लेख-निबंध >> मनन और मूल्यांकन मनन और मूल्यांकनविश्वम्भरनाथ उपाध्याय, मंजुल उपाध्याय
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‘‘मनन और मूल्यांकन’’ में डॉ. उपाध्याय के आलोचनात्मक गद्य की रचनाशीलता देखते ही बनती है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘‘मनन और मूल्यांकन’’ प्रसिद्ध आलोचक डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय के नवीनतम चिन्तन-मनन और कृतीक्षण का प्रारूप, वेधक विश्लेषण और सतर्क प्रासंगिक सोच-विचार का अग्रगामी प्रकल्प.....‘मनन और मूल्यांकन’ में जहाँ बहुप्रशंसित : चर्चित ‘‘सल्मांरुश्दी की शौतानी आयतें’’, ‘‘क्रान्ति से संक्रान्ति की ओर’’ जैसे निबन्धों में नए बौद्धिक अभियान और अंतर्दृष्टि से सम्पन्न अभिनव विकल्प हैं, वहीं ‘‘मनन और मूल्यांकन में ‘‘विक्षुब्ध कविता से विक्षिप्त कविता की ओर’’ जैसे ध्यानाकर्षक ताज़े परिप्रेक्ष्य हैं और ‘‘अथातो सौन्दर्य जिज्ञासा’’ तथा अन्य निबन्धों में विविध ज्ञानानुशासनात्मक प्रविधि की प्रस्तुतियाँ भी हैं।
‘‘मनन और मूल्यांकन’’ में डॉ. उपाध्याय की कृतिक्षाएं प्रथम बार इतनी संख्या में प्रकाशित हो रही हैं, जिनसे इस बहुज्ञ और वरिष्ठ समीक्षक की तलस्पर्शी प्रतिभा और नीर-क्षीर विवेकिनी प्रज्ञा का आलोक विकीर्ण होता है.....तत्व बोध, जिज्ञासाओं की अनन्तता, प्रगतिशील विचारधारा और कृतियों का मूल्यान्वेषण जिस ज्ञान गौरव के साथ यहाँ प्रस्तुत किया गया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है......।
‘‘मनन और मूल्यांकन’’ में डॉ. उपाध्याय के आलोचनात्मक गद्य की रचनाशीलता देखते ही बनती है.....‘‘मनन और मूल्यांकन’’ में उत्कृष्ट विवेचना और मेधावी मीमांसा का चमत्कार है।
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