बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
"अच्छी लगी! अपने भाई की पसंद मैं नहीं समझूंगा तो और कौन समझेगा।" रावण मुसकराया, "इसलिए मैंने इस मदिरा के अनेक भांड मंगवाने का आदेश दिया है। व्यक्ति मदिरा पिए तो अच्छी पिए और छक कर पिए।" रावण रुका, "वैसे भी, लोग पीते तो हैं; किंतु उनमें अच्छे-बुरे का भेद करने का विवेक नहीं होता। मेरा विचार है, तुम जैसा मदिरा का पारखी, लंका में दूसरा नहीं है।"
"मदिरा भी समर्पण चाहती है।" कुंभकर्ण बोला, "अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करना पड़ता है, तब कहीं अच्छी-बुरी मदिरा की परख होती है। दो-चार पात्र पीकर कोई मदिरा विशेषज्ञ नहीं बन सकता।"
"इधर, साम्राज्य के कुछ बड़े सम्पन्न व्यापारी आए थे। मैंने उनसे कुछ वस्तुएं खरीदी थीं। देखो, शायद तुम्हारी रुचि उनमें हो।"
रावण के संकेत पर दासियां हाथी-दांत की बनी अनेक पेटिकाएं ले आईं जिनमें अनेक मणियां और रत्नजड़ित आभूषण थे। एक-एक कर उन्हें दासियों ने कुंभकर्ण के शरीर पर अलंकृत कर दिया। कुंभकूर्ण मुग्ध दृष्टि से उन आभूषणों को देखता रहा, भुना हुआ कुरमुरा मांस खाता रहा और पात्र में रावण द्वारा ढाली गई मदिरा पीता रहा...।
"तुम आज रुष्ट हुए पिता अथवा गुरु के समान मुझे उपदेश क्यों दे रहे हो?" अन्त में रावण बोला, "तुम मेरे प्रिय भाई हो। विभीषण मुझे छोड़ गया है। अब तुम मेरे एक मात्र भाई हो। संकट में तुम्हें मेरी सहायता करनी चाहिए अथवा मेरी त्रुटियां बताकर, मुझे प्रताड़ित कर, मेरी कठिनाई और बढ़ानी चाहिए;"
कुंभकर्ण की आंखों में से बड़े भाई के आदर का संकोच कहीं विलीन हो गया था, वहां न्याय और विवेक की चमक भी नहीं थी। वहां केवल मदिरा लहरा रही थी। उसने एक अमर्यादित अट्टहास किया, "लंका में केवल राजा शेष है। कोष खाली हो गया है और सेना मार डाली गई है।" वह देर तक हंसता रहा, "पर भैया! आप चिंता न करें। कुंभकर्ण अभी जीवित है। लडूंगा जाकर। किसी और को जाने की आवश्यकता नहीं है, सैनिकों को भी नहीं, सेनापतियों को भी नहीं। मैं अकेला जाऊंगा। इन नीच वानरों को मार डालूंगा और उन कंगले राजकुमारों के मुंड काट कर आपके चरणों में ला डालूंगा। सीता सदा के लिए आपकी हो जाएगी। आपके सुख में बाधा देने वाले किसी भी जीव को मैं जीवित नहीं छोडूंगा।"
"तुम राम आर लक्ष्मण की शक्ति से भयभीत तो नहीं हो कुंभकर्ण?" रावण ने उसे उकसाया, "भय लगता हो तो लड़ने मत जाओ।"
कुंभकर्ण ने निकट ही अब तक मौन बैठे महोदर की ओर देखा, "यह महोदर डरता है, इसलिए यहां बैठा है; नहीं तो अब तक युद्ध-क्षेत्र में जाकर मर गया होता। मैं किसी से नहीं डरता। मैं आपको राम और लक्ष्मण के वध का वचन देता हूं भैया।"
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