कला-संगीत >> संगीत रसमंजरी संगीत रसमंजरीलक्ष्मण भट्ट तैलंग
|
4 पाठकों को प्रिय 44 पाठक हैं |
भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रारम्भिक ज्ञान और उसकी शताधिक बन्दिशों का अद्भुत संग्रह...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
लेखकीय
विज्ञान के
भागते-दौड़ते मशीनी; अनेक संस्कृतियों के संक्रमण; विशुद्धता
से परे मिश्रण; प्रतियोगिताओं, आविष्कारों और प्रयोगों से प्रेरित एवं
राजनैतिक व सामाजिक विद्रूपताओं से ग्रसित सांस्कृतिक मूल्यों के अवमूल्यन
के इस युग की वर्तमान स्थितियां एवं परिस्थितियां भारतीय यौगिक एवं गहन
साधनामयी संगीत-विद्या के शिक्षण-प्रशिक्षण, मंचन एवं सृजन के प्रति
चुनौतियां बनकर आई हैं। हमारी आधुनिकता ने वर्षों से साधी जा रही रागों और
गायकी की पहचान को तो खोना शुरू कर ही दिया है किन्तु वर्षों की साहित्यिक
विरासत को भी हम समय-दर-समय खोते जा रहे हैं, अतएव वर्तमान के साधक एवं
सर्जक, जिन्होंने इस पुरातन विरासत को भरपूर जिया है उनकी गहन-जिम्मेदारी
है कि वे उन्हें सौभाग्यवश प्राप्त उस विरासत को वर्तमान को सौंपें एवं
हमारे उन स्तम्भमान गुरुओं के सबक एवं उनकी सृजनशीलता का मूलमंत्र नयी
पीढ़ी को समझायें, जिसमें भारतीय शास्त्रीय साधना की भारतीयता, मूल्यों के
प्रति आस्था एंव उसकी सच्चाई अथवा विशुद्धता, गहनता और जीवन्तता का
अप्रतिम पुट हमारे संस्कारों को सार्थक दिशा प्रदान कर सकेगा।
संगीत-चिन्तकों का चिन्तन भी है कि हमारी उम्र के साधक ही सम्भवतः अन्तिम
पीढ़ी होंगे, जो भारतीय साधना के मूल्यों के प्रति गहन आस्था के साथ स्वर,
साहित्य एवं ताल की सच्ची अथवा विशुद्ध साधना के ज्ञान-पुंज से नई पीढ़ी
की नई धरती पर नई करणें प्रस्फुटित कर सकेगें। इस दिशा में वर्षों से
संचित गुरुओं की तालीम ही हमारी सच्ची पथ-प्रदर्शक है, जो हमें हमारे मूल
से जोड़े रखने की महत्वपूर्ण सीढ़ी होगी।
मेरी इस पुस्तक की सृजित साधना भारतीय संगीत के संस्थापक गुरुओं द्वारा मुझे वरदान स्वरूप प्राप्त संगीत-शिक्षा का निचोड़ है जो कि मेरे सृजन को लेखनी के माध्यम से रूढ़ियों से मुक्त स्वस्थ प्रवाहमान परम्परा और नवाचारों के सुन्दर संतुलन के साथ एवं प्राचीनता और नवीनता के मध्य महत्वपुर्ण सेतु के रूप में प्रासंगिकता प्रदान करती है।
मेरी इस पुस्तक की सृजित साधना भारतीय संगीत के संस्थापक गुरुओं द्वारा मुझे वरदान स्वरूप प्राप्त संगीत-शिक्षा का निचोड़ है जो कि मेरे सृजन को लेखनी के माध्यम से रूढ़ियों से मुक्त स्वस्थ प्रवाहमान परम्परा और नवाचारों के सुन्दर संतुलन के साथ एवं प्राचीनता और नवीनता के मध्य महत्वपुर्ण सेतु के रूप में प्रासंगिकता प्रदान करती है।
लेखक के बारे में
जन्म - 24 दिसम्बर सन् 1928 को जयपुर के सुप्रसिद्ध सांगीतिक भट्ट परिवार में।
