वास्तु एवं ज्योतिष >> मंत्र शक्ति के चमत्कार मंत्र शक्ति के चमत्काररमेशचन्द्र श्रीवास्तव
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मंत्र साधना द्वारा दैनिक, भौतिक, आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।
******** ******** ********
शब्दात्मिका सुविमलर्ग्यजुषां निधान
मुदगीथरम्य पदपाठवतां च साम्नाम।
देवी त्रयी भगवती भव भावनाय
वार्ता च सर्वजगतां परमार्तिहन्त्री ।।
******** ******** ********
देवि प्रसीद परमा भवती भवाय
सद्यो विनाशयसि कोपवती कुलानि।
विज्ञातमेतदधुनैव यदस्तमेतन्नीतं बलं सुविपुलं महिषा सुरस्य।।
******** ******** ********
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तुते।।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।
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शब्दात्मिका सुविमलर्ग्यजुषां निधान
मुदगीथरम्य पदपाठवतां च साम्नाम।
देवी त्रयी भगवती भव भावनाय
वार्ता च सर्वजगतां परमार्तिहन्त्री ।।
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देवि प्रसीद परमा भवती भवाय
सद्यो विनाशयसि कोपवती कुलानि।
विज्ञातमेतदधुनैव यदस्तमेतन्नीतं बलं सुविपुलं महिषा सुरस्य।।
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सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तुते।।
भगवती माँ कल्याणी सभी का कल्याण करें और जन-जन को सत्मार्ग पर चलने की
प्रेरणा दें। इसी भावना से मैं इस पुस्तक ‘मंत्र शक्ति के
चमत्कार’’ को आपके हाथों में सौंप रहा हूँ। इस पुस्तक
की आप
सब बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे, यह मुझे ज्ञात था। ज्ञात होता
क्यों न आप में से न जाने कितने लोग फोन करके पत्र लिखकर पूछते रहे कि
मंत्रों की मेरी पुस्तक कब आ रही है ? क्या छप चुकी है ? कहाँ मिलेगी ?
आदि-आदि।
मैं स्वयं प्रयत्नशील था कि पुस्तक शीघ्र आपके कर कमलों में समर्पित कर दूँ किन्तु विलम्ब होता ही गया और अब वह घड़ी आई जब यह आपके सामने है।
मंत्रों पर प्राचीन ग्रंथों से लेकर पॉकेट बुक्स तक में काफी पुस्तके हैं। पूजा पद्धति की साधारण एवं विशिष्ट पुस्तकों में भी मंत्र तथा उनके उपयोग लिखे मिलते हैं। फिर मैंने क्यों मंत्रों पर पुस्तक लिखने की सोची ? यह सोचने का विचारणीय विषय है। ?
मेरी इस पुस्तक का नाम भी अन्य पुस्तकों से हटकर है- ‘‘मंत्र शक्ति के चमत्कार। सर्वप्रथम मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मंत्र विषय पर मैंने यह पुस्तक क्यों लिखी ? दूसरी बात यह है कि किसके लिये लिखी ? तीसरी बात यह कि इसका नाम मैंने अन्य से भिन्न ‘‘मंत्र शक्ति के चमत्कार’’ क्यों रखा ? मात्र मंत्र शक्ति भी तो हो सकता था ?
मैंने इस पुस्तक में अपने अनुभव, अपने शोध, अपनी साधना और दूसरों पर हुये मंत्र प्रभाव का संकलन करके वह तथ्य प्रस्तुत किये हैं जो आपको जन-जन को मंत्रों की शक्ति से परिचय करायेगा। लोगों को मंत्र साधना के लिए प्रेरित करना ही मेरा पहला उद्देश्य था। इस तरह लोग सन्तुष्ट हों या न हों परन्तु मेरे अन्दर की भावना अवश्य सन्तुष्ट होगी।
मैं स्वयं प्रयत्नशील था कि पुस्तक शीघ्र आपके कर कमलों में समर्पित कर दूँ किन्तु विलम्ब होता ही गया और अब वह घड़ी आई जब यह आपके सामने है।
मंत्रों पर प्राचीन ग्रंथों से लेकर पॉकेट बुक्स तक में काफी पुस्तके हैं। पूजा पद्धति की साधारण एवं विशिष्ट पुस्तकों में भी मंत्र तथा उनके उपयोग लिखे मिलते हैं। फिर मैंने क्यों मंत्रों पर पुस्तक लिखने की सोची ? यह सोचने का विचारणीय विषय है। ?
