कविता संग्रह >> तुम्हारी आँख के आँसू तुम्हारी आँख के आँसूप्रवीण शुक्ल
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प्रवीण के इस गीत-संग्रह में जो गीत हैं उन्हें पढ़कर एक अलग प्रकार की सुखानुभूति होती है क्योंकि इन गीतों में वे सभी गुण विद्यमान हैं जो साहित्यकारों ने एक अच्छे गीत के संबंध में निर्धारित किये हैं....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रवीण शुक्ल ने इस संग्रह के गीत लिखकर अपनी काव्य-प्रतिभा का जो नया स्वरूप प्रस्तुत किया है, उसे देखने के बाद मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूँ कि उनके पास नई सोच, नया कथ्य, नया बिम्ब सभी कुछ अनूठा है।
प्रवीण के इस गीत-संग्रह में जो गीत हैं उन्हें पढ़कर एक अलग प्रकार की सुखानुभूति होती है क्योंकि इन गीतों में वे सभी गुण विद्यमान हैं दो साहित्यकारों ने एक अच्छे गीत के संबंध में निर्धारित किये हैं। भाव-पक्ष और शैली पक्ष दोनों ही दृष्टियों से ये गीत निर्दोष हैं। गीतों में जिस नाद, लय और प्रवाह की आवश्यकता होती है वह सब इन गीतों में है। भाषा और शब्द-योजना का लालित्य भी इनमें है। गीत के विषय की दृष्टि से जिस एकात्मकता और तन्मयता की अनिवार्यता की बात गीतों के संदर्भ में कहीं गई है, वह भी इन गीतों की विशेषताओं में समाहित है। इन गीतों के विषय प्रेम, अध्यात्म तथा लोकानुभव हैं। प्रेम इनका प्रधान विषय है। वे प्रेम को अभिव्यक्त तो करते ही हैं साथ ही कुछ ऐसा प्रभाव भी छोड़ते हैं कि कोई पाषाण-हृदय भी सुकोमल पुष्प-पंखुरियों का रूप ग्रहण कर लेता है।.....
इसी गीत-संग्रह में गीतों के साथ-साथ ‘भीष्म-प्रतिज्ञा’ शीर्षक से एक लम्बी छंद-बंद्ध कविता भी है। इस कविता में जैसा छंद-प्रवाह, विषयाकुल और भावपूर्ण भाषा और जैसा विषय-प्रतिपादन हुआ है वह रेखांकित करने योग्य है।
यह युवा कवि आगे चलकर साहित्य जगत को कोई ऐसी कृति अवश्य देगा जिससे वह स्वयं तो बड़ा कवि माना ही जायेगा, साथ ही उसकी इस कृति से साहित्य जगत भी गौरवान्वित होगा।
प्रवीण के इस गीत-संग्रह में जो गीत हैं उन्हें पढ़कर एक अलग प्रकार की सुखानुभूति होती है क्योंकि इन गीतों में वे सभी गुण विद्यमान हैं दो साहित्यकारों ने एक अच्छे गीत के संबंध में निर्धारित किये हैं। भाव-पक्ष और शैली पक्ष दोनों ही दृष्टियों से ये गीत निर्दोष हैं। गीतों में जिस नाद, लय और प्रवाह की आवश्यकता होती है वह सब इन गीतों में है। भाषा और शब्द-योजना का लालित्य भी इनमें है। गीत के विषय की दृष्टि से जिस एकात्मकता और तन्मयता की अनिवार्यता की बात गीतों के संदर्भ में कहीं गई है, वह भी इन गीतों की विशेषताओं में समाहित है। इन गीतों के विषय प्रेम, अध्यात्म तथा लोकानुभव हैं। प्रेम इनका प्रधान विषय है। वे प्रेम को अभिव्यक्त तो करते ही हैं साथ ही कुछ ऐसा प्रभाव भी छोड़ते हैं कि कोई पाषाण-हृदय भी सुकोमल पुष्प-पंखुरियों का रूप ग्रहण कर लेता है।.....
