अतिरिक्त >> यन्त्र साधना से सिद्धि यन्त्र साधना से सिद्धिकेदारनाथ मिश्र
|
9 पाठकों को प्रिय 308 पाठक हैं |
साधना विज्ञान में ‘यंत्र साधना’ का विशिष्ट महत्त्व है। जिस प्रकार से देवी-देवताओं की प्रतीकोपासना की जाती है और उसमें सन्निहित दिव्यताओं, प्रेरणाओं की अवधारणा की जाती है, उसी प्रकार ‘यंत्र’ भी किसी देवी या देवता के प्रतीक होते हैं।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पाठकों से
‘मन्त्र साधना से सिद्धि’ में आपने मंत्र विद्या व
साधना
शास्त्र के गंभीरतम् रहस्यों से साक्षात्कार किया। मेरा इस ग्रंथ के लेखन
में भी यही प्रयास रहा है कि आपको विषय की संपूर्ण व आवश्यक उपयोगी
विषय-वस्तु से परिचित कराया जाय। यंत्र साधना में सफलता तो हमारा अंतिम
लक्ष्य है। मध्य के उपासना काण्ड रूपी सोपान हमें प्रतिक्षण परम लक्ष्य की
ओर अग्रसर करते हैं। साधना मार्ग में अपना प्रत्येक क्षण, प्रत्येक कर्म
सफलता है। यह मार्ग तो राजमार्ग है, जिसमें ‘इह लोके सुखं
भुक्तवा
चान्ते सत्यपुरं ब्रजेत।’ की भावना सन्निहित है।
मेरी प्रार्थना साधक मण्डल से यह है कि परमात्मा की कृपा से आपको सिद्धि प्राप्त हो जाय तो उसके द्वारा किसी के अहित का प्रयास न करें। लोक कल्याण करने से विद्या का बलवीर्य बढ़ता है। वणिक् वृत्ति अपनाकर विद्या का विक्रय करने से अन्तत: व्यक्ति अनेकानेक कष्टों को भोगकर दुर्गति को प्राप्त हो जाता है। कारण, देवता तो मन्त्रविद्ध हैं। जिसने तपस्या करके शक्ति को जागृत कर ऊर्जा को संग्रहीत किया है, उसकी तपः शक्ति के आगे वे उसका आदेश मानने के लिए विवश से हैं, किन्तु कालान्तर तप शक्ति क्षीण होने पर वे ही कष्ट देने में भी कमी नहीं करते। अत: सिद्धि प्राप्त करने के बाद श्रेष्ठ कर्म ही करने चाहिए।
कई बार ऐसा होता है कि निर्दिष्ट मात्रा में जप-हवन करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती। ऐसी स्थिति में मन अवसादग्रस्त हो जाता है। साधना विज्ञान से विश्वास उठने सा लगता है। ऐसी स्थिति में घबराना नहीं चाहिए। पुन: उसी प्रयोग को तब तक दुहराते रहिए जब तक कि सफलता प्राप्त न हो जाय। विशेष परिस्थिति में इस पुस्तक के लेखक से भी पत्र द्वारा परामर्श किया जा सकता है। परमहंस योगानन्द के गुरुदेव स्वामी युक्तेश्वर गिरि जी कहा करते थे कि यदि तुम असफलता रूपी अतिथि का स्वागत नहीं करोगे, तो वह निराश होकर वापस चली जायेगी।
‘‘बीमार होने पर भी बीमारी के अस्तित्व पर विश्वास न करो। इस प्रकार स्वागत न पाकर बीमारी रूपी अतिथि भाग जायेगा। कल्पना ही वह द्वार है जिसमें रोग और रोग नाशक दोनों प्रवेश करते हैं।’’
मेरी प्रार्थना साधक मण्डल से यह है कि परमात्मा की कृपा से आपको सिद्धि प्राप्त हो जाय तो उसके द्वारा किसी के अहित का प्रयास न करें। लोक कल्याण करने से विद्या का बलवीर्य बढ़ता है। वणिक् वृत्ति अपनाकर विद्या का विक्रय करने से अन्तत: व्यक्ति अनेकानेक कष्टों को भोगकर दुर्गति को प्राप्त हो जाता है। कारण, देवता तो मन्त्रविद्ध हैं। जिसने तपस्या करके शक्ति को जागृत कर ऊर्जा को संग्रहीत किया है, उसकी तपः शक्ति के आगे वे उसका आदेश मानने के लिए विवश से हैं, किन्तु कालान्तर तप शक्ति क्षीण होने पर वे ही कष्ट देने में भी कमी नहीं करते। अत: सिद्धि प्राप्त करने के बाद श्रेष्ठ कर्म ही करने चाहिए।