मेरी इस पुस्तक का नाम भी अन्य पुस्तकों से हटकर है- ‘‘मंत्र शक्ति के चमत्कार। सर्वप्रथम मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मंत्र विषय पर मैंने यह पुस्तक क्यों लिखी ? दूसरी बात यह है कि किसके लिये लिखी ? तीसरी बात यह कि इसका नाम मैंने अन्य से भिन्न ‘‘मंत्र शक्ति के चमत्कार’’ क्यों रखा ? मात्र मंत्र शक्ति भी तो हो सकता था ?
मैंने इस पुस्तक में अपने अनुभव, अपने शोध, अपनी साधना और दूसरों पर हुये मंत्र प्रभाव का संकलन करके वह तथ्य प्रस्तुत किये हैं जो आपको जन-जन को मंत्रों की शक्ति से परिचय करायेगा। लोगों को मंत्र साधना के लिए प्रेरित करना ही मेरा पहला उद्देश्य था। इस तरह लोग सन्तुष्ट हों या न हों परन्तु मेरे अन्दर की भावना अवश्य सन्तुष्ट होगी।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोऽस्तुते।।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोऽस्तुते।।
जन-जन सर्वमंगल प्राप्त करें और मंत्रों की शक्ति को पहचानें, अपनावें। इस
तरह वह अपना भी कल्याण करें और अपनों का भी कल्याण करें और तभी मेरे अन्दर
छुपी बहुजन सुखाय-बहुजन हिताय भावना, आप सब की अन्तः प्रेरणा बन सकेगी।
सुनो इस वायुमण्डल, में आकाशमण्डल में ब्रह्माण्ड में एक स्वर युग-युगों
से गूँज रहा है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वें भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत।।
सर्वें भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत।।
पहली बात स्पष्ट हुई कि मैंने यह पुस्तक क्यों लिखी। अब दूसरी बात यह कि
यह पुस्तक मैंने किसके लिये लिखी ?
उत्तर स्पष्ट है- आपके लिये किन्तु इस उत्तर से आप सन्तुष्ट नहीं होंगे क्योंकि हर पुस्तक पाठकों के लिए ही लिखी जाती है। आपके लिए लिखी जाती है। फिर इसमें विशेष क्या है ? आपका सोचना उचित है कि पुस्तकें आपके लिए (पाठकों के लिए) ही लिखी जाती हैं। किन्तु क्या मंत्र यंत्र या विभिन्न साधनाओं के विषय सम्बन्धी पुस्तकों को पढ़कर उनका खूब मनन-अध्ययन करके आपसे कुछ सीखा ? क्या उन पुस्तकों को पढ़कर आप मंत्रों, साधनाओं की ओर आकर्षित हुये ? शायद नहीं क्योंकि मुझे तो ऐसी पुस्तकें ही नहीं मिलीं जिनको पढ़कर मैंने मंत्र साधना कर ली हो।
वास्तविकता यह कि पुस्तकें ज्ञानवर्द्धन कराती हैं, क्रियावर्द्धन या साधना में प्रवृत्त नहीं करातीं। लेखकों ने विद्वानों ने, मन्त्र-तन्त्र मर्मज्ञों ने ढेर सारी पुस्तकें लिखीं पर उनको इतना दुरूह कर दिया कि पाठकों विशेषकर सरल पाठकों की समझ बाहर हो गयीं। उन पुस्तकों में मंत्र साधना के विशेष आयाम दिये हैं। ढेर सारी विधायें दी हैं। ढेरों सिद्धान्त दिए हैं। ढेर सारे मंत्र दिए हैं परन्तु एक भी ऐसी सरल एवं उपयोगी मंत्र साधना नहीं बताई जिसको पढ़कर सरल पाठक सहज में मंत्र साधना करके अपना और अपनों का कल्याण कर सकें। जबकि मैंने इस पुस्तक को केवल