बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
"अब इस पर्वत में से छांटकर विशल्यकर्णी मुझे दो।" जाम्बवान बोले, "जब तक राम-लक्ष्मण स्वस्थ नहीं होते, तुम्हारी संजीवनी अधिक उपयोगी नहीं हो पाएगी।"
अनेक लोगों ने मिलकर विशल्यकर्णी को अन्य औषधियों से पृथक किया और उसे पीसकर जाम्बवान को दिया। जाम्बवान ने उसका रस राम और लक्ष्मण के मुख में टपकाया। उनकी नाक के पास औषधि रखकर उन्हें सुंघाया और रस निकल जाने के पश्चात बची हुई पत्तियों को उनके घावों पर लगाया। इतना कर उन्होंने नाड़ी-परीक्षण किया और प्रसन्नता से सिर हिलाया, "इन्हें थोड़ी हवा करो हनुमान। तब तक मैं अन्य लोगों को देखता हूं।" सहसा वे रुके, "तुम्हारे पिता केसरी का उपचार पहले नहीं किया, इससे रुष्ट नहीं होंगे?"
हनुमान मुस्कराए, "नहीं! नेता का उपचार पहले होना ही चाहिए।"
"ठीक है।"
जाम्बवान यूथपति केसरी की ओर बढ़ गए। उनके पश्चात् सुषेण, ऋषभ तथा द्विविद का उपचार किया। और उसके पश्चात अनेक यूथपतियों, सेनापतियों तथा सैनिकों की चिकित्सा करते रहे। इसी बीच अनेक लोगों ने उसी प्रकार जाम्बवान से पूछ-पूछ कर सुग्रीव, अंगद तथा नील का भी औषधि से उपचार किया। स्वयं जाम्बवान के घावों पर भी लेपन किया गया।
क्रमशः राम और लक्ष्मण का श्वास अपनी स्वाभाविक गति में आ गया। उनकी मूर्छा भंग हो गई। दोनों को संज्ञा प्रायः साथ-साथ ही लौटी। वानर सेना ने हर्ष का चीत्कार किया। कुछ क्षणों में ही सारे स्कंधावार में सूचना फैल गई कि राम और लक्ष्मण दोनों ही सचेत हो उठे हैं। सचेत होते ही राम ने पूछा, "तेजधर कैसा है?"
सबके झुके हुए मस्तक तथा भिंचे हुए होंठ देखकर उन्हें अनुमान करने में कठिनाई नहीं हुई।
"उसने वीरगति पाई है?"
सागरदत्त ने आकर उनका हाथ पकड़ा। सहारा देकर उठाया और बोला, "आइए।"
तेजधर के शव के पास राम चुपचाप खड़े रहे। उसके चेहरे के उत्साह को देखते-देखते उनकी आंखों से दो अश्रु टपककर तेजधर के निर्जीव चेहरे पर जा गिरे।
"इस बालक ने अपने प्राण देकर मुझे और लक्ष्मण को बचाया है।" राम रुद्धकंठ से बोले, मैंने अचेत होते हुए इसकी वाहिनी का वीर-दर्प देखा था। सहसा उनकी आंखें कठोर हो उठीं, "कल ही मेघनाद को इसका मूल्य चुकाना होगा।"
तब तक लक्ष्मण भी आकर उसके निकट खड़े हो गए थे। उनके मस्तिष्क में भयंकर पीड़ा थी। उन्होंने अपने दाहिने हाथ के अंगूठे और मध्यमा से अपने माथे को दबाया और बोले, "यह कैसे होगा भैया? उसके ब्रह्मास्त्र का तोड़ हमारे पास नहीं है।"
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