उपन्यास >> मोड़ पर मोड़ परधूमकेतु
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धूमकेतु के मूलतः मैथिली उपन्यास का ‘स्वर्णा’ द्वारा अनुवादित हिंदी रूपान्तर
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
गूना-सदा-दाईजी की जिंदगी की परिघटनाएँ मिथिला समाज की कथाभूमि तक सीमित नहीं होकर व्यापक भारतीय समाज-राजनीति के बनते-बिगड़ते संबंध-सरोकारों की असलियत भी बयान करती हैं। मुख्यतः स्त्री-धन, हक़-हक़ीक़ी के लिए सामंती अवशेष और वर्तमान हालात से प्रतिरोध ही उपन्यास का केन्द्रीय कथ्य है, लेकिन गहरे स्तर पर यहाँ मानवीय संबंधों की कथा को ख़ूबसूरती प्रदान की गई है। संबंधों की सहजता-स्वाभाविकता के लिए आकूल-व्याकूल पात्रों की गहन संवेदना यहाँ हृदयस्पर्शी है। नैतिकता और आदर्श के दिखावे की धज्जियाँ उड़ाने वाली यह कृति सादगीपूर्ण जीवन के नैसर्गिक सौंदर्य और उसका महत्त्व उजागर करने में सफल हुई है।
हरिमोहन झा और नागार्जुन के बाद जिन रचनाकारों ने मैथिली उपन्यास को व्यापक कैनवास पर सर्वाधिक ऊँचाई और गरिमा प्रदान की, उनमें और धूमकेतु अप्रतिम हैं। धूमकेतु का यह उपन्यास मैथिली में बीसवीं सदी के अवसान काल में प्रकाशित हुआ जो कि लेखक के भी जीवन का अंतिम वर्ष था। यूँ इसका लेखन 1991 में पूर्ण हो गया था, लेकिन दुखद रहा कि उपन्यासकार इसे पुस्तकाकार प्रकाशित नहीं देख पाए। मैथिली में प्रकाशन के लगभग बारह वर्ष बाद और लेखन पूर्ण होने के लगभग बाईस वर्ष बाद हिंदी पाठकों के लिए इसे प्रस्तुत करते व्यक्ति रूप से मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है। ‘मोड़ पर’ एक बेहद पठनीय और विचारोत्तेजक उपन्यास है। और यह कहने में कोई झिझक नहीं कि ‘मोड़ पर’ मैथिली उपन्यास में मील का पत्थर है।
हरिमोहन झा और नागार्जुन के बाद जिन रचनाकारों ने मैथिली उपन्यास को व्यापक कैनवास पर सर्वाधिक ऊँचाई और गरिमा प्रदान की, उनमें और धूमकेतु अप्रतिम हैं। धूमकेतु का यह उपन्यास मैथिली में बीसवीं सदी के अवसान काल में प्रकाशित हुआ जो कि लेखक के भी जीवन का अंतिम वर्ष था। यूँ इसका लेखन 1991 में पूर्ण हो गया था, लेकिन दुखद रहा कि उपन्यासकार इसे पुस्तकाकार प्रकाशित नहीं देख पाए। मैथिली में प्रकाशन के लगभग बारह वर्ष बाद और लेखन पूर्ण होने के लगभग बाईस वर्ष बाद हिंदी पाठकों के लिए इसे प्रस्तुत करते व्यक्ति रूप से मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है। ‘मोड़ पर’ एक बेहद पठनीय और विचारोत्तेजक उपन्यास है। और यह कहने में कोई झिझक नहीं कि ‘मोड़ पर’ मैथिली उपन्यास में मील का पत्थर है।
- गौरीनाथ
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