बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
युद्ध-क्षेत्र में उसके प्रवेश करते ही वानर सेना में आतंक छा गया। नासीर सेना में हनुमान नियुक्त थे। उन्होंने आगे बढ़कर कुंभकर्ण को रोका, किंतु थोड़ी देर में स्पष्ट हो गया कि मदिरोन्मत कुंभकर्ण इस समय अमानवीय स्थिति में है। साधारण खड्गों तथा वाणों से लगे घावों का तो जैसे उसे आभास ही नहीं होता है। उसके कवच से टकरा-टकरा कर बाण जैसे उसके चरणों में नत हो जाते हैं और वह उन सबसे निर्द्वन्द्व एक हाथ से त्रिशूल चला था और दूसरे हाथ से गदा। उसका रथ जिस और बढ़ जाता था, उधार ही वानर सेना से एक खाई प्रकट हो जाती थी। और वह किसी भी आक्रमण में अप्रभावित, अप्रतिहत यंत्रचलित-सा आगे बढ़ता जा रहा था।
हनुमान ने और कोई उपाय न देख, दोनों हाथों में गदा पकड़, पूरे वेग से घुमा कर उसके रथ के पहिए पर कठोर प्रहार किया : रथ डगमगाया, किंतु रुका नहीं। हनुमान ने अपने सैनिकों को कुचले जाने से बचाने के लिए पीछे हटाया और अगले घोड़े पर प्रहार किया। घोड़ा तड़पा और भूमि पर लेट गया...। किंतु तब तक कुंभकर्ण का त्रिशूल हनुमान के कंधे तथा वक्ष के बीच एक गहरा घाव लगा गया।
हनुमान को व्याकुल होते देख ऋषभ, नील, गवाक्ष, शरभ तथा गंधमादन अपनी टुकड़ियों के साथ कुंभकर्ण का मार्ग रोक कर खड़े हो गए थे। किंतु कुंभकर्ण को मार्ग में खड़ी कोई बाधा जैसे दिखती ही नहीं थी। उसका रथ सबको पीसता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। उसके प्रहारों से ऋषभ, नील और शरभ आहत होकर पीछे हट गए थे।
वानर सेना की भयंकर क्षति हो रही थी। कुंभकर्ण का रथ कालचक्र के समान आगे बढ़ रह था। अंगद को लगा यदि इसकी गति तत्काल न रोकी गई तो थोड़ी देर में वानर सेना युद्ध-क्षेत्र छोड़कर भागती दिखाई पड़ेगी; और एक बार पैर उखड़ जाएं तो सेना लौटा लाना बड़ा कठिन होता है।
अंगद ने कुंभकर्ण को उलझाने का प्रयत्न किया; किंतु उलझते हुए अंगद को एक ओर धकिया कर कुंभकर्ण का रथ आगे बढ़कर सुग्रीव से जा टकराया। सुग्रीव ने अपनी गदा के प्रहार से, दो घोड़ों को आहत कर दिया। कुंभकर्ण ने भयंकर आक्रोश में अपना त्रिशूल सुग्रीव पर चला दिया; किंतु घायल हनुमान ने उछल कर त्रिशूल पकड़ लिया और तत्काल अपनी गदा के प्रहार से उसके दो खंड कर दिए।
हनुमान उधर त्रिशूल को तोड़ने में लगे थे, इधर कुंभकर्ण ने गदा का भयंकर प्रहार सुग्रीव पर किया। भूमि पर खड़े सुग्रीव, रथ की ऊंचाई से हुए इस प्रहार को बचा नहीं पाए। सिर चकराया और वे मूर्च्छित होकर भूमि पर आ रहे।
"इसे पकड़ लो।" कुंभकर्ण ने अपने सैनिकों को आदेश दिया और स्वयं भी कूद कर भूमि पर आ गया।
हनुमान उसका प्रयोजन समझते ही व्याकुल हो उठे।
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