कई बार ऐसा होता है कि निर्दिष्ट मात्रा में जप-हवन करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती। ऐसी स्थिति में मन अवसादग्रस्त हो जाता है। साधना विज्ञान से विश्वास उठने सा लगता है। ऐसी स्थिति में घबराना नहीं चाहिए। पुन: उसी प्रयोग को तब तक दुहराते रहिए जब तक कि सफलता प्राप्त न हो जाय। विशेष परिस्थिति में इस पुस्तक के लेखक से भी पत्र द्वारा परामर्श किया जा सकता है। परमहंस योगानन्द के गुरुदेव स्वामी युक्तेश्वर गिरि जी कहा करते थे कि यदि तुम असफलता रूपी अतिथि का स्वागत नहीं करोगे, तो वह निराश होकर वापस चली जायेगी।
‘‘बीमार होने पर भी बीमारी के अस्तित्व पर विश्वास न करो। इस प्रकार स्वागत न पाकर बीमारी रूपी अतिथि भाग जायेगा। कल्पना ही वह द्वार है जिसमें रोग और रोग नाशक दोनों प्रवेश करते हैं।’’
श्री युक्तेश्वर गिरि जी
साधना काल में और सिद्धि प्राप्त करने उपरान्त उसका प्रदर्शन अथवा लोगों
से वर्णन नहीं करना चाहिए। अपनी विद्या, क्रिया और उपासना को चर्चा का
विषय नहीं बनाना चाहिए। ऐसा करने से साधना का बल क्षीण होता है। इस संबंध
में महापुरुषों के निम्नलिखित अनुभव सिद्ध वचनों पर अवश्य मनन करने रहना
चाहिए-
‘‘सभी लोगों का व्यतीत जीवन किसी न किसी लज्जास्पद कार्य के अन्धकार से आच्छादित है। जब तक मनुष्य आत्मसाक्षात्कार में दृढ़ नहीं हो जाता, तब तक उसकी प्रवृत्ति पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। यदि तुम अब से भी आध्यात्मिक उन्नति की चेष्टा शुरु कर दो तो भविष्य में सब कुछ सुधर जायेगा।’’
‘‘आत्मदर्शी पुरुष कोई चमत्कार नहीं दिखाया करते। जब तक उसके लिए उन्हें आन्तरिक प्रेरणा नहीं मिलती। ईश्वर को यह इष्ट नहीं हैं कि उसकी सृष्टि के रहस्य को यत्र-तत्र सर्वत्र प्रकट किया जाय।’’
‘‘सभी लोगों का व्यतीत जीवन किसी न किसी लज्जास्पद कार्य के अन्धकार से आच्छादित है। जब तक मनुष्य आत्मसाक्षात्कार में दृढ़ नहीं हो जाता, तब तक उसकी प्रवृत्ति पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। यदि तुम अब से भी आध्यात्मिक उन्नति की चेष्टा शुरु कर दो तो भविष्य में सब कुछ सुधर जायेगा।’’
‘‘आत्मदर्शी पुरुष कोई चमत्कार नहीं दिखाया करते। जब तक उसके लिए उन्हें आन्तरिक प्रेरणा नहीं मिलती। ईश्वर को यह इष्ट नहीं हैं कि उसकी सृष्टि के रहस्य को यत्र-तत्र सर्वत्र प्रकट किया जाय।’’
श्री युक्तेश्वर गिरि जी
‘‘पवित्र वस्तु श्वानों को मत दो और न ही अपनी
मुक्ताओं को
शूकर के सामने फेंको। वे उन्हें अपने पैरों से रौंद डालेंगे और पुन:
तुम्हारी ओर मुड़कर तुमको फाड़ डालेंगे।’’
मैथ्यू 7/6 (बाइबिल)
‘‘जो अपने ज्ञान (सिद्धि) को छुपाकर नहीं रख सकता, वह
मूर्ख है।’’
हिन्दू साधना शास्त्र
‘‘ध्यानं, पूजा, जपं, होम:’’
किसी भी देवता की
साधना के चार अंग होते हैं। यंत्र देवता का शास्त्रोक्त-विग्रह है, जो
