विविध >> बागवानी घर के भीतर बागवानी घर के भीतरप्रतिभा आर्य
|
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यह पुस्तक ऐसे बागवानी प्रेमी लोगों के लिए लिखी गयी है जो स्वयं ही घर में, छत पर, किचेन गार्डन या सदाबहार पौधे लगाकर घर को सजाना चाहते हैं।...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
महानगर हो या शहर जब घर के भीतर बागवानी की बात आती है तो मन अचरज से भर
जाता है, कारण, आज की व्यवस्था में आबादी का फैलाव इस तरह हुआ है कि खुला
स्थान, वाटिका और उद्यान तो एक सपना ही बनता जा रहा है। जो लोग दो-तीन
कमरों के फ्लैटों में रह रहे हैं, खुले स्थान के नाम पर एक छोटी सी
बालकनी, बरामदा या फिर भाग्यवाली हुए तो छत है, वे कुछ फूल-पौधे लगाकर
अपना घर सजाना चाहते हैं तो क्या नर्सरी वालों पर निर्भर रहें। अथवा स्वयं
पौधों की देखभाल का आनन्द उठाएं ?
इस पुस्तक में छत पर पौधे, बालकनी में पौधे, घर के अन्दर पौधे लगाना साथ ही सदाबहार बोंसाई, कैक्टस आदि पौधों की जानकारी दी गई है। इसके अलावा गमलों के रख-रखाव पर उपयोगी सामग्री तथा डिजाइनिंग आदि पर सम्पूर्ण जानकारी दी गई है।
उम्मीद है यह पुस्तक घर में हरियाली के साथ खुशहाली भी लाएगी।
इस पुस्तक में छत पर पौधे, बालकनी में पौधे, घर के अन्दर पौधे लगाना साथ ही सदाबहार बोंसाई, कैक्टस आदि पौधों की जानकारी दी गई है। इसके अलावा गमलों के रख-रखाव पर उपयोगी सामग्री तथा डिजाइनिंग आदि पर सम्पूर्ण जानकारी दी गई है।
उम्मीद है यह पुस्तक घर में हरियाली के साथ खुशहाली भी लाएगी।
बागवानी : घर के भीतर
आधुनिक महानगरीय सभ्यता का प्रमुख प्रभाव हमारे आवासों में दिखाई देने लगा
है। बढ़ती जनसंख्या के लिए जमीन की कमी ने आवासों को ऊपर जाने पर मजबूर कर
दिया है। मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली, जैसे महानगरों में शहरी आबादी का मुख्य
भाग फ्लैट में रहने लगा है। ये फ्लैटनुमा आवास छोटे भी होते हैं, और बड़े
भी। एक समय था जब मकान के चारों ओर वाटिका होती थी, छोटे से मकान में भी
थोड़ी-सी सब्जियाँ; केला, अमरूद जैसे फलों के पेड़, थोड़े से फूल, तुलसी
आदि से सजी छोटी-सी बगिया होती थी। परन्तु अब स्थान की कमी के कारण यह सब
कठिन हो गया है। फिर भी पुष्प प्रेमी फ्लैट निवासियों ने गमलों से अपनी
दुनिया सजा ली है। घर के बरामदे, छत, छोटी-सी बालकनी में भी फूलों, पौधों
का आनन्द उठाया जाने लगा है। दिल्ली में स्वर्गीय कैप्टन अर्जुन एवं
श्रीमती किरण लाल जैसे बहुत से पुष्प प्रेमी रहे हैं जिन्होंने अपने मकान
की छत को घास, फूलों की क्यारी, कुमुद के कुंड, लताओं और फलों के वृक्ष
आदि से सजा कर सुन्दर वाटिका की संयोजना की एवं पुष्प प्रदर्शनियों में
पुरस्कार भी जीते।