इसी गीत-संग्रह में गीतों के साथ-साथ ‘भीष्म-प्रतिज्ञा’ शीर्षक से एक लम्बी छंद-बंद्ध कविता भी है। इस कविता में जैसा छंद-प्रवाह, विषयाकुल और भावपूर्ण भाषा और जैसा विषय-प्रतिपादन हुआ है वह रेखांकित करने योग्य है।
यह युवा कवि आगे चलकर साहित्य जगत को कोई ऐसी कृति अवश्य देगा जिससे वह स्वयं तो बड़ा कवि माना ही जायेगा, साथ ही उसकी इस कृति से साहित्य जगत भी गौरवान्वित होगा।
पद्मभूषण गोपालदास नीरज
इन दिनों अपनी
काव्य-धर्मिता और निरंतर रचना-प्रक्रिया की वजह से प्रवीण
शुक्ल ने जो ख्याति प्राप्त की है वह कुछ रचनाकरों के लिए ईर्ष्या का विषय
हो सकती है किन्तु मेरे लिए अनिवर्चनीय आल्हाद का विषय है। प्रवीण शुक्ल
ने अपनी कविताओं में छन्दों और शब्दों को माँझा है। उनकी खोजपूर्ण दृष्टि
काव्य के हर अंग पर पड़ी है।
प्रस्तुत संकलन ‘तुम्हारी आँख के आँसू’ के एक-एक अक्षर को मैंने स्वयं बाँचा है। इस संकलन की रचनाओं को पढ़कर मैंने महसूस किया है कि भावों और अनुभावों की विभिन्न अनुभूतियों को प्रवीण शुक्ल ने पूरी निपुणता के साथ अपनी कविता के साँचे में ढाला है। कविता के हर मोड़ पर वह अपनी मौलिकता का दीपक जलाये हुए खड़े हैं। मुझे लगता है कि उनकी कविता माँ वाणी के सम्मुख एक विनत रचनाकार की प्रार्थना है, अर्चना है।
मैंने प्रवीण शुक्ल की क़लम को कभी रुकते या थकते हुए नहीं देखा। मैं भी हृदय से यही चाहता हूँ हज़ारों-हज़ारों सूर्यों का तेज, लाखों-लाखों चन्द्रमाओं की चाँदनी उनकी लेखनी में समा जाए। इस संकलन की कविताएँ पढ़ने के बाद मैं पत्थर की शिला पर लिख सकता हूँ कि प्रवीण शुक्ल आने वाले समय में अपनी पीढ़ी के रचनाकारों में सबसे महान एवम् पृथक हस्ताक्षर माना जायेगा। यह कृतित्व प्रिय प्रवीण शुक्ल के व्यक्तित्व को और निखारेगा, ऐसा मेरा अटूट विश्वास है। मैं उनके इस कृतित्व की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ प्रस्तुत करता हूँ।
प्रस्तुत संकलन ‘तुम्हारी आँख के आँसू’ के एक-एक अक्षर को मैंने स्वयं बाँचा है। इस संकलन की रचनाओं को पढ़कर मैंने महसूस किया है कि भावों और अनुभावों की विभिन्न अनुभूतियों को प्रवीण शुक्ल ने पूरी निपुणता के साथ अपनी कविता के साँचे में ढाला है। कविता के हर मोड़ पर वह अपनी मौलिकता का दीपक जलाये हुए खड़े हैं। मुझे लगता है कि उनकी कविता माँ वाणी के सम्मुख एक विनत रचनाकार की प्रार्थना है, अर्चना है।
मैंने प्रवीण शुक्ल की क़लम को कभी रुकते या थकते हुए नहीं देखा। मैं भी हृदय से यही चाहता हूँ हज़ारों-हज़ारों सूर्यों का तेज, लाखों-लाखों चन्द्रमाओं की चाँदनी उनकी लेखनी में समा जाए। इस संकलन की कविताएँ पढ़ने के बाद मैं पत्थर की शिला पर लिख सकता हूँ कि प्रवीण शुक्ल आने वाले समय में अपनी पीढ़ी के रचनाकारों में सबसे महान एवम् पृथक हस्ताक्षर माना जायेगा। यह कृतित्व प्रिय प्रवीण शुक्ल के व्यक्तित्व को और निखारेगा, ऐसा मेरा अटूट विश्वास है। मैं उनके इस कृतित्व की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ प्रस्तुत करता हूँ।
संतोषानन्द
