बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
"मैं सहमत हूं।" राम बोले, "यह कार्य हनुमान ही करें। किंतु अग्रिम टुकड़ियों के विषय में मेरी योजना है कि लंका की भूमि पर टुकड़ियों के रूप में नहीं, वाहिनियों के रूप में उतरा जाए।"
"तो?"
"बाईं ओर से जितना संभव हो, उतना फैलकर सौमित्र, अंगद और नील उतरें। दाहिनी ओर से वैसे ही गया, गवाक्ष और गंधमादन उतरें। सेतु के अंतिम चरण का निर्माण कर लंका की भूमि पर उतरने वाली वाहिनी मेरे साथ रहेगी। सेतु के मध्य भाग में जाम्बवान रहेंगे। सेतु के आरम्भ में सुग्रीव और विभीषण रहें। तार और केसरी सारी सेना को पार उतार, पीछे की देखभाल करते हुए आएं। सेतु की रक्षा, इस ओर के सागर-तट की रक्षा जन सैनिक करें। किष्किंधा से सम्पर्क बनाए रखने के लिए उत्तरदायी शिल्पी होंगे। शेष यूथपति अपनी-अपनी वाहिनियों के साथ यथाशीघ्र आएं।"
"यद्यपि मैं भी आगे जाना चाहता था," सुग्रीव बोले "किंतु सेना के महासेनापति की योजना उत्तम है। ऐसा ही हो, ताकि लंका में उतरते ही हमारे पांव उस भूमि पर जम जाएं और मुंह की खाकर लौटने की बात न सोचनी पड़े।"
"तो फिर यही हो।" लक्ष्मण का स्वर गंभीर था, "तत्काल इस योजना पर कार्य आरम्भ किया जाए।"
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