मनुष्य का स्वभाव है कि वह सुन्दर और अद्भुत वस्तुओं का संग्रह करके अपने घर को सजाता है। धरती से दूर गगनचुम्भी आवासों में रहने वालों के लिए, घर में प्रकृति की निकटता अनुभव करने की एक हार्दिक लालसा रही और उसका समाधान विभिन्न प्रकार के पौधों से घर के कमरे, छत, बालकनी, बरामदा सजा कर किया जाने लगा। इन पौधों के चुनाव में सौन्दर्य और आनन्द की भावना रही। परन्तु समस्या यही होती है कि हम उनके विषय में जानकारी के अभाव में मात्र कुछ गमलों के लिए भी मालियों पर निर्भर रहते हैं। सत्य तो यह है कि अधिकतर माली सिवाय खुरपी लगाने और पानी देने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं जानते। तो क्या यह अच्छा नहीं होगा कि जिस आनन्द एवं सौन्दर्य की हम इच्छा करते हैं उनकी सृजना और देखभाल स्वयं करें ? आप विश्वास करें एक शौक के रूप में किया गया यह कार्य आपको अधिक आनन्द एवं सन्तुष्टि प्रदान करेगा। अपने आनन्द की रचना का श्रेय आप ही क्यों न लें ? ये पौधे आपके लिए किसी प्रतिष्ठा का आधार न होकर आनन्द का केन्द्र बनें। आपके लिए फुर्सत के क्षणों में समय व्यतीत करने के लिए यह एक अत्यन्त ही मनोरंजक और संतोषजनक कार्य है।
फ्लैट में रहने वालों के लिए बागवानी कठिन अवश्य है परन्तु असंभव नहीं। मिट्टी, खाद, पानी, प्रकाश की सही व्यवस्था एवं संतुलन और आपकी रुचि मिल कर छत के सीमित क्षेत्र में भी सुन्दर आकर्षक बगिया की सृजना कर सकते हैं। पौधों के संबंध में कुछ बातें सार्वभौम और वही इनके मूल तत्त्व होती है उन्हीं पर हम विचार करेंगे।
मनुष्य का स्वभाव है कि वह सुन्दर और अद्भुत वस्तुओं का संग्रह करके अपने घर को सजाता है। धरती से दूर गगनचुम्भी आवासों में रहने वालों के लिए, घर में प्रकृति की निकटता अनुभव करने की एक हार्दिक लालसा रही और उसका समाधान विभिन्न प्रकार के पौधों से घर के कमरे, छत, बालकनी, बरामदा सजा कर किया जाने लगा। इन पौधों के चुनाव में सौन्दर्य और आनन्द की भावना रही। परन्तु समस्या यही होती है कि हम उनके विषय में जानकारी के अभाव में मात्र कुछ गमलों के लिए भी मालियों पर निर्भर रहते हैं। सत्य तो यह है कि अधिकतर माली सिवाय खुरपी लगाने और पानी देने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं जानते। तो क्या यह अच्छा नहीं होगा कि जिस आनन्द एवं सौन्दर्य की हम इच्छा करते हैं उनकी सृजना और देखभाल स्वयं करें ? आप विश्वास करें एक शौक के रूप में किया गया यह कार्य आपको अधिक आनन्द एवं सन्तुष्टि प्रदान करेगा। अपने आनन्द की रचना का श्रेय आप ही क्यों न लें ? ये पौधे आपके लिए किसी प्रतिष्ठा का आधार न होकर आनन्द का केन्द्र बनें। आपके लिए फुर्सत के क्षणों में समय व्यतीत करने के लिए यह एक अत्यन्त ही मनोरंजक और संतोषजनक कार्य है।
फ्लैट में रहने वालों के लिए बागवानी कठिन अवश्य है परन्तु असंभव नहीं। मिट्टी, खाद, पानी, प्रकाश की सही व्यवस्था एवं संतुलन और आपकी रुचि मिल कर छत के सीमित क्षेत्र में भी सुन्दर आकर्षक बगिया की सृजना कर सकते हैं। पौधों के संबंध में कुछ बातें सार्वभौम और वही इनके मूल तत्त्व होती है उन्हीं पर हम विचार करेंगे।
मिट्टी
पौधे का मुख्य आधार, जिसमें वह पनपता है, वह है मिट्टी। फ्लैट में रहने
वालों के लिए मिट्टी वह भी सही मिट्टी प्राप्त करना समस्या होती है।
परन्तु बागवानी के शौक के प्रचार के साथ इनकी प्राप्ति मुश्किल नहीं रही।