सरल, सहज पाठकों को ध्यान में रख कर लिखा है। बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय की भावना तभी तृप्त होगी जब इस पुस्तक के सहारे ही बहुत से पाठक अपना कल्याण कर सकेंगे। कम से कम छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान तो कर ही लेंगे। मैंने दिल खोलकर, मन खोलकर परहित कामना को उजागर कर इस पुस्तक को अपने प्रिय पाठकों के लिए लिखा है। जो इस भौतिक जगत में अपना जीवन सुचारू रूप से चला सकें और आने वाली विघ्न-बाधाओं को मंत्र शक्ति से दूर कर लोक-परलोक बना सकें।
विद्धान लेखकों ने मंत्रों पर पुस्तकें लिखी जरूर हैं परन्तु उनमें पाण्डित्य प्रदर्शन ही ज्यादा किया है। यही नहीं वास्तविकता तो यह रही है कि साधारण व्यक्ति, सरल व्यक्ति मंत्रों को सीख भी न सके। यही वे मन ही मन चाहते रहे हैं। क्योंकि किसी ने यह नहीं लिखा कि मंत्र सबके लिए हैं। इन मत्रों की साधना चाहे ब्राह्मण करे, चाहे शूद्र सभी को यह मंत्र शक्ति प्राप्त होगी। वे तो चाहते ही नहीं थे कि जन-जन तक इन मंत्रों का रहस्य इन मंत्रों की शक्ति पहुँचे। इसलिए स्थान-स्थान पर लिखा मिलता है-मंत्र शक्ति अत्यन्त रहस्यमय विद्या है। यह अत्यन्त ही गोपनीय विद्या है। मंत्रों को शंकर जी ने कीलित कर दिया है। मंत्र सभी जाति, वर्ण एवं धर्म के लोगों के लिये नहीं हैं। मंत्र साधना गुरु के सानिध्य में करने पर ही सफल होती है। मंत्र को पुस्तक से पढ़कर नहीं जपना चाहिए। उसके लिये गुरु मुख से दीक्षा लेना आवश्यक है आदि-आदि तमाम ऐसी बातें लिख दीं और प्रचारित कर दी गयी हैं कि पाठक उन लेखकों की पुस्तकें तो खरीदें, पढ़ें परन्तु उनसे सीखकर कुछ कर न सकें। पढ़-समझकर भी कोरा का कोरा रह जायें।
मैं यह मानता हूँ, स्वीकार करता हूँ कि मंत्र साधना करके मंत्र सिद्ध तक पहुँचने के लिये योग्य गुरु की आवश्यकता पड़ती ही है। गुरु के बिना मंत्र साधना की सिद्धि नहीं मिल सकती। किन्तु मैं पाठकों को मंत्र सिद्धि का भी वो पाठ नहीं पढ़ा रहा हूँ। मेरा उद्देश्य तो पाठकों को उनकी दैनिक, भौतिक, आध्यात्मिक उन्नति कराना है। पाठकों को समस्याओं से निबटने का मार्ग मंत्र शक्ति से बताने का है। इसलिए यह पुस्तक है कि पाठक समझें करें और समस्या मुक्त हों।
मैं पाठकों को मंत्र साधना करके मंत्र सिद्धि कराने की प्रेरणा कहाँ दे रहा हूँ। हाँ जो भी पाठक मंत्र साधना करना चाहता है। जो मंत्र सिद्ध करना चाहता है, जो मंत्र शक्ति की बागडोर अपने हाथों में लेना चाहता है, वह इस पुस्तक से ज्ञान प्राप्त दृढ़ निर्णय कर गुरु शरण में रहे और गुरु चरणों में बैठकर मंत्र साधना करे। सिद्ध तो मिल सकती है।
