बहु भागीय सेट >> पंचतंत्र का कहानियाँ पंचतंत्र का कहानियाँयुक्ति बैनर्जी
|
4 पाठकों को प्रिय 327 पाठक हैं |
पंचतंत्र की कहानियाँ बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानियाँ हैं। प्रचलित लोककथाओं के द्वारा प्रसिद्ध गुरु विष्णु शर्मा ने तीन छोटे राजकुमारों को शिक्षा दी।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अनुक्रम
1. कछुआ और हंस2. मेहमान
3. समझदार वृद्ध पक्षी
पंचतंत्र की कहानियाँ
पंचतंत्र की कहानियाँ बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानियाँ हैं। प्रचलित लोक कथाओं के द्वारा प्रसिद्ध गुरु विष्णु शर्मा ने तीन छोटे राजकुमारों को शिक्षा दी। ‘पंच’ का अर्थ है पाँच और ‘तन्त्र’ का अर्थ है प्रयोग। विष्णु शर्मा ने उनके व्यवहार को इन सरल कहानियों के द्वारा सुधारा। आज भी ये कहानियाँ बच्चों की मन पसंद कहानियाँ हैं।
कछुआ और हंस
एक कछुआ तालाब के किनारे रहता था। उस तालाब पर कहीं से उड़कर आए दो हंस उस कछुए के अच्छे मित्र बन गए। वे अपना काफ़ी समय एक साथ बिताते। फिर देश में अकाल पड़ा। बारिश न होने से तालाब सूखने लगा। हंसों ने तालाब को छोड़ने का निश्चय किया उन्होंने कछुए को सारी बात बताई तो कछुआ बहुत परेशान हो गया। वह बोला, ‘‘तुम लोग मुझे यहाँ मरने के लिए अकेला नहीं छोड़ सकते। मुझे भी अपने साथ ले चलो, ‘‘उसने हंसों से प्रार्थना की। हँस तो उड़ सकते थे परन्तु कछुआ कैसे उड़ता ! सभी सोच विचार करने लगे और उन्हें एक उपाय सूझा।
कछुए ने उनसे एक डण्डी लाने को कहा। दोनों हंसों ने अपनी चोंच में डण्डी के दोनों सिरे पकड़ लिए और कछुआ अपने मजबूत दाँतों से डण्डी को बीच से पकड़कर लटक गया। हंसों ने उसे सावधान कर दिया कि वह पूरे रास्ते गलती से भी न कुछ बोले न अपना मुँह खोले, कछुए को लेकर पहाड़ों, खेतों, गाँवों शहरों के ऊपर होते हुए पानी वाले स्थल की खोज में हंस उड़ते जा रहे थे। जब वे एक शहर के ऊपर से जा रहे थे तो उस दृश्य को देखकर लोग बहुत हैरान रह गए। वे तालियाँ बजाने लगे और खुशी से चिल्लाने लगे। कछुए ने यह देखा तो बोला, ‘‘ये मूर्ख इतना चिल्ला क्यों रहे हैं ?’’ जैसे ही उसे अपनी बात कही, वह हवा में गोता खाता हुआ धम्म से ज़मीन पर आ गिरा। उसे चुप न रहने की सज़ा मिल गई।
कछुए ने उनसे एक डण्डी लाने को कहा। दोनों हंसों ने अपनी चोंच में डण्डी के दोनों सिरे पकड़ लिए और कछुआ अपने मजबूत दाँतों से डण्डी को बीच से पकड़कर लटक गया। हंसों ने उसे सावधान कर दिया कि वह पूरे रास्ते गलती से भी न कुछ बोले न अपना मुँह खोले, कछुए को लेकर पहाड़ों, खेतों, गाँवों शहरों के ऊपर होते हुए पानी वाले स्थल की खोज में हंस उड़ते जा रहे थे। जब वे एक शहर के ऊपर से जा रहे थे तो उस दृश्य को देखकर लोग बहुत हैरान रह गए। वे तालियाँ बजाने लगे और खुशी से चिल्लाने लगे। कछुए ने यह देखा तो बोला, ‘‘ये मूर्ख इतना चिल्ला क्यों रहे हैं ?’’ जैसे ही उसे अपनी बात कही, वह हवा में गोता खाता हुआ धम्म से ज़मीन पर आ गिरा। उसे चुप न रहने की सज़ा मिल गई।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book