बाँदलों में बिजली की हँसी के साथ आँसुओं की फुहारहिन्दी
काव्य-मंचों पर अपनी हास्य-व्यंग्य की कविताओं, संचालन, अनेक गंभीर
रचनाओं और अपने मधुर व्यवहार के लिए प्रसिद्ध प्रवीण शुक्ल का नाम अब
अनजाना नहीं है। प्रवीण ने अपने देश के कोने-कोने में तो अपनी
काव्य-प्रतिभा का चमत्कार दिखाया ही है, साथ ही विदेशों में भी अपना नाम
रौशन किया है। इतनी कम उम्र में यह कमाल ढाने वाले कुछ ही लोग हैं। आज के
प्रसिद्ध, वरिष्ठ और जागरूक व्यंग्य कवि तथा विविध आयामी प्रतिभा के धनी
डॉ. अशोक चक्रधर सरीखे कुछ ही कवि हैं जिन्होंने इतनी कम उम्र में यह
करिश्मा कर दिखाया था। प्रवीण शुक्ल के सामने अभी व्यापक आकाश है। अभी
इन्हें दूर के क्षितिज छूने हैं। अभी भविष्य के गर्भ में बहुत कुछ ऐसा है
जिसे प्रवीण एक-न-एक दिन साहित्य-जगत को सौंपकर स्वयं को गौरवान्वित
करेंगे।
मुझे इनके संदर्भ में यहाँ जो बात करनी है वह इनकी प्रकाश्य पुस्तक जो ‘तुम्हारी आँख के आँसू’ नाम से प्रकाशित होने वाली है, उसके संदर्भ में करनी है। मुझे तब बहुत सुखद आश्चर्य हुआ, जब मैंने इनकी पांडुलिपि में तो गीत और गंभीर कविताएँ थीं।.....और ये कविताएँ भी ऐसी-वैसी कविताएँ नहीं, वरन् भाव-विचार तथा शिल्प तीनों ही दृष्टियों से साहित्यिक मानकों पर खरी उतरने वाली कविताएँ। आश्चर्यचकित तो होना ही था। मैंने इनकी एक गंभीर कविता जो ‘भीष्म-प्रतिज्ञा’ शीर्षक से है, वह तो कई मंचों पर ज़रूर सुनी थी और मैं इस रचना से बहुत प्रभावित भी हुआ था। इस रचना को सुनने के बाद मुझे प्रवीण शुक्ल में एक बड़ा रचनाकार भी छुपा नज़र आया। अब गीतों की पांडुलिपि मेरे सामने हैं और जैसे-जैसे मैं इसके गीतों को पढ़ रहा हूँ वैसे-वैसे वह रचनाकार में नज़र आ रहा है जिसकी संभावना मैं पहले से ही कर रहा था।
गीत की प्रमुख विशेषताओं में गेयता, प्रवाह, शब्द योजना, आत्माभिव्यक्ति, भाव की एकसूत्रता, प्रतीकात्मकता, अलंकारिकता आदि आता है। गीत इन्हीं विशेषताओं से निर्मित होता है। प्रवीण गीत के इन सभी गुणों से परिचित हैं। यह परिचय इन्हें कहाँ से प्राप्त हुआ, यदि इस पर विचार किया जाए, तो साफ़ नज़र आता है कि इन्हें गीत की ये विशेषताएँ अपने पिताजीश्री ब्रज शुक्ल ‘घायल’ जी के माध्यम से प्राप्त हुई हैं, जो स्वयं एक अच्छे हास्य-व्यंग्य कवि एवं अनेक साहित्यिक समारोहों के संयोजक रहे हैं। बचपन से ही अपने पिता तथा अन्य कवियों विशेषकर गीतकारों के संपर्क में रहने के कारण प्रवीण को गीत विधा के तत्व अनायास ही समझ में आ गए। वैसे अनेक रचनाकारों का यह मानना है कि प्रत्येक कवि पहले गीतकार ही होता है, बाद में भले ही वह कोई अन्य दिशा ले-ले। प्रवीण से भी मेरी कई बार यह वार्ता हुई और तब उसने मुझे यह बताया कि उसने भी अन्य कवियों की भाँति पहले गीत ही लिखे, हास्य-व्यंग्य लेखन में तो बाद में आना हुआ। कवि-सम्मेलनों में बहुत प्रारम्भ से सम्मिलित होने के कारण भी प्रवीण ने गीत विधा को शीघ्र ही आत्मसात कर लिया। कहा भी जाता है कि संगत से कोई भी कला जल्दी सीखी जा सकती है, सो प्रवीण ने भी गीत के प्रमुख मानकों को जल्दी ही जान लिया।
