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राम कथा - अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :170
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6496
आईएसबीएन :81-216-0760-4

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, दूसरा सोपान

राम ने सब कुछ चुपचाप देखा। अयोध्या के बाहर आज यह उनकी पहली रात थी। वनवास की सारी अवधि के रहन-सहन का प्रायः यही रूप होगा। बहुत होगा, तो लक्ष्मण कोई कुटिया बना देंगे। वे लोग उसी कुटिया में इसी प्रकार पत्र शैयाओं पर सोएंगे। वृक्षों से तोड़कर लाए गए फल, वन द्वारा दिए गए कंद-मूल, नदी का जल और अहेर द्वारा प्राप्त आहार-इन्हीं पर चौदह वर्ष कटेंगे...। वैसे लक्ष्मण द्वारा बनाई गई कुटिया काफी अच्छी और सुखद होती है। अयोध्या के बाहर के वनों में, अहेर के लिए जाने पर, अनेक बार लक्ष्मण द्वारा बनाई गई कुटियाओं में राम रहे हैं। सैनिक अभियानों में भी, इसी प्रकार की अस्थाई व्यवस्था लक्ष्मण ने की है। ये लक्ष्मण की इस कला के प्रशंसक रहे हैं।

...सिद्धाश्रम की यात्रा में भी, गुरु ने उन्हें कई बार पेड़ों के नीचे ठहराया था : किंतु भेद केवल इतना ही है कि इस बार वे अयोध्या के निर्वासित राजकुमार हैं; और निर्वासन की अवधि बड़ी लम्बी है।

...लक्ष्मण पहरे पर खड़े हैं। ये ऐसे ही सन्नद्ध रहेंगे। कदाचित लक्ष्मण को यह वनवास कष्टप्रद न लगे। लगे भी तो वह ऐसा दिखाएंगे नहीं। जीवन के कष्ट, लक्ष्मण को दीन नहीं कर पाते-वे उन्हें चुनौती से लगते हैं; और चुनौतियां लक्ष्मण की जिजीविषा में वृद्धि ही कर सकती हैं-उसका क्षय नहीं...। किंतु सीता! सीता ने कहा था कि वे साधारण कन्या हैं; और सम्राट् सीरध्वज ने उन्हें साधारण जीवन के लिए भी प्रशिक्षित किया है...। पर क्या इतना लंबा वनवास सीता झेल पाएंगी? अभी तो वे यात्रा में हैं, इसलिए नवीनता के आकर्षण में कदाचित् वन्य कष्टों का अनुभव न करें। किंतु जब वे एक स्थान पर ठहर जाएंगे; जीवन नियमित और उबाऊ हो जाएगा-तब सुविधाओं का अभाव अधिक खलेगा। तक कोई व्यवस्था करनी होगी...।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पंद्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

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