुस्तक में आवश्यकतानुसार समाहित किया गया है।

 इसी के साथ स्वेट मार्डेन, नेपोलियन हिल, बर्ट्रेंड रसेल, डेल कारनेगी आदि की पुस्तकें भी पढ़ी। भारतीय मनीषियों में स्वामी रामतीर्थ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, श्री अरविन्द ओशो आदि के विचारों तथा उनके प्रेरक-प्रसंगों को भी समाहित किया गया। हिन्दी की आध्यात्मिक पत्रिका ‘अखण्ड ज्योति’, मेरे लिए भी आलौकिक ज्योति सी सिद्ध हुई, क्योंकि इसमें धर्म, दर्शन, जीवन, विज्ञान जैसे विषयों को आधुनिक संदर्भों में, अत्यंत प्रेरणादायी रूप में प्रस्तुत करने का सुंदर उदाहरण मिला। कुल मिलाकर इस पुस्तक में जो कुछ है, वह उपर्युक्त विचारकों, चिन्तकों मनीषियों और ऋषियों का ही है-यानी तुलसीदास के शब्दों में-इसमें ‘सार अंश सम्मत सब ही की’ है। मेरा अपना कुछ नहीं हैं। मैंने तो बगिया से सुंदर फूलों को चुनकर गुलदस्ता सजाया है कि उसकी महक हर पाठक के हृदय को प्रफुल्लित बनाए। अस्तु मैंने जिनसे जो कुछ लेकर इस पुस्तक में समाहित किया है, उन सबका मैं हृदय में ऋणी हूं और यह उन्हें ही समर्पित है। उन सबके प्रति श्रद्धा विनत हूं कि इस विषय पर लिखने के लिए वे मेरे मार्गदर्शक और प्रेरणा के स्रोत बने। साथ ही मैं श्री एन.एन. ओझा को भी हृदय से धन्यवाद देता हूँ कि जिन्होंने एक लम्बे अरसे बाद इन लेखों को लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया और जो इस स्तंभ पर हजारों की संख्या में आने वाले के लिए मुझे प्रेरित किया और जो इस स्तंभ पर हजारों की संख्या में आने वाले पत्रों में व्यक्त पाठकीय प्रतिक्रिया और प्रशंसा से अवगत कराकर मेरा उत्साह बढ़ाते रहे।

प्रिय पाठक, मैं कोई धर्मगुरु नहीं, उपदेशक नहीं, चिंतक या दार्शनिक नहीं। मैं आपकी ही तरह सामान्य व्यक्ति हूं और मैंने भी जीवन के हर संघर्ष का आनंद लिया है। मैंने तो इसके बहाने आपसे मित्रतापूर्ण आत्मीय संवाद करने का प्रयास किया है कि वह क्या है जो जीवन की दिशा निर्धारित करता है। इस संवाद के निष्कर्षों से आपको सहमत-असहमत होने का पूरा अधिकार है-क्योंकि निर्णय तो आपको ही करना है। मैं तो केवल इतना ही कह सकता हूं कि यह संवाद यदि आपके लिए सार्थक बन पड़ेगा तो मैं अपना मित्र-धर्म पूरा हुआ समझूंगा।

पहले जीवन-पहेली हल करें


* जीवन क्या है ? जीवनः नदी के प्रवाह जैसा है
* जीवनः एक पाठशाला है जीवनः एक ठेकेदार-सा है
* अनुभवः जीवन की अनिवार्य पाठशाला है
* निंदक नियरे राखिए जीवन की सच्ची मित्र पुस्तक
* जब एक वाक्य जीवन-दीप बन जाता है

जीवन क्या है ?


‘जीवन जीना एक कला है।’ जी हां, जीवन का सही अर्थ समझना, उसकी सही अर्थों में जीना, जीवन में सार्थक काम करना ही जीवन जीने की कला है। जीने के लिए तो कीट पतंगे, पशु-पक्षी भी जीवन जीते हैं, किंतु क्या उनका जीवन सार्थक होता है ? मनुष्य के जीवन में और अन्य प्राणियों के जीवन में यही अंतर हैं। इसलिए कहा गया है कि जीवन जीना एक कला है। आप अपने जीवन को कैसे सजाते-संवारते हैं, कैसे अपने उद्देश्य और लक्ष्य निर्धारित करते हैं, आपके काम करने का तरीका क्या है, आपकी सोच कैसी है, समय के प्रति आप कितने सचेत हैं, ये सभी बातें जीवन जीने की कला के अंग हैं। न जाने कितनी ऐसी बातें हैं-जिनको विस्तार से आप आगे के पृष्ठों में पढ़ेगे, और जो आपके व्यक्तित्व और आपकी जीवन शैली निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। ये सभी जीवन को कलात्मक रूप देकर उसे संवार सकती हैं और उन पर ध्यान न देने से वे उसे बिगाड़ भी सकती हैं। महान् वैज्ञानिक आइन्स्टीन नहाने, कपड़े धोने और यहां तक कि दाढ़ी बनाने के लिए एक ही साबुन का प्रयोग करते थे। उनकी इस आदत के बारे में जानकर, उनके एक मित्र ने पूछा कि वह ऐसा क्यों करते हैं, आइन्स्टीन ने कहा, अब अगर मैं साबुन जैसी चीज के प्रयोग में कुछ और झंझटे पाल लूं तो फिर कई तरह के साबुन चाहिए होंगे, उससे खर्च बढ़ेगा और प्रयोग में भी हर बार साबुन बदलना पड़ेगा।
सो भाई, मैं जीवन मे झंझटे नहीं बढ़ाना चाहता।

जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण यदि स्पष्ट नहीं है तो हमने जीवन को जिया ही नहीं। आम व्यक्ति जीवन को सुख से जीना ही ‘जीवन जीना’ मानता है। अच्छी पढ़ाई के अवसर मिले, अच्छी नौकरी मिले, सुंदर पत्नी हो, रहने को अच्छा मकान हो, सुख-सुविधाएं हों, बस और क्या चाहिए जीवन में ? पर होता यह है कि सबको सब कुछ नहीं मिलता। चाहने से कभी कुछ नहीं मिलता। कुछ पाने के लिए मेहनत और संघर्ष करना जरूरी होता हैं और लोग वही नहीं करना चाहते। बस पाना चाहते है-किसी शॉर्टकट से और जब नहीं मिलता तो जीवन को कोसते हैं-अरे क्या जिंदगीं हैं ? बस किसी तरह जी रहे हैं-जो पल गुजर जाए वही अच्छी हैं। ‘सच मानिये आम आदमी आपसे यही कहेगा, क्योंकि उसने जीवन का अर्थ समझा ही नहीं। बड़ी मुश्किल से ही कोई मिलेगा, जो यह कहे कि ‘मैं बड़े मजे से हूँ। ईश्वर की कृपा है। जीवन में जो चाहता हूं-अपनी मेहनत से पा लेता हूँ। संघर्षों से तो मैं घबराता ही नहीं हूँ।’ और ऐसे ही व्यक्ति जीवन में सफल होते हैं। किसी ने ठीक कहा है, ‘संघर्षशील व्यक्ति के लिए जीवन एक कभी न समाप्त होने वाले समारोह या उत्सव के समान है।’

मनुष्य का जीवन कर्म करने और मोक्ष की तरफ कदम बढ़ाने के लिए है। कदम उत्साहवर्धक होने चाहिए, अपने जीवन के प्रति रुचि होनी चाहिए। जीवन में कष्ट किसे नहीं भोगना पड़ता। आनंद तो इन कष्टों पर विजय पाने में हैं। कोई कष्ट स्थायी नहीं होता। वह केवल डराता है। हमारी सहनशीलता और धैर्य की परीक्षा लेता है। बुखार आता है तो हमारे डरने-घबराने से कुछ नहीं होगा। धैर्य से इलाज करना होगा और दवा खाकर उसके असर तक धैर्य से इंतजार करना होगा। किसी भी अच्छे उद्देश्य की पूर्ति बिना कष्ट या कठिनाई उठाये सुख का कारण नहीं बन सकती।

स्वेट मार्डेन ने कहा है-‘हमारा सदा यही लक्ष्य रहता है कि हमारा जीवन सुख-आनंद से परिपूर्ण हो।’ किंतु यह अपने आप नहीं होता है। जीवन का कोई भी उद्देश्य या लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हमें निश्चित कदम बढ़ाना होगा। केवल सोचने मात्र से कुछ नहीं मिलता। इस बारे में थोड़ा-सा आलस्य भी आपको असफल बना सकता है। किसी ने ठीक कहा है-‘जीवन को नियम के अधीन कर देना, प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है।’ इसलिए जीवन के प्रति हमें बहुत सतर्क रहना चाहिए, तभी हम मंजिल तक पहुंच सकते हैं।
प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक सुकरात ने कहा हैं-‘अच्छा जीवन, ज्ञान और भावनाओं तथा बुद्धि और सुख दोनों का सम्मिश्रण होता है। इसका अर्थ है कि जहां हमें अच्छा ज्ञान अर्जित करना चाहिए, वहीं हमारे विचार और भावनाएं भी शुद्ध और निर्मल हों। तब हमारी बुद्धि भी हमारा साथ देगी और हमें सच्चा सुख मिलेगा।

आज हमारे समाज में अनेक लोग ऐसे मिलते हैं-जो आपकी प्रगति से खुश नहीं होंगे-आपके मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करेंगे, आपकी खिल्ली उड़ायेंगे-क्योंकि उन्होंने स्वयं जीवन का सही अर्थ खो दिया है। आप एक ही बात याद रखिए कि ‘जीवन के युद्ध में चोटें, आघात और बाधाओं की चट्टानें तो आएंगी ही और आपको उन्हें बर्दाश्त करते हुए आगे बढ़ना है। आपके दृढ़ विश्वास में इतनी शक्ति हो कि कोई बाधा आपका मार्ग न रोक सके।

प्रसिद्घ कवयित्री महादेवी वर्मा का यह भावपूर्ण किंतु यर्थाथपूर्ण विचार कितना मार्गदर्शक हैः जीवन जागरण है। सुषप्ति नहीं। उत्थान हैं, पतन नहीं। पृथ्वी के तमसाच्छत्र, अंधकारमय पथ से गुजरकर दिव्य-ज्योति से साक्षात्कार करना है। जहां द्वंद्व और संघर्ष कुछ भी नहीं है। जड़ चेतन के बिना विकास शून्य है और चेतन जड़ के बिना आकार शून्य हैं। इन दोनों की क्रिया और प्रतिक्रिया ही जीवन है।’

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