तीसरी बात पुस्तक के नाम की है। पुस्तक का नाम- मंत्र शक्ति के चमत्कार’ क्यों रखा। इसे मैं इस तरह स्पष्ट करना चाहूँगा। कई कारणों से जनता में भारतीय धर्मप्राण जनता में यह भ्रान्ति बड़ी गहराई से फैल चुकी है कि मंत्र-तन्त्र अवैज्ञानिक और छल-प्रपंच तथा आडम्बर हैं। कुछ लोग तंत्र-मंत्र के सहारे जनता को समाज को धोखा देकर अपना भरण-पोषण करते हैं। कुछ लोग जनता को ठगते हैं। समाज का प्रबुद्ध वर्ग मंत्र शक्ति के बारे में तो जानता है परन्तु मंत्र साधकों या मांत्रिकों के प्रति उनकी धारणा वही एक धोखेबाज बाजीगर से ज्यादा नहीं है।
उत्तर स्पष्ट है- आपके लिये किन्तु इस उत्तर से आप सन्तुष्ट नहीं होंगे क्योंकि हर पुस्तक पाठकों के लिए ही लिखी जाती है। आपके लिए लिखी जाती है। फिर इसमें विशेष क्या है ? आपका सोचना उचित है कि पुस्तकें आपके लिए (पाठकों के लिए) ही लिखी जाती हैं। किन्तु क्या मंत्र यंत्र या विभिन्न साधनाओं के विषय सम्बन्धी पुस्तकों को पढ़कर उनका खूब मनन-अध्ययन करके आपसे कुछ सीखा ? क्या उन पुस्तकों को पढ़कर आप मंत्रों, साधनाओं की ओर आकर्षित हुये ? शायद नहीं क्योंकि मुझे तो ऐसी पुस्तकें ही नहीं मिलीं जिनको पढ़कर मैंने मंत्र साधना कर ली हो।
वास्तविकता यह कि पुस्तकें ज्ञानवर्द्धन कराती हैं, क्रियावर्द्धन या साधना में प्रवृत्त नहीं करातीं। लेखकों ने विद्वानों ने, मन्त्र-तन्त्र मर्मज्ञों ने ढेर सारी पुस्तकें लिखीं पर उनको इतना दुरूह कर दिया कि पाठकों विशेषकर सरल पाठकों की समझ बाहर हो गयीं। उन पुस्तकों में मंत्र साधना के विशेष आयाम दिये हैं। ढेर सारी विधायें दी हैं। ढेरों सिद्धान्त दिए हैं। ढेर सारे मंत्र दिए हैं परन्तु एक भी ऐसी सरल एवं उपयोगी मंत्र साधना नहीं बताई जिसको पढ़कर सरल पाठक सहज में मंत्र साधना करके अपना और अपनों का कल्याण कर सकें। जबकि मैंने इस पुस्तक को केवल सरल, सहज पाठकों को ध्यान में रख कर लिखा है। बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय की भावना तभी तृप्त होगी जब इस पुस्तक के सहारे ही बहुत से पाठक अपना कल्याण कर सकेंगे। कम से कम छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान तो कर ही लेंगे। मैंने दिल खोलकर, मन खोलकर परहित कामना को उजागर कर इस पुस्तक को अपने प्रिय पाठकों के लिए लिखा है। जो इस भौतिक जगत में अपना जीवन सुचारू रूप से चला सकें और आने वाली विघ्न-बाधाओं को मंत्र शक्ति से दूर कर लोक-परलोक बना सकें।
विद्धान लेखकों ने मंत्रों पर पुस्तकें लिखी जरूर हैं परन्तु उनमें पाण्डित्य प्रदर्शन ही ज्यादा किया है। यही नहीं वास्तविकता तो यह रही है कि साधारण व्यक्ति, सरल व्यक्ति मंत्रों को सीख भी न सके। यही वे मन ही मन चाहते रहे हैं। क्योंकि किसी ने यह नहीं लिखा कि मंत्र सबके लिए हैं। इन मत्रों की साधना चाहे ब्राह्मण करे, चाहे शूद्र सभी को यह मंत्र शक्ति प्राप्त होगी। वे तो चाहते ही नहीं थे कि जन-जन तक इन मंत्रों का रहस्य इन मंत्रों की शक्ति पहुँचे। इसलिए स्थान-स्थान पर लिखा मिलता है-मंत्र शक्ति अत्यन्त रहस्यमय विद्या है। यह अत्यन्त ही गोपनीय विद्या है। मंत्रों को शंकर जी ने कीलित कर दिया है। मंत्र सभी जाति, वर्ण एवं धर्म के लोगों के लिये नहीं हैं। मंत्र साधना गुरु के सानिध्य में करने पर ही सफल होती है। मंत्र को पुस्तक से पढ़कर नहीं जपना चाहिए। उसके लिये गुरु मुख से दीक्षा लेना आवश्यक है आदि-आदि तमाम ऐसी बातें लिख दीं और प्रचारित कर दी गयी हैं कि पाठक उन लेखकों की पुस्तकें तो खरीदें, पढ़ें परन्तु उनसे सीखकर कुछ कर न सकें। पढ़-समझकर भी कोरा का कोरा रह जायें।
