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राम कथा - दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6497
आईएसबीएन :21-216-0759-0

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, प्रथम सोपान

''लक्ष्मण!'' राम बोले, ''इन्हें वन में ले जाकर इनका वध कर दो। देखना इनका गंदा रक्त सिद्धाश्रम की पवित्र भूमि पर न गिरने पाए।''

उपस्थित समुदाय उल्लसित हो कोलाहल कर उठा। एक क्षण पहले तक उनमें से कदाचित् ही किसी ने सोचा था कि इन सेनानायक-पुत्रों को भी कोई दंड दिया जा सकता है। राम के न्याय ने उनमें न्याय के प्रति आस्था जगा दी थी।

गुरु विश्वामित्र अत्यन्त आश्वस्त लग रहे थे।

आचार्य विश्वबंधु के चेहरे का रंग उड़ गया। फीके स्वर में बोले, ''राम! यह भी तो सोचो, क्षण-भर में सेनापति बहुलाश्व अपनी आर्य सेना को लेकर सिद्धाश्रम पर चढ़ दौड़ेगा। फिर उससे कौन लड़ेगा? यदि तुम समर्थ भी होओ, तो क्या कोसल की आर्य सेना का नाश करना तुम्हारे लिए उचित होगा?''

''आप व्यर्थ चिंता कर अपना बहुमूल्य स्वास्थ्य नष्ट न करें आचार्य-पाद्! अभी आपको अनेक यज्ञ करने हैं। बहुलाश्व की समस्या आप हमारे लिए छोड़ दें। जो सिंह की गर्दन मरोड़ सकता है, वह उसकी मौसी बिल्ली की पूंछ भी ऐंठ सकता है।'' लक्ष्मण वक्रता से मुस्कराए और देवप्रिय तथा उसके साथियों को पशुओं के समान हांकते हुए वन की ओर चले गए। उनके मन की प्रसत्रता, उनके एक-एक अंग से फूटी पड़ रही थी।

राम ने आचार्य विश्वबंधु को कोई उत्तर नहीं दिया। वे गहन के पुत्रों की ओर उन्मुख हुए, ''वीरो! मैं तुम्हारे कृत्य से अत्यन्त प्रसन्न हूं। तुम्हें समर्थ जानकर, वीरता का एक और कार्य तुम्हें सौंपता हूं। मारीच की मृत्यु का हमें कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिला है। तुम लोग अपने ग्रामवासियों के साथ उसका शोध कर मुझे सूचित करो, ताकि उस दुष्ट के बोझ से पृथ्वी को हल्का किया जा सके।'' राम क्षण-भर रुककर जैसे समझाते हुए बोले, ''पर एक बात का ध्यान रखना। यदि वह जीवित और सक्षम अवस्था में मिल जाए और तुम लोगों पर भारी पड़े तो युद्ध का अनावश्यक जोखिम मत उठाना। मुझे सूचित कर देना।''

निषादों की टोली ने अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक झुककर राम को प्रणाम किया और सिद्धाश्रम से बाहर जाने के लिए मुड़ गई।

निषादों की टोली के जाते ही, एक दूसरी टोली सिद्धाश्रम में प्रविष्ट हुई। यह टोली अश्वारोहियों की थी।

राम ने ध्यान से उन्हें देखा। उनकी संख्या दो-ढाई सौ से कम नहीं थी। वे सब सैनिक वेश में थे और सबके सब सशस्त्र थे। उनके आगे-आगे एक ऊंचे श्वेत अश्व पर उनका नायक था।

राम कुछ चकित थे। आर्य नियमों के अनुसार, कभी भी व्यक्ति को, चाहे वह स्वयं उस देश का राजा ही क्यों न हो-आश्रम में प्रवेश होने से पूर्व अपना वाहन, अपने शस्त्र, अपनी सेना सब कुछ सिंहद्वार के बाहर ही त्यागना पड़ता है। तो यह कौन है जो इतने सशस्त्र सैनिकों के साथ अश्वों पर आश्रम के भीतर चला आया है। फिर, आश्रम की सीमाओं पर नियुक्त आश्रमवासियों ने इन लोगों के आने की सूचना भी राम तक नहीं पहुंचाई। वे आश्रमवासी वहां नहीं हैं, इन लोगों के द्वारा मार डाले गए हैं या इनको मित्र समझकर बेरोकटोक भीतर आने दिया गया है?

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    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

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