प्रधान कृतित्व - भारतीय शास्त्रीय संगीत विशेषतः ध्रुवपद गायकी के विशेष प्रचारक। ख्यातनाम प्रतिष्ठित ध्रुवपद-विशेषज्ञ। जयपुर के स्थाई निवासी एवं राजस्थान की ध्रुवपद-परम्परा के वर्तमान एकमात्र प्रतिनिधि गायक।
शिक्षा - महाराजा सिंधिया स्टेट, ग्वालियर से विशेष वज़ीफा प्राप्त करके प्रथम श्रेणी में संगीत निपुण (स्नातकोत्तर) माधव संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर (म. प्र.)।
विरासत एवं गुरुदीक्षा - ध्रुवपद-संकीर्तन के सुप्रसिद्ध सुरीले गायक बाबा स्व. पं. गोपालजी भट्ट एवं पिता स्व. पं. गोकुलचन्द्रजी भट्ट एवं ग्वालियर घराने के पं. राजाभैया ‘पूछवाले’, प्रिंसिपल, माधव संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर; अग्निहोत्री साहेब; नातू साहेब; पंचाक्षरी साहेब; गुणे साहेब; तिखे साहेब (सभी ग्वालियर) इत्यादि से ध्रुवपद एवं ख्याल की घरानेदार तालीम प्राप्त की।
भारत सरकार की विशिष्ट छात्रवृत्ति के अन्तर्गत ध्रुवपद की गहन तालीम विख्यात ध्रुवपद गायकों स्व. उ. नसीर मोइनुद्दीन एवं स्व. उ. नसीर अमीनुद्दीन खाँ डागर बन्धुओं से; स्व. श्री पर्वत सिंह जी, स्व. श्री माधोसिंह जी एवं स्व. श्री विजयसिंह जी (ग्वालियर) एवं स्व. पं. पुरुषोत्तम दासजी द्वारा पखावज की तालीम; रुद्र वीणा की गण्डाबन्ध तालीम उ. हाफिज़ अली खाँ से भारतीय कला केन्द्र, नई दिल्ली में।;
प्रधान कृतित्व - भारतीय शास्त्रीय संगीत विशेषतः ध्रुवपद गायकी के विशेष प्रचारक। ख्यातनाम प्रतिष्ठित ध्रुवपद-विशेषज्ञ। जयपुर के स्थाई निवासी एवं राजस्थान की ध्रुवपद-परम्परा के वर्तमान एकमात्र प्रतिनिधि गायक।
शिक्षा - महाराजा सिंधिया स्टेट, ग्वालियर से विशेष वज़ीफा प्राप्त करके प्रथम श्रेणी में संगीत निपुण (स्नातकोत्तर) माधव संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर (म. प्र.)।
विरासत एवं गुरुदीक्षा - ध्रुवपद-संकीर्तन के सुप्रसिद्ध सुरीले गायक बाबा स्व. पं. गोपालजी भट्ट एवं पिता स्व. पं. गोकुलचन्द्रजी भट्ट एवं ग्वालियर घराने के पं. राजाभैया ‘पूछवाले’, प्रिंसिपल, माधव संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर; अग्निहोत्री साहेब; नातू साहेब; पंचाक्षरी साहेब; गुणे साहेब; तिखे साहेब (सभी ग्वालियर) इत्यादि से ध्रुवपद एवं ख्याल की घरानेदार तालीम प्राप्त की।
भारत सरकार की विशिष्ट छात्रवृत्ति के अन्तर्गत ध्रुवपद की गहन तालीम विख्यात ध्रुवपद गायकों स्व. उ. नसीर मोइनुद्दीन एवं स्व. उ. नसीर अमीनुद्दीन खाँ डागर बन्धुओं से; स्व. श्री पर्वत सिंह जी, स्व. श्री माधोसिंह जी एवं स्व. श्री विजयसिंह जी (ग्वालियर) एवं स्व. पं. पुरुषोत्तम दासजी द्वारा पखावज की तालीम; रुद्र वीणा की गण्डाबन्ध तालीम उ. हाफिज़ अली खाँ से भारतीय कला केन्द्र, नई दिल्ली में।;
|
लोगों की राय
No reviews for this book