बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
रावण ने पुनः ताली बजाई। द्वारपाल आया। आदेश दिया और युद्ध सामग्री उपस्थित हुई। रावण ने ब्रह्मा-प्रदत्त चमचमाता हुआ कठोर कवच धारण किया। ब्रह्मा-प्रदत्त ही धनुष उठाया। कटि में खड्ग बांधते-बांधते रावण रुक गया-
प्रतिरावण हंस रहा था-"हां! हां!! जा। अकेली निरीह वैदेही का वध कर दे, जैसे लक्ष्मण ने मेघनाद को मारा है। सीता के मरते ही यातुधानों की माया से राम और लक्ष्मण भी मर जाएंगे। राम और लक्ष्मण के वध के पश्चात अपने मणि-महालय में जाकर सेज सजाना और उस पर सीता के रुंड और मुंड को जोड़कर रखना और उसका भोग करना-"
रावण समझ गया, वह सीता का वध नहीं कर सकता-सीता का वध कर सकता अथवा उसका मोह त्यागकर उसे लौटा सका होता, तो यह दिन क्यों देखना पड़ता-सीता तो उसके जीवन में संपूर्ण संघर्षों की उपलब्धि थी-सीता ही न रही, तो राम और लक्ष्मण से युद्ध कैसा? वे मंदोदरी का हरण करने तो आ नहीं रहे हैं।-नहीं! सीता को जीना पड़ेगा; जब तक राम और रावण में से एक भी व्यक्ति जीवित है, उसे जीना पड़ेगा और रावण को लड़ना पड़ेगा।-पहले दिन से ही स्पष्ट था कि सीता को प्राप्त करने के लिए लड़ना पड़ेगा। उसने युद्ध को टाला और सीता उठा लाया; किंतु सीता उसे नहीं मिली। सीता उसे युद्ध के बाद ही मिले। सीता जैसी विश्व-सुंदरी के लिए युद्ध न हो, यह कैसे संभव है-सीता, राम को चाहिए या रावण को-युद्ध के बिना वह किसी को नहीं मिल सकेगी। यदि रावण ने यही युद्ध पंचवटी में लड़ लिया होता तो उसके बंधु-बांधवों के वध की यह स्थिति नहीं आती। अकंपन के परामर्श ने ही उसे डुबोया है-
प्रतिरावण पुनः अट्टहास कर उठा, "तू लड़ेगा रावण? राम से तू युद्ध को टालता नहीं आया, तू राम से डरता आया है। यदि तू राम से भयभीत नहीं था तो क्यों अपने पुत्रों, भाइयों, मंत्रियों को भेजता रहा? क्यों स्वयं लड़ने नहीं गया?-राम का वय कम है। उसका शरीर फुर्तीला है। उसमें ऊर्जा है। उसका शारीरिक बल, शस्त्र-कौशल, वीरता-? तू अब वृद्ध हो रहा है। थोड़ी देर में दम फूल जाता है। धनुष को अधिक खींचने से पेशियों में पीड़ा होने लगती है। काल तुझे मार गया है।-सोच ले! राम आज भी वैसा ही योद्धा है, जैसा पंचवटी में था। इस युद्ध के अनुभव से वह कुछ विकट ही हुआ होगा, कम नहीं हुआ, आखिर कोई तो कारण होगा- सीता ने उसे सदा स्वीकार किया, तेरा तिरस्कार।
रावण के हाथ अपनी ग्रीवा तक उठ गए; और तब उसे अनुभव हुआ कि प्रतिरावण उसके शरीर के भीतर ही है। रावण के जीवित रहते, प्रतिरावण का वध नहीं हो सकता, जैसे रावण के जीवित रहते न सीता का वध हो सकता है, न उसे त्यागा जा सकता है।
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