कहानी संग्रह >> अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँप्रकाश माहेश्वरी
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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।
बनवारीलाल के हृदय की धड़कनें सहसा बढ़ गईं। उन्हें लगा-यही माकूल क्षण है साहब से शिकायत करने का! उन्होंने हाथ जोड़ याचनापूर्ण नज़रें साहब के चेहरे पर गड़ा दीं-''एक अर्ज़ थी, साहब?''
''हाँ-हाँ, कहिए न? इतना संकोच क्यों कर रहे हैं?''
''जी...'' बनवारीलाल अब भी झिझक रहे थे, ''...दरअसल कार्यालयी कार्य था। आप कहेंगे...बंगले पर आकर...''
''कोई बात नहीं।'' साहब ने आश्वस्त किया, ''असूलों में कभी-कभी ढील दी जा सकती है। फिर अब तो आप रिटायर हो चुके हैं...? अन्य शहर में रहते हैं। आप निस्संकोच कहिए?''
''...'' बनवारीलाल का स्वर यकायक थरथरा उठा, ''साहब! मेरे पी.एफ...का और अन्य फंड्स का पैसा दिलवा देते तो बड़ी मेहरबानी होती।''
'पी.एफ...और अन्य फंड्स?' होंठों में बुदबुदा साहब बुरी तरह चौंक पड़े, ''क्या कह रहे हैं आप? आपको अभी तक मिले नहीं?''
''नहीं, साहब।'' साहब की प्रतिक्रिया से बनवारीलाल को उम्मीद बँधती महसूस हुई।
''अजीब बात है।'' साहब के चेहरे पर हैरतमयी उलझन उभर आई, ''साल-भर से अधिक हो गया और आप अभी तक चुप बैठे हैं?''
''चुप नहीं बैठा, साहब।'' बनवारीलाल की उत्तेजना एकदम बढ़ गई, ''कई बार कोशिश कर ली। बीसियों चक्कर लगा चुका हूँ दफ्तर के।''
''फिर भी नहीं हुआ?''
''नहीं साहब।''
''हद है!'' साहब का स्वर झल्ला गया, ''एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ रहे कर्मचारी के संग यह सलूक?''
बनवारीलाल की आँखों की चमक बढ़ गई।
''मेरा ख्याल है...'' साहब ने याददाश्त पर जोर देते हुए अपनी नज़रें उनके चेहरे पर टिका दीं, ''इन फंड्स का काम रामप्रसादजी देखते हैं?''
''जी हाँ।''
''वो तो आपके मित्र हैं न?''
''ज...जी!'' बनवारीलाल ने जुबान काट ली।
''फिर कहा नहीं उनसे? मित्र का काम...''
''काहे की मित्रता साहब।'' बनवारीलाल के कलेजे से ठंडी आह निकल गई, ''दफ्तर छूटा, मित्रता भी छूट गई। चक्कर पर चक्कर लगवाए जा रहे हैं।''
''मैं समझा नहीं, किस बात के चक्कर?''
''अरे फिजूल में ही...'' बनवारीलाल का स्वर कलप उठा, ''कभी यह जानकारी छूट गई...कभी यह एंट्री गलत कर दी...''
''आपने कहा नहीं-एक बार में सब...तफ्सील से बतला दें?''
''कहा था। झल्ला जाते हैं-सब लिखा तो है फार्म में!''
हैरत से साहब स्तब्ध रह गए। उन्हीं की कंपनी में, उन्हीं की नाक के नीचे..., इतनी लालफीताशाही? उनके जबड़े कस गए।
बनवारीलाल के दिल की धड़कनें बढ़ गईं।
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