बहु भागीय सेट >> पंचतंत्र की कहानियाँ पंचतंत्र की कहानियाँयुक्ति बैनर्जी
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पंचतंत्र की कहानियाँ बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानियाँ हैं। प्रचलित लोककथाओं के द्वारा प्रसिद्ध गुरु विष्णु शर्मा ने तीन छोटे राजकुमारों को शिक्षा दी।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अनुक्रम
1. सिंह और चूहा2. जैसे को तैसा
3. कबूतर और चूहा
पंचतंत्र की कहानियाँ
पंचतंत्र की कहानियाँ बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानियाँ हैं। प्रचलित लोक कथाओं के द्वारा प्रसिद्ध गुरु विष्णु शर्मा ने तीन छोटे राजकुमारों को शिक्षा दी। ‘पंच’ का अर्थ है पाँच और ‘तन्त्र’ का अर्थ है प्रयोग। विष्णु शर्मा ने उनके व्यवहार को इन सरल कहानियों के द्वारा सुधारा। आज भी ये कहानियाँ बच्चों की मन पसंद कहानियाँ हैं।
सिंह और चूहा
किसी जंगल में एक जवान और बलशाली सिंह रहता था। वहीं पेड़ के पास एक चूहा भी रहता था। एक दिन दोपहर को भरपेट भोजन खाकर सिंह पेड़ के नीचे आराम कर रहा था।
अचानक वह चूहा भागता-भागता आया और सिंह की पीठ पर चढ़ गया। सिंह को बहुत गुस्सा आया और उसने चूहे को अपने पंजे में दबोच लिया, ‘‘ओ नन्हे जानवर ! मैं तुझे एक थप्पड़ मारकर खत्म कर दूँगा।’’
वह गुस्सा होकर जोर से गुर्राया। ‘‘ओह, महाराज ! कृपया मुझे जाने दीजिए। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ एक न एक दिन मैं ज़रूर आपके काम आऊँगा।’’ चूहा गिड़गिड़ाकर बोला। सिंह हँस पड़ा और उसने चूहे को छोड़ दिया।
कुछ दिन बाद एक शिकारी ने जंगल में जाल बिछाया। सिंह उसमें फंस गया। वह खुद को आजाद कराने के लिए बहुत गुर्राया और छटपटाया परन्तु वह आज़ाद नहीं हो सका। तभी उसे कहीं से चूँ-चूँ की आवाज सुनाई दी। चूहा सिंह की दया को भूला नहीं था।
वह भागा हुआ आया और बोला, महाराज आप चिंता न कीजिए। शिकारी के आने से पहले ही मैं आपको आजाद कर दूँगा। चूहा झट से जाल की रस्सियाँ कुतरने लगा। कुछ ही मिनटों में चूहे ने सिंह को आज़ाद कर दिया। सिंह ने नम्रता पूर्वक चूहे को उसी सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया।
वह गुस्सा होकर जोर से गुर्राया। ‘‘ओह, महाराज ! कृपया मुझे जाने दीजिए। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ एक न एक दिन मैं ज़रूर आपके काम आऊँगा।’’ चूहा गिड़गिड़ाकर बोला। सिंह हँस पड़ा और उसने चूहे को छोड़ दिया।
कुछ दिन बाद एक शिकारी ने जंगल में जाल बिछाया। सिंह उसमें फंस गया। वह खुद को आजाद कराने के लिए बहुत गुर्राया और छटपटाया परन्तु वह आज़ाद नहीं हो सका। तभी उसे कहीं से चूँ-चूँ की आवाज सुनाई दी। चूहा सिंह की दया को भूला नहीं था।
वह भागा हुआ आया और बोला, महाराज आप चिंता न कीजिए। शिकारी के आने से पहले ही मैं आपको आजाद कर दूँगा। चूहा झट से जाल की रस्सियाँ कुतरने लगा। कुछ ही मिनटों में चूहे ने सिंह को आज़ाद कर दिया। सिंह ने नम्रता पूर्वक चूहे को उसी सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया।
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