नेहरू बाल पुस्तकालय >> मुनिया रानी मुनिया रानीगिजुभाई बधेका
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बाल कथाएं आपके बच्चों के लिए....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
शिक्षक भाई-बहनों से
लीजिए, ये हैं बाल-कथाएँ। आप बचचों को इन्हें सुनाइए। बच्चे इनको खुशी-खुशी और बार-बार सुनेंगे। आप इन्हें रसीले ढंग से कहिए, कहानी सुनाने के लहजे से कहिए। कहानी भी ऐसी चुनें, जो बच्चे की उम्र से मेल खाती हो। भैया मेरे, एक काम आप कभी न करना। ये कहानियाँ आप बच्चों को रटाना नहीं। बल्कि, पहले आप खुद अनुभव करें कि ये कहानियाँ जादू की छड़ी-सी हैं
यदि आपको बच्चों के साथ प्यार का रिश्ता जोड़ना है तो उसकी नींव कहानी से डालें। यदि आपको बच्चों का प्यार पाना है तो कहानी भी एक जरिया है। पंडित बनकर भी कहानी नहीं सुनाना। कील की तरह बोध ठोकने की कोशिश नहीं करना। कभी थोपना भी नहीं। यह तो बहती गंगा है। इसमें पहले आप डुबकी लगाएँ, फिर बच्चों को भी नहलाएं।
अगर मगर
एक थी नदी। उसमें अगर नाम का एक मगर रहता था। गरमियों के दिन आए। नदी का पानी सूख गया। पानी की एक बूंद भी न बची तो अगर मगर के प्राण भी सूखने लगे। वह न तो चल सकता था, न हिल-डुल सकता था। नदी से कुछ दूर एक तालाब था। उसमें थोड़ा पानी बचा था। लेकिन अगर मगर वहां जाए कैसे ? तभी वहां से एक पारसी बाबा गुजरे। अगर मगर ने उनसे प्रार्थना की, ‘‘बाबाजी-बाबाजी, आप मुझे तालाब तक पहुँचा दें तो भगवान आपका भला करेगा।’ वे बोले, पहुंचा टो डूं, लेकिन टेरा क्या भरोसा ? टालाब पहुंच कर टू मेरे को ही खा जाएगा।’ अगर मगर ने कहा, ‘भला मैं आपसे ऐसा सलूक कैसे कर सकता हूं ?’
बाबाजी थे भोले।
उन्होंने अगर मगर पर भरोसा कर उसे उठा लिया और तालाब तक ले आए, लेकिन जैसे ही उसे उसे पानी में छोड़ा कि उसने बाबाजी का पांव पकड़ लिया। बाबाजी बोल उठे, ‘छोड़ डे मुझे टूने जबान डी है। मुझे टू नहीं का सकटा।’ अगर मगर ने कहा, ‘‘नहीं खाऊंगा तो मैं खुद ही मर जाऊंगा। मेरे पेट में चूहे-बिल्ली-कुत्ते बोल रहे हैं। आठ-आठ दिन से भूखा जो हूं।’’ कह कर उसने बाबाजी को पानी में खींचना शुरू कर दिया। बाबाजी बोले, ‘जरा ठहर भी जा। बाट इंसाफ की है। डेख, कोई आ रहा है।’ वह थी एक सफेद बिल्ली। उसने काला चश्मा पहन रखा था। बाबाजी ने जोड़ा, हम उससे इंसाफ करवाएंगे।’
अगर मगर ने सोचा, थोड़ी देर में क्या फर्क पड़ेगा ? चलो यह तमाशा भी देख लेते हैं। बाबाजी का पांव मजबूती से पकड़े वह धूर्त बोला, ‘हां, सफेद बिल्ली से इंसाफ करवा लो, चाहे काली बिल्ली से करवा लो। जिससे चाहो उससे करवा लो, मुझे मंजूर है।’’ बाबाजी ने काले चश्में वाली बिल्ली को सारा किस्सा सुनाया। फिर पूछा, ‘अब टुम ही बटाओ, यह अगर मगर मुझे खाना चाहटा है। क्या ये इंसाफ की बाट है ?’ काला चश्मा आंखों पर से हटा कर सफेद बिल्ली बोली, ‘मैं इंसाफ नहीं कर सकती, क्योंकि मैं वकील हूं, मेरा काम मुकदमा लड़ना है, न्याय करना नहीं।’
