बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
"यह युद्ध मात्र आपका और रावण का ही युद्ध नहीं है आर्य।" गरुड़ ने कहा, "यह युद्ध मात्र वानरों और राक्षसों का ही नहीं है। आज समस्त संसार की दृष्टि इस युद्ध पर लगी हुई है भावी मानवता के स्वरूप का निर्णय भी इसी युद्ध में होगा। संसार की समस्त छोटी-बड़ी शक्तियां इस युद्ध से प्रभावित होंगी। यह दूसरी बात है, अयोध्या में बैठे तुम्हारे भाइयों तक को इस युद्ध की सूचना नहीं; किंतु देव महाशक्तियां ऐसीं घटनाओं से अनभिज्ञ रहकर जीवित नहीं कर सकतीं। सारी महाशक्तियां कोई-न-कोई पक्ष ग्रहण करेंगी; किंतु खुलकर नहीं...। "
"खुलकर क्यों नहीं?" लक्ष्मण का स्वर गंभीर था।
"अनेक कारण हैं सौमित्र।" गरुड़ मुसकराकर बोले, "राक्षस सेना के पास सामान्य राजाओं से अधिक दिव्यास्त्र हैं। फिर वे दिव्यास्त्रों से हीन हैं। तुमने सीरध्वज जनक के प्रासाद में महादेव शिव का धनुष देखा था न।"
"हां आर्य! देखा था।"
"यदि आज कुछ देव-शक्तियां प्रकट रूप से तुम्हारी ओर से लड़ेंगी तो यह मत भूलो कि रावण ब्रह्मा का प्रपौत्र तथा शिव का प्रिय भक्त है। यदि शिव ने वैसे देवास्त्र रावण को दिए, उनका ईंधन तथा उनकी परिचालन-विधि का ज्ञान दे दिया, रावण ने उन देवास्त्रों का प्रयोग तुम्हारे विरुद्ध किया, तो तुम्हारी सेना की क्या स्थिति होगी?"
"हमारी बहुत क्षति होगी।"
"इसलिए देव-शक्तियां प्रकट रूप से तुम्हारे पक्ष में नहीं आ सकतीं। गरुड़ मुस्कराए, यथासंभव गुप्त सहायता दोनों ओर से आएगी...। वे औषधियां भी उसी गुप्त सहायता का ही अंग हैं।" वे रुके, "मेरे साथियों ने तुम्हारे योद्धा वैद्य सुषेण को औषधियों का ज्ञान दे दिया होगा। वे उनका प्रयोग करेंगे।" उन्होंने मुस्कराकर राम की ओर देखा, "अब हमें जाने की अनुमति दें..." वे रुके, "हमारा आना गोपनीय ही रहे तो शुभ है।"
"आप आश्वस्त रहें भद्र!" राम ने कहा।
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