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राम कथा - युद्ध

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6498
आईएसबीएन :21-216-0764-7

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान

रावण को लगा, क्रोध से उसका दम घुट जाएगा...। क्या करे वह इस प्रतिरावण का...। उसने शूर्पणखा को लंका से निकाल अश्वपुरी रखा है, विभीषण को लंका से निकाल दिया है...किंतु यह प्रतिरावण...और अब एक-एककर धूम्राक्ष, वज्रदंष्ट्र, दुर्कम्पन, सनुन्नत, महानाद, कुंभहनु और प्रजन्य मारे जा चुके हैं...। 

रावण के अपराजेय बल में लंकावासियों का विश्वास नहीं रहा। उसका विरोध बढ़ता जा रहा है। स्थान-स्थान पर लोग कहते-फिरते हैं कि सीता को लौटाकर उसे राम से संधि कर लेनी चाहिए...। लंका को वानर सेना ने ऐसे घेर रखा है कि आवश्यक सामग्री की कमी होती जा रही है। लंकावासी कठिन जीवन जीने के अभ्यस्त नहीं हैं। विलास के बिना वे जी नहीं सकते। वे चाहते हैं, युद्ध समाप्त हो। लंका में शांति हो ताकि विलास की अवाध धारा...

कैसा विवश हो गया है देवशत्रु महाराजाधिराज रावण न सीता को लौटा सकता है, न उसका वध कर सकता; और न बलात् उसे अपनी शैया पर खींच सकता है...। उसकी अपनी बहन उसकी विरोधिनी हो गई, उसकी बाधा बनकर उसके मार्ग में खड़ी हो गई है और उसका भाई उसके शत्रु के साथ जा मिला है...

"अपनी आशक्ति के कारण सीता का वध तो तू कर नहीं सकता।" प्रतिरावण का स्वर उसके मस्तिष्क में गूंजा, "विभीषण से तो प्रतिशोध ले सकता है। सरमा और कला का वध कर दे..."

रावण का मन सिहर उठा : यह प्रतिरावण उसे विनाश की ओर धकेलकर ही छोड़ेगा। यदि रावण ने अपना नियंत्रण तनिक भी शिथिल किया तो प्रतिरावण उसे अपने प्रवाह में बहा ले जाएगा...और यदि रावण ने सचमुच सरमा अथवा कला के साथ कोई दुर्व्यवहार किया तो न केवल कुंभकर्ण उसका साथ छोड़ जाएगा; मंदोदरी और प्रबल होकर उसका विरोध करेगी; वरन् लंका के भीतर उपद्रव होने लगेंगे। विभीषण-समर्थक सगंठन लंका की प्राचीर में भीतर से सेंध मारने लगेंगे। जो युद्ध लंका की प्राचीर के बाहर हो रहा है, वह लंका की वीथियों, पंथों और चतुष्पथों पर होने लगेगा...

इस प्रतिरावण से भी छुटकारा पाना है; किंतु राम! पहले इस मायावी राम का प्रबंध करना होगा। इस दुष्ट ने नीच वानरों को आकाश पर चढ़ा दिया है। इन्हें विश्वास दिला दिया है कि वे भी मनुष्य हैं और राक्षसों के समतुल्य हैं...। किंतु रावण उन्हें अच्छी तरह समझा देगा कि उनकी नियति क्या है। वानर, वानर ही रहेंगे और राक्षस, राक्षस ही, राम अथवा वैसे ही लवाड़िए प्रचारकों की बातों का क्या है...। रावण यह सत्य प्रमाणित कर दिखाएगा कि वानर नीच होकर ही जन्मा है और नीच रहकर ही मरेगा। वे राक्षसों के सुख के साधन मात्र हैं। उन्हें वहीं रहना होगा...

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. तेरह
  13. चौदह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह
  18. उन्नीस
  19. बीस
  20. इक्कीस
  21. बाईस
  22. तेईस
  23. चौबीस

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