बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - संघर्ष की ओर राम कथा - संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, तीसरा सोपान
"मुक्त केवल वही है, जो संघर्ष के लिए प्रस्तुत है।" राम बोले, "यह प्रकृति का नियम है। आप संघर्ष से पीछे हटेंगे, तो मुक्ति भी हाथ से निकल जाएगी।" राम कुछ रुककर पुनः बोले, "मुक्ति को बनाए रखने के लिए सतत जागरूक चेतना की आवश्यकता है, अतः आप सबके लिए शिक्षा की व्यवस्था भी आज से ही आरंभ करनी होगी। शिक्षा के लिए आश्रम भी हैं, तथा मुनि भी। किंतु, इस परंपरागत शिक्षा को कुछ गतिशील बनाना होगा। मैं चाहूंगा कि धर्मभृत्य और सीता मिलकर इस काम को अपने हाथ में लें। अंतिम, किंतु सबसे आवश्यक वस्तु है आर्थिक पक्ष। सारा झगड़ा खान को लेकर आरंभ हुआ है। खान का अर्थ है, खनिज पदार्थ अर्थात् धन! इस धन का वितरण कैसे हो?"
"राम खान के स्वामी हों।" अनिन्द्य खड़ा हो, गला फाड़कर चिल्लाया, "राम खान के स्वामी हों।"
"नहीं!" राम का ओजस्वी स्वर गूंज गया, "किसी एक व्यक्ति को खान का स्वामी बनाओगे तो वह धन का बल पाकर, सत्ता को हथिया लेगा। अपने लिए सुख-सुविधाएं जुटाएगा और तुम्हें वंचित करेगा। अंततः वह भी तुम्हें मनुष्य नहीं, पशु समझेगा। वह राक्षस हो जाएगा और तुम्हारा रक्त पिएगा, हड्डियां चबा जाएगा।" राम का स्वर कोमल हो गया, "और राम अयोध्या का राज्य इसलिए नहीं छोड़कर आया कि दंडक वन में एक खान का स्वामी बनकर बैठ जाए।"
राम चुप हो गए और कोई भी नहीं बोला।
राम पुनः बोले, "खान तुम्हारी है। तुम खान के स्वामी हो। उसका प्रबंध तुम करो, उससे उत्पादन तुम करो, उसका भोग तुम करो..."
"कैसे? कैसे?" कई लोग चिल्ला उठे।
"यह तुम्हें मुखर सिखाएगा।" राम मुस्कराए, "आज से मुक्त होकर, नये समाज का निर्माण करो।"
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