वह गई तो अगर मगर फिर से बाबाजी का पाँव खींचने लगा। वे बोले, ‘इटना रुका है टो टोड़ा और सही। डेख, सामने से सफेद चश्मा लगाए काली लोमड़ी आ रही है। हम उससे इंसाफ करने को कहेंगे। आखिरी बार। फिर भले ही मिर्च मसाला डाल कर टू मुझे खा जाना।’
बाबाजी ने सफेद चश्में वाली काली लोमड़ी को सारा किस्सा सुनाया फिर कहा, ‘अब टुम ही बटाओ, यह अगर मगर मुझे खाना चाहटा है, क्या यह इंसाफ की बाट है ?’ यह सुनकर काली लोमड़ी खुश हो गई। क्योंकि वह न्यायाधीश थी और बहुत दिनों से उसके पास कोई पचड़ा ले कर नहीं आया था। दूसरे, वह सयानी भी उतनी ही थी। अब तक वह जान गई थी कि अगर मगर धूर्तों का सरदार है, उसे सबक सिखाना चाहिए। इसलिए काली लोमड़ी ने आँखों से सफेद चश्मा हटा कर बाबाजी से उलटा सवाल पूछा, ‘तो आप पड़े थे सूखी नदी में और मगर आपको उठा कर यहां ले आया, सही ?’ अगर मगर तुंरत बोल उठा, ‘गलत। वहां तो मैं पड़ा था और उठा कर मुझे बाबाजी लाए।’ काली लोमड़ी मुस्काकर बोली, ‘ओह, तो तुम पड़े थे वहां। अब जरा यह भी बता दो कि कैसे पड़े थे ?’ उसकी बातों में आ कर अगर मगर ने बाबाजी का पांव छोड़ दिया। फिर पानी में से किनारे पर आ कर लेटते हुए कहा, ‘ऐसे पड़ा था।’ इस मौके का लाभ उठा कर बाबाजी भागे और उसके पीछे सफेद चश्में वाली काली लोमड़ी भी भाग निकली। अगर मगर जल-भुन कर राख हो गया। उसने वहीं सौगंध ली, ‘नहीं छोड़ूंगा, मैं उस काली-कलूटी को, नहीं छोड़ूंगा।’
कुछ दिनों बाद मूसलाधार वर्षा शुरू हुई, अगर मगर नदी में जा कर रहने लगा।
एक रोज काली लोमड़ी नदी पर पानी पीने जा रही थी। अगर मगर ने उसे दूर से ही देख लिया। वह फर्राटे से किनारे पहुंचा और छिछले पानी में छिप कर बैठ गया। न हिले न डुले। सिर्फ उसकी दो आँखें पानी की सतह से ऊपर थीं। काली लोमड़ी की नजरों में वे आ गईं। वह किनारे के रेत पर सो ही बोली—
उन्होंने अगर मगर पर भरोसा कर उसे उठा लिया और तालाब तक ले आए, लेकिन जैसे ही उसे उसे पानी में छोड़ा कि उसने बाबाजी का पांव पकड़ लिया। बाबाजी बोल उठे, ‘छोड़ डे मुझे टूने जबान डी है। मुझे टू नहीं का सकटा।’ अगर मगर ने कहा, ‘‘नहीं खाऊंगा तो मैं खुद ही मर जाऊंगा। मेरे पेट में चूहे-बिल्ली-कुत्ते बोल रहे हैं। आठ-आठ दिन से भूखा जो हूं।’’ कह कर उसने बाबाजी को पानी में खींचना शुरू कर दिया। बाबाजी बोले, ‘जरा ठहर भी जा। बाट इंसाफ की है। डेख, कोई आ रहा है।’ वह थी एक सफेद बिल्ली। उसने काला चश्मा पहन रखा था। बाबाजी ने जोड़ा, हम उससे इंसाफ करवाएंगे।’
अगर मगर ने सोचा, थोड़ी देर में क्या फर्क पड़ेगा ? चलो यह तमाशा भी देख लेते हैं। बाबाजी का पांव मजबूती से पकड़े वह धूर्त बोला, ‘हां, सफेद बिल्ली से इंसाफ करवा लो, चाहे काली बिल्ली से करवा लो। जिससे चाहो उससे करवा लो, मुझे मंजूर है।’’ बाबाजी ने काले चश्में वाली बिल्ली को सारा किस्सा सुनाया। फिर पूछा, ‘अब टुम ही बटाओ, यह अगर मगर मुझे खाना चाहटा है। क्या ये इंसाफ की बाट है ?’ काला चश्मा आंखों पर से हटा कर सफेद बिल्ली बोली, ‘मैं इंसाफ नहीं कर सकती, क्योंकि मैं वकील हूं, मेरा काम मुकदमा लड़ना है, न्याय करना नहीं।’