कवि के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ है संवेदना। संवेदना के अभाव में कोई भी व्यक्ति अच्छा कवि नहीं बन सकता। प्रवीण में यह संवेदनात्मकता भरपूर है। अपने ही नहीं वरन् दूसरों के दुख-सुख को महसूस करना और इस अनुभूति को सुन्दर कलात्मक शब्दों में कह देना ही कविता का प्रमुख काम है। यही विशेषता किसी भी व्यक्ति को बड़ा कवि बनाती है। बहुत कम लोग ही ऐसे होते हैं जो दूसरों के दुख पर ध्यान देते हैं। तब ही प्रवीण एक गीत में वह कहते हैं-
मुझे इनके संदर्भ में यहाँ जो बात करनी है वह इनकी प्रकाश्य पुस्तक जो ‘तुम्हारी आँख के आँसू’ नाम से प्रकाशित होने वाली है, उसके संदर्भ में करनी है। मुझे तब बहुत सुखद आश्चर्य हुआ, जब मैंने इनकी पांडुलिपि में तो गीत और गंभीर कविताएँ थीं।.....और ये कविताएँ भी ऐसी-वैसी कविताएँ नहीं, वरन् भाव-विचार तथा शिल्प तीनों ही दृष्टियों से साहित्यिक मानकों पर खरी उतरने वाली कविताएँ। आश्चर्यचकित तो होना ही था। मैंने इनकी एक गंभीर कविता जो ‘भीष्म-प्रतिज्ञा’ शीर्षक से है, वह तो कई मंचों पर ज़रूर सुनी थी और मैं इस रचना से बहुत प्रभावित भी हुआ था। इस रचना को सुनने के बाद मुझे प्रवीण शुक्ल में एक बड़ा रचनाकार भी छुपा नज़र आया। अब गीतों की पांडुलिपि मेरे सामने हैं और जैसे-जैसे मैं इसके गीतों को पढ़ रहा हूँ वैसे-वैसे वह रचनाकार में नज़र आ रहा है जिसकी संभावना मैं पहले से ही कर रहा था।
गीत की प्रमुख विशेषताओं में गेयता, प्रवाह, शब्द योजना, आत्माभिव्यक्ति, भाव की एकसूत्रता, प्रतीकात्मकता, अलंकारिकता आदि आता है। गीत इन्हीं विशेषताओं से निर्मित होता है। प्रवीण गीत के इन सभी गुणों से परिचित हैं। यह परिचय इन्हें कहाँ से प्राप्त हुआ, यदि इस पर विचार किया जाए, तो साफ़ नज़र आता है कि इन्हें गीत की ये विशेषताएँ अपने पिताजीश्री ब्रज शुक्ल ‘घायल’ जी के माध्यम से प्राप्त हुई हैं, जो स्वयं एक अच्छे हास्य-व्यंग्य कवि एवं अनेक साहित्यिक समारोहों के संयोजक रहे हैं। बचपन से ही अपने पिता तथा अन्य कवियों विशेषकर गीतकारों के संपर्क में रहने के कारण प्रवीण को गीत विधा के तत्व अनायास ही समझ में आ गए। वैसे अनेक रचनाकारों का यह मानना है कि प्रत्येक कवि पहले गीतकार ही होता है, बाद में भले ही वह कोई अन्य दिशा ले-ले। प्रवीण से भी मेरी कई बार यह वार्ता हुई और तब उसने मुझे यह बताया कि उसने भी अन्य कवियों की भाँति पहले गीत ही लिखे, हास्य-व्यंग्य लेखन में तो बाद में आना हुआ। कवि-सम्मेलनों में बहुत प्रारम्भ से सम्मिलित होने के कारण भी प्रवीण ने गीत विधा को शीघ्र ही आत्मसात कर लिया। कहा भी जाता है कि संगत से कोई भी कला जल्दी सीखी जा सकती है, सो प्रवीण ने भी गीत के प्रमुख मानकों को जल्दी ही जान लिया।
कवि के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ है संवेदना। संवेदना के अभाव में कोई भी व्यक्ति अच्छा कवि नहीं बन सकता। प्रवीण में यह संवेदनात्मकता भरपूर है। अपने ही नहीं वरन् दूसरों के दुख-सुख को महसूस करना और इस अनुभूति को सुन्दर कलात्मक शब्दों में कह देना ही कविता का प्रमुख काम है। यही विशेषता किसी भी व्यक्ति को बड़ा कवि बनाती है। बहुत कम लोग ही ऐसे होते हैं जो दूसरों के दुख पर ध्यान देते हैं। तब ही प्रवीण एक गीत में वह कहते हैं-
