बहुभागीय पुस्तकें >> श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण - द्वितीय खण्ड श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण - द्वितीय खण्डगीताप्रेस
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सचित्र, हिन्दी अनुवाद सहित
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
वेद जिस परमतत्त्व का वर्णन करते हैं, वही श्रीमन्नारायणतत्त्व श्रीमद्रामायण में श्रीरामरूप से निरूपित है। वेदवेद्य परमपुरुषोत्तम के दशरथनन्दन श्रीराम के रूप में अवतीर्ण होने पर साक्षात् वेद ही श्रीवाल्मीकि के मुख से श्रीरामायण रूप में प्रकट हुए, ऐसी आस्तिकों की चिरकाल से मान्यता है। इसलिए श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण की वेदतुल्य प्रतिष्ठा है। यों भी महर्षि वाल्मीकि आदिकवि हैं, अतः विश्व के समस्त कवियों के गुरु हैं। उनका ‘आदिकवि’ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण भूतल का प्रथम काव्य है। भारत के लिए तो वह परम गौरव की वस्तु है और देश की सच्ची बहुमूल्य राष्ट्रीय निधि है। इस नाते भी वह सबके लिये संग्रह, पठन, मनन एवं श्रवण करने की वस्तु है। इसका एक-एक अक्षर महापातक का नाश करने वाला है।
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