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राम कथा - संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6499
आईएसबीएन :21-216-0761-2

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, तीसरा सोपान

ऋषि कुछ रुके, "तुमने क्या किया राम? जहां-जहां लोगों को संगठित किया, वहां से राक्षस निकल गए। जानते हो, वे कहां गए-वे सब जनस्थान में रावण के सेनापतियों के पास जा पहुंचे हैं। वहां साम्राज्य सेना एकत्र हो रही है। लंका से वह स्थान बहुत दूर भी नहीं है। तत्काल, रावण द्वारा सहायता पहुंचाई जा सकती है। साम्राज्य की ओर से समस्त अधिकारों से युक्त, स्वयं रावण की बहन शूर्पणखा वहां विद्यमान है। वह सेना आक्रमण करेगी, तो क्या होगा? तुम्हारा कौन-सा संगठन उसे रोक पाएगा? वह ग्राम अथवा वन में बसने वाला राक्षसों का टोला नहीं, उस व्यवस्था की सेना है, जो दसों दिशाओं में राक्षसों को जन्म देती है, उन्हें पोषित करती है और उनको संरक्षण प्रदान करती है। और आक्रमण की स्थिति में उस सेना को रोका नहीं गया, तो वह दंडक वन ही में नहीं; उसके ऊपर तक ग्रामों, पुरवों, टोलों, पुरों, नगरों को उसी प्रकार उखाड़ती चलेगी, जैसे झंझावात नन्हें पौधों को उखाड़ता है, अथवा हल की फाल गीली धरती को उधेड़ती चलती है। तुम जानते हो राम, यदि यह विनाश-लीला हुई, तो उसके लिए उत्तरदायी तुम हो-क्योंकि इसके कारण तुम हो; तुमने ही उन्हें उतेजना दी है।"

ऋषि का चेहरा देख सीता का मन कांप उठा। कितने उत्तेजित थे गुरु और कितने उग्र...किंतु राम...राम की आंखों की गहराई में जैसे हंसी छा गई, "मैं राम हूं ऋषिवर, और राम अपने किसी दायित्व से नहीं भागता। यदि वह मेरे ही कारण हुआ है, तो तनिक भी बुरा नहीं हुआ। यदि मैंने दो जीवन-दर्शनों के विरोधों को इस उग्रता से उभारकर, एक-दूसरे के आमने-सामने खड़ा कर दिया है, तो क्या हुआ? विनाशलीला तो होगी, किंतु आप मेरा विश्वास करें कि इस विनाश-लीला में राक्षस-पक्ष अपने अत्याचारों का दंड पाएगा-जिस विनाश की कल्पना से आप आशंकित हैं, जनसामान्य का वह विनाश नहीं हो पाएगा। उनके मरने के नहीं, ढंग से जीने के दिन आ रहे हैं।"

"यह राजकुमारों का आखेट नहीं है राम," अगस्त्य का स्वर और भी कदु हो गया, "यह अंधकार और प्रकाश का, जीवन-मरण का संघर्ष है। सुख-सुविधाओं में पले राजकुमारों को यह महंगा पड़ेगा। तुम भूलते हो कि छोटे-मोटे सामान्य राक्षसों की हत्याओं से रावण को एक खरोंच तक नहीं लगती। मैंने कालकेयों का नाश किया तो वह उनकी सहायता को नहीं आया, क्योंकि उनसे वह रुष्ट था; किंतु जनस्थान में स्वयं उसकी अपनी बहन है, उसके अपने सेनापति हैं, जो संबंध की दृष्टि से उसके भाई भी हैं। उनका विरोध होते ही साम्राज्य क्रूर हो उठेगा। वह अपनी समस्त शक्ति से टूट पड़ेगा। उसकी शक्ति को जानते हो? उसके सहस्रों भयंकर कवचधारी रथ हैं-तुम्हारे पास एक घोड़ा तक नहीं। उसके सहस्रों भयंकर शस्त्रधारी राक्षस तुम्हारे छोटे-मोटे आयुधों वाले नौसिखिए सैनिकों को घड़ी-भर में समाप्त कर देंगे। तुम उसकी शक्ति की कल्पना नहीं कर सकते। स्वयं ब्रह्मा तथा शिव जैसी महाशक्तियां उसकी संरक्षक हैं। तुम क्या हो-निर्वासित राजकुमार! ऐसा युद्ध होगा कि तुम्हारा भाई और पत्नी भी तुम्हें छोड़ भागेंगे।..."

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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