दूजे के मन के भावों को जान नहीं सकते हैं हम
सबकी अपनी-अपनी ख़ुशियाँ सबके अपने-अपने ग़म
सबकी अपनी-अपनी ख़ुशियाँ सबके अपने-अपने ग़म
किन्तु यह तो
सामान्य व्यक्ति की बात हुई। जो संवेदनशील है वह तो आत्मा से
दूसरे में प्रवेश कर जाता है और उसी की मनस्थिति में रह लेता है और उसके
दुख-सुख से भी अनुभूति के स्तर पर रिश्ता जोड़ लेता है। कवि ऐसा ही प्राणी
है जिसके सामने दूसरे का मन भी बोलने लगता है। वह दूसरे की खुशी में खुश
होता है और दूसरे के दुख में आँसू बहाने लगता है।....और तब यह कह उठता है-
जब-जब दुख को गले लगाकर
दर्द-भरे गीतों को गाया
बरबस तक कवि की आँखों में
पीड़ा का जल भर-भर आया
दर्द-भरे गीतों को गाया
बरबस तक कवि की आँखों में
पीड़ा का जल भर-भर आया
कहते हैं
पीड़ा भी तीन तरह की होती है। एक वह, जिसका संबंध स्वयं इस पीड़ा
को भोगने वाले से है। दूसरी वह, जिसका संबंध उस सामने वाले प्रिय से है
जिसे हम प्यार करते हैं।....और तीसरी वह जो संसार के किसी भी कोने में
रहने वाले दुखी व्यक्ति को देखकर या उसके दुख को सुनकर होती है।
इसी को उर्दू शायरी में ‘ग़मे-यारा’ और ‘ग़मे-दौरा’ की संज्ञा दी जाती है। अपनी पीड़ा से बड़ी अपने प्रिय की पीड़ा और अपनी तथा प्रिय की पीड़ा से भी बड़ी दुनिया की पीड़ा को मानने वाले कवि, अपेक्षाकृत औरों से बड़े माने जाते हैं। कवि की आँखें इन तीनों बिंदुओं पर टिकी रहती हैं। कवि प्रवीण भी इन तीनों बिदुओं पर अपनी काव्याभिव्यक्ति करते रहते हैं। अपने प्रिय से अपनी व्यथा का वर्णन इन शब्दों में करते हैं-
इसी को उर्दू शायरी में ‘ग़मे-यारा’ और ‘ग़मे-दौरा’ की संज्ञा दी जाती है। अपनी पीड़ा से बड़ी अपने प्रिय की पीड़ा और अपनी तथा प्रिय की पीड़ा से भी बड़ी दुनिया की पीड़ा को मानने वाले कवि, अपेक्षाकृत औरों से बड़े माने जाते हैं। कवि की आँखें इन तीनों बिंदुओं पर टिकी रहती हैं। कवि प्रवीण भी इन तीनों बिदुओं पर अपनी काव्याभिव्यक्ति करते रहते हैं। अपने प्रिय से अपनी व्यथा का वर्णन इन शब्दों में करते हैं-
तेरे बिना विरह में डूबा, दुनिया मुझको नहीं सुहाती
मैं ऐसा जलता दीपक हूँ, जिसकी खत्म हो रही बाती
रात अँधेरी ऐसी आई, जिसका कोई नहीं सवेरा
तेरे जाते ही पतझर ने, मेरे द्वार लगाया डेरा
तू आई तो सावन आया, हर डाली पर है हरियाली
जीवन-पृष्ठ पड़ा है ख़ाली, लिख दो कोई बात निराली
मैं ऐसा जलता दीपक हूँ, जिसकी खत्म हो रही बाती
रात अँधेरी ऐसी आई, जिसका कोई नहीं सवेरा
तेरे जाते ही पतझर ने, मेरे द्वार लगाया डेरा
तू आई तो सावन आया, हर डाली पर है हरियाली
जीवन-पृष्ठ पड़ा है ख़ाली, लिख दो कोई बात निराली
इस प्रकार
अपनी मनोव्यथा और आत्म-निवेदन करने वाली इन पंक्तियों में कवि
‘स्व’ पर केन्द्रित रहकर प्रथम प्रकार की पीड़ा में
अनुस्यूत
रहता है।
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