वह गई तो अगर मगर फिर से बाबाजी का पाँव खींचने लगा। वे बोले, ‘इटना रुका है टो टोड़ा और सही। डेख, सामने से सफेद चश्मा लगाए काली लोमड़ी आ रही है। हम उससे इंसाफ करने को कहेंगे। आखिरी बार। फिर भले ही मिर्च मसाला डाल कर टू मुझे खा जाना।’
बाबाजी ने सफेद चश्में वाली काली लोमड़ी को सारा किस्सा सुनाया फिर कहा, ‘अब टुम ही बटाओ, यह अगर मगर मुझे खाना चाहटा है, क्या यह इंसाफ की बाट है ?’ यह सुनकर काली लोमड़ी खुश हो गई। क्योंकि वह न्यायाधीश थी और बहुत दिनों से उसके पास कोई पचड़ा ले कर नहीं आया था। दूसरे, वह सयानी भी उतनी ही थी। अब तक वह जान गई थी कि अगर मगर धूर्तों का सरदार है, उसे सबक सिखाना चाहिए। इसलिए काली लोमड़ी ने आँखों से सफेद चश्मा हटा कर बाबाजी से उलटा सवाल पूछा, ‘तो आप पड़े थे सूखी नदी में और मगर आपको उठा कर यहां ले आया, सही ?’ अगर मगर तुंरत बोल उठा, ‘गलत। वहां तो मैं पड़ा था और उठा कर मुझे बाबाजी लाए।’ काली लोमड़ी मुस्काकर बोली, ‘ओह, तो तुम पड़े थे वहां। अब जरा यह भी बता दो कि कैसे पड़े थे ?’ उसकी बातों में आ कर अगर मगर ने बाबाजी का पांव छोड़ दिया। फिर पानी में से किनारे पर आ कर लेटते हुए कहा, ‘ऐसे पड़ा था।’ इस मौके का लाभ उठा कर बाबाजी भागे और उसके पीछे सफेद चश्में वाली काली लोमड़ी भी भाग निकली। अगर मगर जल-भुन कर राख हो गया। उसने वहीं सौगंध ली, ‘नहीं छोड़ूंगा, मैं उस काली-कलूटी को, नहीं छोड़ूंगा।’
कुछ दिनों बाद मूसलाधार वर्षा शुरू हुई, अगर मगर नदी में जा कर रहने लगा।
एक रोज काली लोमड़ी नदी पर पानी पीने जा रही थी। अगर मगर ने उसे दूर से ही देख लिया। वह फर्राटे से किनारे पहुंचा और छिछले पानी में छिप कर बैठ गया। न हिले न डुले। सिर्फ उसकी दो आँखें पानी की सतह से ऊपर थीं। काली लोमड़ी की नजरों में वे आ गईं। वह किनारे के रेत पर सो ही बोली—
नदी के जल में दो नयन झिलमिल
जैसे रात में दो सितारे झिलमिल
जैसे रात में दो सितारे झिलमिल
यह सुनकर अगर मगर ने अपनी एक आँख मींच ली। मुस्कराते हुए काली लोमड़ी ने
फिर कहा :
नदी के जल में दो नयन झिलमिल
जैसे रात में एक सितारा झिलमिल
जैसे रात में एक सितारा झिलमिल
अगर मगर समझ गया कि सफेद चश्मे वाली काली लोमड़ी ने उसे पहचान लिया है।
चिढ़ कर सोचा कोई बात नहीं। अगली बार मुलाकात होगी तो उसे नानी के साथ
नाना भी याद दिला दूंगा।
थोड़े दिन बीत गए। काली लोमड़ी कहीं दिखाई नहीं दी। एक रोज वह नदी में पानी पी रही थी कि यकायक मगर ने आकर उसका पैर पकड़ लिया।
थोड़े दिन बीत गए। काली लोमड़ी कहीं दिखाई नहीं दी। एक रोज वह नदी में पानी पी रही थी कि यकायक मगर ने आकर उसका पैर पकड़ लिया।
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विनामूल्य पूर्वावलोकन
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