नाटक-एकाँकी >> आजादी के दीवाने आजादी के दीवानेअवध किशोर सक्सेना
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अपने लिए सभी जीते हैं, लेकिन जो मोह ममता और सभी स्वार्थ त्यागकर देश और समाज के लिए जीते हैं उनका जीवन श्रेयष्कर होता है तथा इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में उनका गौरव सदा के लिए अमर हो जाता है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मेरी सृजन यात्रा में कविता, गीत, गजल और
काव्यानुवाद के बाद नाटकों का यह पांचवां पड़ाव है। मेरे बहुत से नाटक
पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं और कुछ आकाशवाणी से
भी प्रसारित हो गये हैं। इन नाटकों के द्वारा मुझे पाठकों का भरपूर स्नेह
प्राप्त हुआ है।
प्रस्तुत नाटकों में मेरे आठ नाटक संग्रहीत हैं। अपने लिए सभी जीते हैं, लेकिन जो मोह ममता और सभी स्वार्थ त्यागकर देश और समाज के लिए जीते हैं उनका जीवन श्रेयष्कर होता है तथा इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में उनका गौरव सदा के लिए अमर हो जाता है।
ऐसे ही अमर शहीदों की गौरव गाथाओं को इन नाटकों में संजोने का प्रयास किया गया है।
अंग्रेजों की कूटनीतियों तथा अत्याचारों से समाज के प्रायः सभी वर्गों में अंग्रेजी शासन के प्रति नफरत एवं असंतोष फैल गया था।
कृषि और देश के कुटीर उद्योग चौपट हो गये थे। करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छिन गई थी। फौज में भी सिपाहियों के साथ अमानवीय व्यवहार हो रहे थे। जो थोड़ी भी आवाज निकालता था, उसे गोली से उड़ा दिया जाता था। वे बौखला गये थे। राजा और महाराजाओं के सब अधिकार छिन गये थे। वे भी अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकना चाहते थे। जगह-जगह ईसाई मिशनरियाँ हिन्दू और मुसलमानों के धर्मों पर मिथ्या आक्षेप लगाकर तथा गरीबों को तरह-तरह के प्रलोभन देकर, हिन्दुस्तानियों को ईसाई बनाने का प्रयास कर रही थीं।
कहने का आशय यह कि अंग्रेजों के प्रति आक्रोश चरम सीमा पर पहुंच गया था। इसी के फल स्वरूप स्वाधीनता आन्दोलन के लिए लाल कमल और चपातियां देश के फकीरों, संन्यासियों और नाचनेवाली औरतों द्वारा सारे देश में बांटी गई थीं, जो अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का निमंत्रण था।
प्रस्तुत नाटकों में मेरे आठ नाटक संग्रहीत हैं। अपने लिए सभी जीते हैं, लेकिन जो मोह ममता और सभी स्वार्थ त्यागकर देश और समाज के लिए जीते हैं उनका जीवन श्रेयष्कर होता है तथा इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में उनका गौरव सदा के लिए अमर हो जाता है।
ऐसे ही अमर शहीदों की गौरव गाथाओं को इन नाटकों में संजोने का प्रयास किया गया है।
अंग्रेजों की कूटनीतियों तथा अत्याचारों से समाज के प्रायः सभी वर्गों में अंग्रेजी शासन के प्रति नफरत एवं असंतोष फैल गया था।
कृषि और देश के कुटीर उद्योग चौपट हो गये थे। करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छिन गई थी। फौज में भी सिपाहियों के साथ अमानवीय व्यवहार हो रहे थे। जो थोड़ी भी आवाज निकालता था, उसे गोली से उड़ा दिया जाता था। वे बौखला गये थे। राजा और महाराजाओं के सब अधिकार छिन गये थे। वे भी अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकना चाहते थे। जगह-जगह ईसाई मिशनरियाँ हिन्दू और मुसलमानों के धर्मों पर मिथ्या आक्षेप लगाकर तथा गरीबों को तरह-तरह के प्रलोभन देकर, हिन्दुस्तानियों को ईसाई बनाने का प्रयास कर रही थीं।
कहने का आशय यह कि अंग्रेजों के प्रति आक्रोश चरम सीमा पर पहुंच गया था। इसी के फल स्वरूप स्वाधीनता आन्दोलन के लिए लाल कमल और चपातियां देश के फकीरों, संन्यासियों और नाचनेवाली औरतों द्वारा सारे देश में बांटी गई थीं, जो अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का निमंत्रण था।
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