मूर्ति से अधिक प्रभावशाली होता है। यंत्र में देवता की उपासना-प्रतिष्ठा
उसके समस्त अंग-अवयवों, शक्तियों सहित की जाती है। जिसके कारण वह अत्यन्त
शक्तिशाली, तैजस् युक्त हो जाता है। यही कारण है कि भारतवर्ष के प्रमुख
शक्तिपीठों, मठों, मन्दिरों में देवता के श्री विग्रह के पार्श्व में उनके
सिद्ध यंत्र भी स्थापित हैं।
साधना-प्रकरण में हवन की आवश्यकता प्राय: हुआ करती है और दु:खद बात यह है कि आज बाजार में सैकड़ों-हजारों की संख्या में इस विद्या पर पुस्तकें उपलब्ध होने के बावजूद कोई शुद्ध व सटीक जानकारी देनेवाली पुस्तक सामान्य पाठक को प्राप्त नहीं हो रही है। कुछ पुस्तकें हैं तो लेकिन वे संस्कृत में होने के कारण जन-साधारण की समझ के बाहर हैं। इस अभाव की पूर्ति हेतु मैं अब तक के अपने यज्ञीय अनुभव को ‘यज्ञ विज्ञान’ नामक ग्रंथ में संग्रहीत करने का प्रयास कर रहा हूँ।
इसमें पहली बार सम्पूर्ण हवनीय कर्मकाण्ड की सकारण विवेचना करते हुए प्रामाणिक ग्रंथों के आधार पर यज्ञ, कुण्ड, समिधा, यज्ञीय पात्र, शाकल्य, सुगम किन्तु सटीक यज्ञविधि प्रामाणिक ग्रंथों के नामों सहित प्रस्तुत की जा रही है। हिन्दी भाषा में यह अपने ढंग की प्रथम व अनूठी रचना सिद्ध होगी। ऐसा मेरा विश्वास और प्रयास है।
‘यंत्र साधना से सिद्धि’ आप प्रथम पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक संपूर्ण पढ़ें। संभव है आपके मन में उठे प्रश्न का उत्तर किसी अन्य पृष्ठ पर मिल जाये। इसके बाद भी कोई प्रश्न शेष हो तो एक मित्र के रूप में आप मुझे भी पत्र लिख सकते हैं। परमात्मा आपका प्रगति पथ प्रशस्त करें।
साधना-प्रकरण में हवन की आवश्यकता प्राय: हुआ करती है और दु:खद बात यह है कि आज बाजार में सैकड़ों-हजारों की संख्या में इस विद्या पर पुस्तकें उपलब्ध होने के बावजूद कोई शुद्ध व सटीक जानकारी देनेवाली पुस्तक सामान्य पाठक को प्राप्त नहीं हो रही है। कुछ पुस्तकें हैं तो लेकिन वे संस्कृत में होने के कारण जन-साधारण की समझ के बाहर हैं। इस अभाव की पूर्ति हेतु मैं अब तक के अपने यज्ञीय अनुभव को ‘यज्ञ विज्ञान’ नामक ग्रंथ में संग्रहीत करने का प्रयास कर रहा हूँ।
इसमें पहली बार सम्पूर्ण हवनीय कर्मकाण्ड की सकारण विवेचना करते हुए प्रामाणिक ग्रंथों के आधार पर यज्ञ, कुण्ड, समिधा, यज्ञीय पात्र, शाकल्य, सुगम किन्तु सटीक यज्ञविधि प्रामाणिक ग्रंथों के नामों सहित प्रस्तुत की जा रही है। हिन्दी भाषा में यह अपने ढंग की प्रथम व अनूठी रचना सिद्ध होगी। ऐसा मेरा विश्वास और प्रयास है।
‘यंत्र साधना से सिद्धि’ आप प्रथम पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक संपूर्ण पढ़ें। संभव है आपके मन में उठे प्रश्न का उत्तर किसी अन्य पृष्ठ पर मिल जाये। इसके बाद भी कोई प्रश्न शेष हो तो एक मित्र के रूप में आप मुझे भी पत्र लिख सकते हैं। परमात्मा आपका प्रगति पथ प्रशस्त करें।
प्रज्ञा अनुष्ठान
परसपुर, गोण्डा-271504
25-6-2000
परसपुर, गोण्डा-271504
25-6-2000
पं. केदार नाथ मिश्र
1
यंत्र साधना
साधना विज्ञान में ‘यंत्र साधना’ का विशिष्ट महत्त्व
है। जिस
