बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - संघर्ष की ओर राम कथा - संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, तीसरा सोपान
आश्रमवासियों के लिए भी यह अद्भुत अनुभव था। उन्होंने सदा त्याग का पाठ पढ़ा और पढ़ाया था। किंतु इस प्रकार का त्याग?...अपने सामने से भोजन की थाली उठाकर अपने से अधिक भूखे की ओर बढ़ा देना ...ऐसा तो उन्होंने कभी नहीं किया था। यह करवाया था राम ने। मुनि आनन्द सागर का कहना था कि राम के तर्कों का मेरे पास कोई उत्तर नहीं है, अतः उनकी बात अनिवार्यतः मानी जानी चाहिए। वह त्याग ही क्या, जिससे अपने लिए कठिनाई पैदा न हो। तो फिर अपने लिए एकत्रित अन्न, भूखे ग्रामवासियों को क्यों न दिया जाए? संध्या तक स्थिति कुछ और बदली। लक्ष्मण अपनी टोली के साथ भूधर के भवन से लौटे तो समाचार लाए कि भवन में पुष्कल मात्रा में छिपाया गया अन्न मिल गया है। वह अन्न इतना अधिक था कि अगली उपज के आने तक, उससे ग्राम और आश्रम दोनों की ही आवश्यकताएं पूरी हो सकती थीं।
लक्ष्मण से समाचार पाकर, राम का चिंतित मन कुछ ढीला हुआ। वे इस आश्रम में न आए होते, इस स्थिति की सूचना उन्हें न होती, तो और बात थी किंतु एक बार ग्रामवासियों की भूख की सूचना मिल जाने पर वे कैसे यह मान लेते कि ग्रामवासियों को अन्न उपलब्ध कराना उनका काम नहीं था...अब चिंता केवल अगली उपज की थी... ।
प्रातः ब्रह्मचारियों तथा जनसैनिकों का पुनर्विभाजन किया गया। निश्चित यह हुआ कि दो बड़े वर्ग बनाए जाएं। पहला वर्ग आश्रम में शस्त्राभ्यास करे तो दूसरा वर्ग खेतों में काम करे; मध्याह्र के पश्चात् पहला वर्ग खेतों में चला जाए तथा दूसरा वर्ग आश्रम में शस्त्राभ्यास करे।
राम जनसैनिकों के साथ, बड़ी संख्या में ब्रह्मचारियों को लेकर खेतों में पहुंचे। आज उन्हें खेतों के पास, कुछ अधिक ग्रामवासी खड़े मिले। राम को लगा, इन ग्रामीणों में उनका विश्वास असत्य नहीं था। बात इतनी-सी थी किए उन पर आतंक की परत कुछ अधिक मोटी होकर जमी थी। उसे उधेड़कर उन्हें अपने अकृत्रिम रूप में लाने के लिए कुछ प्रयत्न की आवश्यकता थी।...आज कल से अधिक ग्रामवासी आए थे, वे राम तथा उनके साथियों को देख, भड़ककर पीछे भी नहीं हटे थे। उन्होंने राम को, कल जैसी आतंकित दृष्टि से भी नहीं देखा था। और आज वे भीखन से भी अधिक आत्मीयता से वार्तालाप कर रहे थे।
राम आश्वस्त हुए : लक्ष्मण अच्छे थे। मेड़ों के निकट आए लोगों से अभिवादन के आदान-प्रदान के पश्चात् राम ने जनसैनिकों तथा ब्रह्मचारियों को खेतों में बिखेर दिया। काम आरंभ हो गया। काम करने वालों की संख्या अधिक न होने के कारण आज ऐसा लग रहा था कि काम आगे बढ़ ही नहीं रहा और सारे-के-सारे खेत परती पड़े रह जाएंगे...एक के पश्चात् एक क्यारी उधड़ती जा रही थी, नीचे की मिट्टी ऊपर और ऊपर की नीचे जा रही थी। टोलियों में होड़ लगी हुई थी। चार टोलियों में से प्रत्येक के पास एक हल तथा अनेक कुदाल थे। कोई टोली स्पर्धा में पीछे छूटने को तैयार नहीं थी। सूर्य ऊपर चढ़ आया। धूप चुभने लगी और स्वेद की मात्रा बढ़ गई तो एक-एक टोली एक-एक पेड़ की छाया में, अपने काम की समीक्षा के लिए आ जुटी।
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