उपन्यास >> राग दरबारी (सजिल्द) राग दरबारी (सजिल्द)श्रीलाल शुक्ल
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राग दरबारी एक ऐसा उपन्यास है जो गाँव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है।....
वे मेज का सहारा छोड़कर सीधे खड़े हो गए और बोले, “जी, शेली की एक कविता पढ़ा
रहा था।"
प्रिंसिपल ने एक शब्द पर दूसरा शब्द लुढ़काते हुए तेजी से कहा, “पर आपकी बात
सुन कौन रहा है ? ये लोग तो तस्वीरें देख रहे हैं।" "
वे कमरे के अन्दर आ गए। बारी-बारी से दो लड़कों की पीठ में उन्होंने अपना बेंत
चुभोया। वे उठकर खड़े हो गए। एक गन्दे पायजामे, बुश्शर्ट और तेल बहाते हुए
बालोंवाला चीकटदार लड़का था; दूसरा घुटे सिर, कमीज और अण्डरवियर पहने हुए
पहलवानी धज का। प्रिंसिपल साहब ने उनसे कहा, “यही पढ़ाया जा रहा है ?" झुककर
उन्होंने पहले लड़के की कुर्सी से एक पत्रिका उठा ली। यह सिनेमा का साहित्य था।
एक पन्ना खोलकर उन्होंने हवा में घुमाया। लड़कों ने देखा, किसी विलायती औरत के
उरोज तस्वीर में फड़फड़ा रहे हैं। उन्होंने पत्रिका जमीन पर फेंक दी और चीखकर
अबधी में बोले, “यहै पढ़ि रहे हो ?"
कमरे में सन्नाटा छा गया। ‘महादेवी की वेदना' का प्रेमी मौका ताककर चुपचाप अपनी
सीट पर बैठ गया। प्रिंसिपल साहब ने क्लास के एक छोर से दूसरे छोर पर खड़े हुए
खन्ना मास्टर को ललकारकर कहा, “आपके दर्जे में डिसिप्लिन की यह हालत है !
लड़के सिनेमा की पत्रिकाएँ पढ़ते हैं ! और आप इसी बूते पर जोर डलवा रहे हैं कि
आपको वाइस-प्रिंसिपल बना दिया जाए ! इसी तमीज से वाइस-प्रिंसिपली कीजिएगा !
भइया, यहै हालु रही तो वाइस-प्रिंसिपली तो अपने घर रही, पारसाल की जुलाई माँ
डगर-डगर घूम्यौ।" कहते-कहते अबधी के महाकवि गोस्वामी तुलसीदास की आत्मा उनके
शरीर में एक ओर से घुसकर दूसरी ओर से निकल गई। वे फिर खड़ी बोली पर आ गए,
“पढ़ाई-लिखाई में क्या रखा है ! असली बात है डिसिप्लिन ! समझे, मास्टर साहब ?"
यह कहकर प्रिंसिपल उमर खैयाम के हीरो की तरह, “मैं पानी-जैसा आया था औ'
आँधी-जैसा जाता हूँ" की अदा से चल दिए। पीठ-पीछे उन्हें खन्ना मास्टर की
भुनभुनाहट सुनाई दी।
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