अक्सर खाद वाले छोटे-छोटे थैलों में खाद और मिट्टी घर-घर बेचने आ जाते
हैं। यहाँ खाद मिट्टी की बात इसलिए हो रही है, क्योंकि निखालिस खाद में
कोई भी पौधा नहीं लगाया जा सकता। गमले में आधा हिस्सा या तो गमलों की
निकाली पुरानी मिट्टी हो या फिर बाहर से नई मिट्टी लाई जाए।
जैविक खाद/उर्वरक
गोबर की खाद
पौधों के लिए मुख्यत: हम गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं। गोबर की खाद
अच्छी पुरानी और सड़ी-गली होनी चाहिए। पुरानी अच्छी तैयार खाद भुरभुरी
होती है और उसमें से कच्चे गोबर की गन्ध नहीं आती। पौधा कोई भी हो, गमले
में निखालिस गोबर की खाद में पौधा नहीं लगाना चाहिए। आजकल बड़े शहरों में
नर्सरी में कई पेट्रोल पम्प पर बायोगैस की गोबर की खाद भी पैकेट में मिलती
है। ये भी काफी उपयोगी रहती है। गोबर की खाद मिट्टी की संरचना को उत्तम
करती है, इससे पौधे को भरपूर नाइट्रोजन प्राप्त होता है।
पत्ती की खाद
पत्तियों को गड्ढे में दबाकर भी खाद तैयार की जाती है। यह खाद मिट्टी की
संरचना को हल्का करती है, इससे मिट्टी को गलित जीवांश भी प्रचुर मात्रा
में मिलता है, जिससे मिट्टी हल्की होने के साथ-साथ पोषण प्रदान करती है
सदाबाहर पौधे जैसे डीफेनबाकिया, क्रोटेन, फ़र्न आदि के लिए पत्ती की खाद
बहुत उपयोगी होती है।
तरल खाद
आजकल तरल खाद का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। विशेषकर फ्लैट में बागवानी करने
वालों के लिए यह सरलता से प्राप्त होती है। इसके लिए 10 लीटर की एक बाल्टी
में कम से कम एक किलो कच्चा गोबर एवं आधा किलो नीम की खली अथवा सरसों या
फिर अलसी की खली मिलाकर पानी से भरकर ढक्कन लगा दें। दिन में एक बार रोज़
इसे हिला कर बन्द कर दें। गर्मियों में तो 10 दिन में ही और ठंड के दिनों
में यह तरल खाद तीन सप्ताह में तैयार हो जाती है। इसे हिलाकर छोड़ दें, तब
ऊपर जो पानी आएगा, वह एक लीटर पानी, 10 लीटर सादे पानी में मिलाकर गमलों
को सप्ताह में दो बार तक दिया जा सकता है। यह तरल खाद हल्के चाय के रंग की
होनी चाहिए। इसे डालते समय ध्यान रखें की गमले की मिट्टी सूखी हो तो न
दें। गमले में एक दिन पहले सादा पानी डाल कर, अगले दिन तरल खाद डालें। तरल
खाद को पौधे के तने के पास न डालकर गमले के किनारे पर डालें। इसी में आप
चाहें तो 10 लीटर पानी में दो चम्मच यूरिया भी घोल सकते हैं। सप्ताह में
केवल दो बार देना पर्याप्त होगा। डहलिया, गुलदाउदी, मरांटा और गुलाब आदि
के गमलों में देने से बहुत लाभ पहुँचता है।
खली
जैविक खाद में खली एक महत्त्वपूर्ण पदार्थ है। तेल निकालने के बाद सरसों,
नीम अथवा अलसी का जो चूरा बच जाता है, उसे ही खली कहते हैं। इसमें
नाइट्रोजन बहुत होता है और यह मिट्टी को भी बेहतर बनाता है। गमले में
मिट्टी भरते समय इसे मिट्टी में मिलाया जा सकता है अथवा तरल खाद के रूप
में प्रयोग किया जा सकता है। नीम की खली कीटनाशक का भी कार्य करती है। खली
के प्रयोग से पत्तों में चमक एवं फूलों के रंग और आकार में सुधार होता है।
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