मैं यह मानता हूँ, स्वीकार करता हूँ कि मंत्र साधना करके मंत्र सिद्ध तक पहुँचने के लिये योग्य गुरु की आवश्यकता पड़ती ही है। गुरु के बिना मंत्र साधना की सिद्धि नहीं मिल सकती। किन्तु मैं पाठकों को मंत्र सिद्धि का भी वो पाठ नहीं पढ़ा रहा हूँ। मेरा उद्देश्य तो पाठकों को उनकी दैनिक, भौतिक, आध्यात्मिक उन्नति कराना है। पाठकों को समस्याओं से निबटने का मार्ग मंत्र शक्ति से बताने का है। इसलिए यह पुस्तक है कि पाठक समझें करें और समस्या मुक्त हों।
मैं पाठकों को मंत्र साधना करके मंत्र सिद्धि कराने की प्रेरणा कहाँ दे रहा हूँ। हाँ जो भी पाठक मंत्र साधना करना चाहता है। जो मंत्र सिद्ध करना चाहता है, जो मंत्र शक्ति की बागडोर अपने हाथों में लेना चाहता है, वह इस पुस्तक से ज्ञान प्राप्त दृढ़ निर्णय कर गुरु शरण में रहे और गुरु चरणों में बैठकर मंत्र साधना करे। सिद्ध तो मिल सकती है।
तीसरी बात पुस्तक के नाम की है। पुस्तक का नाम- मंत्र शक्ति के चमत्कार’ क्यों रखा। इसे मैं इस तरह स्पष्ट करना चाहूँगा। कई कारणों से जनता में भारतीय धर्मप्राण जनता में यह भ्रान्ति बड़ी गहराई से फैल चुकी है कि मंत्र-तन्त्र अवैज्ञानिक और छल-प्रपंच तथा आडम्बर हैं। कुछ लोग तंत्र-मंत्र के सहारे जनता को समाज को धोखा देकर अपना भरण-पोषण करते हैं। कुछ लोग जनता को ठगते हैं। समाज का प्रबुद्ध वर्ग मंत्र शक्ति के बारे में तो जानता है परन्तु मंत्र साधकों या मांत्रिकों के प्रति उनकी धारणा वही एक धोखेबाज बाजीगर से ज्यादा नहीं है।
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- दो शब्द आपसे
- प्रस्तावना
- मंत्र और मंत्र-शक्ति
- मंत्र-शक्ति कैसे प्रभाव करती है? या मंत्र क्रिया का सिद्धान्त
- मंत्र-शक्ति की क्रियायें
- मंत्रों में बीजाक्षर एवं नाद, स्फोट
- मंत्र-शक्ति और विज्ञान
- मंत्र-शक्ति परमाणु शक्ति से प्रबल है
- ज्योतिष-मंत्र और चिकित्सा विज्ञान
- संगीत शास्त्र और मंत्र-शक्ति
- मंत्र साधना
- अन्तश्चेतना
- साधना और सिद्धि
- जप रहस्य
- गुरु और मंत्र दीक्षा
- वैदिक मंत्रों का चमत्कार
- संजीवनी मंत्र का चमत्कार
- महामृत्युञ्जय मंत्र का चमत्कार
- बीज मंत्रों का महत्त्व एवं चिकित्सा
- श्री दुर्गा सप्तशती के चमत्कारी मंत्र
- रामचरितमानस के मंत्र प्रयोग
अनुक्रम
विनामूल्य पूर्वावलोकन
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लोगों की राय
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