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नार्निया की कहानियाँ राजकुमार कैस्पियन

सी.एस.लुइस

प्रकाशक : हार्परकॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :277
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6415
आईएसबीएन :978-81-7223-740

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नार्निया...जहाँ जानवर बोलते हैं...जहाँ पेड़ चलते हैं...जहाँ एक युद्ध होने को है...

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

एक राजकुमार अपने ताज के लिए संघर्ष करता है।

नार्निया......जहाँ जानवर बोलते हैं.....जहाँ पेड़ चलते हैं......जहाँ एक युद्ध होने को है।

एक राजकुमार अपने देश को नकली राजा से छुड़ाने की जी तोड़ कोशिश कर रहा है। आख़री फैसले की इस लड़ाई के लिए वो बौनों, अश्वमानवों, बकरीमानवों, तेंदुओं और सभी जंगली जीवों की फ़ौज खड़ी करता है।

राजकुमार कैस्पियन


उदासी के बादलों में घिरे लूसी, एडमंड, पीटर और सूज़न रेलवे स्टेशन पर इंतज़ार में है। कुछ ही देर में ट्रेन आएगी और उन्हें वापिस अपने स्कूल ले जाएगी। पर ये क्या हुआ ? रेलवे स्टेशन गायब कैसे हुआ ? और कैसे आ गए चारों भाई-बहन समंदर के पास इस घने, अँधेरे जंगल में ? लगता तो है ये बिखरा हुआ खंडहर जाना पहचाना। कहीं ये कैर पैरेवल का पुराना महल तो नहीं है ?

वे वापिस आ पहुँचे हैं नार्निया की तिलस्मी दुनिया में जहाँ वे कभी राजा और रानियाँ हुआ करते थे। पर दाल में कुछ काला है। चारों तरफ अजीब सी उदासी छाई है और सन्नाटा तो जैसे खाने को दौड़ता है। फिर आता है बौना जो चौंका देने वाले रहस्य खोलता है। नार्निया पर घिर आया है बुरा वक्त और बहादुर राजकुमार कैस्पियन अपने देश को क्रूर अंकल मिराज़ से बचाने के लिए मदद तलाश रहा है।

नार्निया की कहानियों का यह जोश भरा यह चौथा किस्सा है।

अचानक, एक बुलावा


एक समय की बात है, चार बच्चे थे; पीटर, सूज़न, एडमंड और लूसी। उनका परिचय जादू से कैसे हुआ ये मैं पहले ही शेर बबर, जादूगरनी और वो अल्मारी में सुना चुका हूँ। वे जादुई अल्मारी में घुसकर एक अलग ही दुनिया में पहुँच गए थे। उस दुनिया में, जिसका नाम था नार्निया। वे नार्निया के राजा और रानियाँ बन गए थे। जब वे नार्निया में होते तो यूँ लगता कि उन्होंने बरसों-बरस राज किया, लेकिन जब वे अल्मारी से बाहर वापिस आते, और खुद को इंग्लैंड में पाते, तो यूँ लगता था कि ये सारा सफ़र एक पल में तय हो गया हो बस। इस बात का पता किसी को नहीं चल पाता था कि वे बाहर हैं और न ही उन्होंने यह बात किसी को बताई, सिर्फ एक समझदार बुज़ुर्ग को छोड़कर।

यह सब एक बरस पहले हुआ था और अब चारों बच्चे एक रेलवे स्टेशन पर बैठे थे-अपनी अटैचियों, ट्रंक और खेल के सामान से घिरे हुए। असल में वे अपने स्कूल वापिस जा रहे थे। यहाँ कुछ मिनटों में एक ट्रेन आने वाली थी और लड़कियों को उनके स्कूल ले जाने वाली थी और लगभग आधे घंटे में दूसरी ट्रेन आने वाली थी जिसमें लड़के अपने स्कूल चले जाते।

छुट्टियाँ वाकई ख़त्म हो गई थीं। सभी को स्कूल खुलने पर मायूसी हो रही थी। और छोटी लूसी तो पहली बार बोर्डिंग स्कूल जा रही थी।
यह बहुत ही छोटा सा, सोया-सोया, वीरान सा स्टेशन था। उनके अलावा वहाँ और कोई नहीं था। अचानक लूसी के मुँह से एक चीख निकल गई जैसे कि ततैये ने काट लिया हो। ‘‘क्या हुआ ल्यू ?’’ एडमंड ने पूछा। और फिर वो भी चिल्ला पड़ा, ‘‘ओए !’’
‘‘अरे मैं पूछता हूँ.....’’ पीटर अपनी बात अधूरी छोड़कर बोला, ‘‘सूज़न ! छोड़ो ! क्या कर रही हो ? मुझे घसीट क्यों रही हो ?’’
‘‘मैं तो तुम्हें छू भी नहीं रही हूँ,’’ सूज़न बोली। ‘‘कोई मुझे घसीट रहा है। अरे, अरे ! छोड़ो।’’
सभी के चेहरे सफ़ेद हो उठे थे।
‘‘मुझे भी बिल्कुल ऐसा लगा,’’ एडमंड ने हाँफते हुए कहा, ‘‘जैसे कि मुझे कोई घसीट रहा था, बहुत ज़ोर से। अरे ! फिर.....कोई खींच रहा है ?’’
‘‘मुझे भी, ओह, ये क्या हो रहा है ?’’
‘‘सावधान !’’ एडमंड चिल्लाया। ‘‘सब हाथ पकड़ लो और साथ रहो। यह जादू है- मैं जानता हूँ। जल्दी !’’
‘‘हाँ-हाँ,’’ सूज़न बोली। ‘‘हाथ पकड़ों। काश ये खींचना रुक जाए- ओह !’’
अगले ही पल सामान, बैंच, प्लेटफॉर्म और स्टेशन पूरी तरह गायब हो गए। चारों बच्चों ने खुद को एक जंगल में पाया-ऐसा जंगल जिसमें टहनियाँ इतनी घनी थीं, कि चलने को जगह ही नहीं थी। चारों ने अपनी आँखें मलीं और एक गहरी साँस ली।
‘‘क्या ऐसा हो सकता है कि हम वापिस नार्निया पहुँच गए हों ?’’ लूसी ने कहा।
‘‘ये कोई भी जगह हो सकती है,’’ पीटर बोला।
‘‘इस घने जंगल में कुछ दिखाई नहीं दे रहा। चलो, थोड़ी खुली जगह ढूंढ़ते हैं।’’
बहुत मुश्किल से वे काँटों भरी झाड़ियाँ के झुरमुट से बाहर निकले। कुछ दूर चलने पर वे जंगल के किनारे पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने एक अद्भुत दृश्य देखा- चारों ओर उजाला, सामने बालू-तट और एक शांत नीला समंदर जिसकी छोटी-छोटी लहरें बिना किसी आहट के बालू-तट से टकरा रही थीं। समुद्र से आती हुई नमकीन खुशबू उनकी सांसों में घुलने लगी।
सूरज को देख के लगा कि सुबह के लगभग दस बजे होंगे।
‘‘वाह ! कितना सुन्दर लग रहा है यह सब !’’ पीटर ने कहा। पाँच मिनट बाद वे नंगे पैर ठंडे पानी में चल रहे थे।
‘‘चलो अच्छा है कि जान छूटी उस दमघोंटू ट्रेन से जो वापिस जा रही होगी लैटिन, फ्रैंच और एल्जेब्रा की ओर।’’ एडमंड बोला। वे पानी में पैर छपछपाते रहे और छोटी मछलियाँ और केकड़े ढूंढते रहे।

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