प्रकार से देवी-देवताओं की प्रतीकोपासना की जाती है और उसमें सन्निहित
दिव्यताओं, प्रेरणाओं की अवधारणा की जाती है, उसी प्रकार
‘यंत्र’ भी किसी देवी या देवता के प्रतीक होते हैं।
इनकी रचना
ज्यामितीय होती है। यह बिन्दु, रेखाओं, वक्र रेखाओं, त्रिभुजों, वर्गों,
वृत्तों और पद्मदलों से मिलकर बनाये जाते हैं और अलग-अलग प्रकार से बनाये
जाते हैं। कई का तो बनाना ही अति कठिन होता है। इनका एक सुनिश्चित
उद्देश्य होता है। इन रेखाओं, त्रिभुजों, वर्गों, वृत्तों और यहाँ तक कि
कोण, अंश का विशिष्ट अर्थ होता है। जिस तरह से देवी देवताओं के रंग-रूप
आयुध, वाहन आदि विशेष गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसी प्रकार यंत्रों
में भी गंभीर लक्ष्य निहित होते हैं। इनका कारण पत्थर, धातु या अन्य
वस्तुओं के तल पर होता है। रेखाओं और त्रिभुजों आदि के माध्यम से बने
चित्रों को मण्डल कहते हैं, जो किसी भी देवता के प्रतीक हो सकते हैं
किन्तु यंत्र किसी विशिष्ट देवी या देवता के प्रतीक होते हैं।
हमारे अग्रजन्मा ऋषिवरों के अनुसार यंत्र अलौकिक एवं चमत्कारिक दिव्य शक्तियों के निवास-स्थान हैं। ये सामान्यतया स्वर्ण, चाँदी, ताँबा जैसी उत्तम धातुओं पर बनाये जाते हैं। भोजपत्र पर भी उनका निर्माण किया जाता है। ये चारों ही पदार्थ कास्मिक तरंगे उत्पन्न करने की सर्वाधिक क्षमता रखते हैं। उच्चस्तरीय साधनाओं में प्राय: इन्हीं से बने यंत्र प्रयुक्त होते हैं। ये यंत्र केवल रेखाओं और त्रिकोणों से बने ज्यामिति विज्ञान के प्रदर्शक चित्र ही नहीं होते, वरन् उनकी रचना विशेष आध्यात्मिक दृष्टिकोण से की जाती है। जिस प्रकार से विभिन्न देवी-देवताओं के रंग-रूप के रहस्य होते हैं, उसी प्रकार समस्त यंत्र भी विशेष उद्देश्य से ही निर्मित हैं। इन यंत्रों में पिण्ड और ब्रह्माण्ड का दर्शन पिरोया हुआ है, भारतीय दर्शन शास्त्र का मत है कि जो कुछ ब्रह्माण्ड में है, वह सारी देव शक्तियाँ पिण्ड अर्थात् मानवी काया में सूक्ष्म रूप में विद्यमान हैं। मानवी काया-पिण्ड उस विराट विश्व ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त रूप है, अत: उसमें सन्निहित शक्तियों को यदि जाग्रत एवं विकसित किया जा सके तो वे भी उतनी ही समर्थ एवं चमत्कारी हो सकती हैं। यंत्र साधना से साधक यंत्र का ध्यान करते हुए ब्रह्माण्ड का ध्यान करता है।
और क्रमश: आगे बढ़ते हुए अपनी पिण्ड चेतना को वह ब्रह्म जितना ही विस्तृत अनुभव करने लगता है। एक समय ऐसा आता है जो दोनों में कोई अन्तर नहीं रहता है। उसके ध्यान में पिण्ड और ब्रह्माण्ड का ऐक्य हो जाता है। वह भगवती महाशक्ति को अपना ही रूप समझता है और फिर उसे सारा जगत ही अपना रूप लगने लगता है। वह अपने को सब में समाया हुआ पाता है, अपने अतिरिक्त उसे और कुछ दृष्टिगोचर ही नहीं होता। वह अद्वैत सिद्धि के मार्ग पर प्रशस्त होता है। और ऐसी अवस्था में आता है कि ज्ञाता, ज्ञान ज्ञेय एक रूप ही लगने लगते हैं। साधक की चेतना अब अनंत विश्व और अखण्ड ब्रह्म का रूप धारण कर लेती है। यंत्र पूजा में यही भाव निहित है।
