बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
"नहीं! इस समय तो निराश नहीं लग रहे।" लक्ष्मण हंस नहीं सके, "ऐसे ही कह दिया। वस्तुतः भाभी के हरण के पश्चात् से आप में निराशा और आक्रोश के आवेग अपेक्षाकृत जल्दी उठ खड़े होते हैं।" लक्ष्मण ने रुककर अपनी बात की प्रतिक्रिया देखनी चाही, फिर बोले, "यद्यपि वे आवेग अस्थाई होते हैं...यह चर्चा मैंने जानबूझकर छेड़ी है भैया? मुझे लग रहा है कि हमारी सेना में अधैर्य जाग रहा है। यदि उन्हें तनिक-सा भी आभास मिला कि स्वयं आर्य राम निराश हो रहे हैं तो सेना का मनोबल संभालना कठिन हो जाएगा।"
राम को लगा, वे एक नए लक्ष्मण को देख रहे हैं : यह लक्ष्मण केवल अत्यंत गंभीर, दृढ़ तथा परिपक्व ही नहीं थे; वे वय में भी राम के बराबर हो गए थे। अब लक्ष्मण समानता के धरातल पर उनसे बात कर सकते हैं, उन्हें परामर्श दे सकते हैं, उन्हें चेता सकते हैं...तैंतालीस वर्ष के वय के राम और इकतीस वर्ष के सौमित्र के बीच का वय-भेद इस संघर्षशील जीवन ने समाप्त कर दिया था।
"तुम निश्चिंत रहो सौमित्र! राम बोले, "मेरा मनोबल इस सागर से भी नहीं हारेगा। और कुछ न भी हो तो सीता की स्मृति मुझे शांत नहीं बैठने देगी।"
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