बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
|
6 पाठकों को प्रिय 198 पाठक हैं |
राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
"मैं कहता था न।" नल ने गर्व से राम की ओर देखा।
"हमारा अनुमान ठीक है।" सागरदत्त ने कहा।
"मैं तुम्हारे अनुमान से कुछ सहमत तो हूं; इसीलिए दो जलपोत इस स्थान पर डुबोए हैं।" राम चिंतनपूर्ण स्वर में बोले, "किंतु हमें एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि कहीं हम अपनी इच्छा का ही तो प्रतिबिंब नहीं देख रहे हैं। यहां कोई जलमग्न पहाड़ी भी हो सकती है।" राम क्षण भर रुककर बोले, "यदि यह पहाड़ी है तो हमारे किसी काम नहीं आएगी, और यदि सचमुच यह सागर की मर्यादा है तथा आगे का जल स्तिया है, तो हम अपने परिश्रम के बल पर सागर से अपना मार्ग छीन लेंगे।"
"उसके लिए आवश्यक है राम।" नल ने कहा, "कि हमें कुछ और जलपोत भी डुबोने की अनुमति मिले...।"
"हमारे पास जितने भी जलपोत हैं, तुम्हें उन्हें डुबो देने की अनुमति है।" राम बोले, "अब इस निश्चय से पीछे हटना मेरे लिए संभव नहीं है।"
"तो ठीक है राम। मैं इस सरल रेखा में चार पोत और डुबोऊंगा।" नल बोले, "यदि उनका परिणाम भी यही हुआ, जो इन जलपोतों का हुआ है, तो आप निश्चित जानिए कि सागर की सीमा यहां समाप्त होती है और आगे का जल स्तिया मात्र है, अतः मात्र एक भ्रम हे। ऐसी स्थिति में इसी रेखा के साथ-साथ भूमि को उभार कर ऊंचा कर देने से ये दोनों जल अलग हो जाएंगे और बीच का सेतु हमारी सेनाओं को पार उतारने के लिए एक विशाल मार्ग बन जाएगा।"
"तुम्हारी कामना पूर्ण हो नल।" राम भावनापूर्ण स्वर में बोले, "हमारा सारा अभियान अब तुम्हारी इसी योजना पर टिका हुआ है।"
|