हमारे अग्रजन्मा ऋषिवरों के अनुसार यंत्र अलौकिक एवं चमत्कारिक दिव्य शक्तियों के निवास-स्थान हैं। ये सामान्यतया स्वर्ण, चाँदी, ताँबा जैसी उत्तम धातुओं पर बनाये जाते हैं। भोजपत्र पर भी उनका निर्माण किया जाता है। ये चारों ही पदार्थ कास्मिक तरंगे उत्पन्न करने की सर्वाधिक क्षमता रखते हैं। उच्चस्तरीय साधनाओं में प्राय: इन्हीं से बने यंत्र प्रयुक्त होते हैं। ये यंत्र केवल रेखाओं और त्रिकोणों से बने ज्यामिति विज्ञान के प्रदर्शक चित्र ही नहीं होते, वरन् उनकी रचना विशेष आध्यात्मिक दृष्टिकोण से की जाती है। जिस प्रकार से विभिन्न देवी-देवताओं के रंग-रूप के रहस्य होते हैं, उसी प्रकार समस्त यंत्र भी विशेष उद्देश्य से ही निर्मित हैं। इन यंत्रों में पिण्ड और ब्रह्माण्ड का दर्शन पिरोया हुआ है, भारतीय दर्शन शास्त्र का मत है कि जो कुछ ब्रह्माण्ड में है, वह सारी देव शक्तियाँ पिण्ड अर्थात् मानवी काया में सूक्ष्म रूप में विद्यमान हैं। मानवी काया-पिण्ड उस विराट विश्व ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त रूप है, अत: उसमें सन्निहित शक्तियों को यदि जाग्रत एवं विकसित किया जा सके तो वे भी उतनी ही समर्थ एवं चमत्कारी हो सकती हैं। यंत्र साधना से साधक यंत्र का ध्यान करते हुए ब्रह्माण्ड का ध्यान करता है।
और क्रमश: आगे बढ़ते हुए अपनी पिण्ड चेतना को वह ब्रह्म जितना ही विस्तृत अनुभव करने लगता है। एक समय ऐसा आता है जो दोनों में कोई अन्तर नहीं रहता है। उसके ध्यान में पिण्ड और ब्रह्माण्ड का ऐक्य हो जाता है। वह भगवती महाशक्ति को अपना ही रूप समझता है और फिर उसे सारा जगत ही अपना रूप लगने लगता है। वह अपने को सब में समाया हुआ पाता है, अपने अतिरिक्त उसे और कुछ दृष्टिगोचर ही नहीं होता। वह अद्वैत सिद्धि के मार्ग पर प्रशस्त होता है। और ऐसी अवस्था में आता है कि ज्ञाता, ज्ञान ज्ञेय एक रूप ही लगने लगते हैं। साधक की चेतना अब अनंत विश्व और अखण्ड ब्रह्म का रूप धारण कर लेती है। यंत्र पूजा में यही भाव निहित है।
|
- यंत्र-साधना
- यंत्र साधना रहस्य
- यंत्र साधना विधि
- यंत्र साधना और कर्मफल प्रायश्चित
- यंत्र साधना में मन की एकाग्रता
- यंत्र सिद्धि हेतु सिद्धपीठों का चयन
- यांत्रिक-प्राण-प्रतिष्ठा-विधान
- शिव यंत्र साधना रहस्य
- अखण्ड सुख-सौभाग्यदायक शिव यंत्र
- स्वास्थ्य रक्षक मृत्युञ्जय मंत्र साधना
- अखण्ड धनदायक कुबेर यंत्र साधना
- शक्ति यंत्र साधना रहस्य
- सर्वार्थ सिद्धिदायक श्री अष्टाक्षरी दुर्गायन्त्र
- सर्व व्याधिनाशक श्री दुर्गाकवचम्
- करोड़पति बनिये श्री साधना से
- अटूट धन दायक श्री लक्ष्मी स्तोत्रम्
- अटूट धनदायक श्री लक्ष्मी कवचम्
- वैष्णव यंत्र साधना रहस्य
- नारायण यंत्र साधना अर्थात् ऋद्धियों-सिद्धियों की बरसात
- दधिवामन यंत्र अर्थात् लक्ष्मी आकर्षण प्रयोग
- श्री राम यंत्र साधना रहस्य
- दुर्लभ सर्व सिद्धि प्रद रामायण सार
- सर्वमनोकामना सिद्ध गोपाल यंत्र साधना
- सर्वार्थ साधक हनुमान यंत्र साधना
- सर्व रोग और दरिद्रता नाशक सूर्य यंत्र साधना
- सिद्ध यंत्र सुखी जीवन के लिए
अनुक्रम
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book