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अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ

प्रकाश माहेश्वरी

प्रकाशक : आर्य बुक डिपो प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6296
आईएसबीएन :81-7063-328-1

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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।

पीड़ा से बिलबिला कुत्ता 'कें-कें' करता इधर-उधर दुबकने लगा। यह देख बाबा की आँखों की शैतानी चमक में और भी वृद्धि हो गई। उनके होंठों पर नाचती मुस्कान उस 'सेडिस्ट' (परपीड़क) की नाई लगती थी, जिसे दूसरों को पीड़ा पहुँचाने में अपरिमित मानसिक सुख-संतोष मिलता है। मैं हैरत व वितृष्णा से यह सब देखता रह गया। कितना क्रूर है यह बुड्ढा आदमी? जरा भी दया-ममता नहीं?

नफरत से मैं मुँह फेर बाहर सड़क की तरफ देखने लगा। बाबा का कुत्ते को सताना जारी था। उसकी आर्त 'कें-कें' सुन अंदर से अमिता की आवाज़ आई, ''ओफ् दादाजी, उसे फिर तंग करने लगे क्या? पता नहीं कैसी आदत है!''

बड़बड़ाती हुई वह बाहर आने लगी। बाबा तत्क्षण कुर्सी में धँस ऊँघने लगे। अमिता बाहर आई तो उसे अपने दादा नींद में गाफिल दिखे।

असमंजस में 'पता नहीं क्यों चिल्ला रहा था' बुदबुदा वह कुत्ते को ले अंदर चली गई।

बाबा ऊँघने का नाटक करते बैठे रहे।

मगर दो मिनट भी नहीं बीते थे कि कुत्ता मालकिन की नज़र बचा वापस आ गया। वह शायद बंगले के बाहर जाना चाहता था। आहट पर बाबा की आँखें खुल गईं। गुस्से से वे कुत्ते को घूरने लगे देखता हूँ कैसे जाता है!

तभी पंखे से टकराकर एक चिड़िया तड़पड़ाती नीचे गिरी। उसके डैनों से खून निकल रहा था। गलीचे पर पड़ी पीड़ा से वह छटपटाने लगी। यह देख कुत्ता उसकी ओर लपका, मगर उसके पूर्व ही बाबा ने कुबडी घुमाकर उसके मुँह पर मारी। निशाना अचूक था। पीड़ा से बिलबिला कुत्ता अंदर भागा।

चिड़िया चें-चें करती अब भी तड़पड़ा रही थी। कुबडी पर जोर दे बाबा धीरे से उठे और काँपते डग भरते हुए चिड़िया के पास आकर बैठ गए। कुबड़ी एक ओर रख उन्होंने चिड़िया को उठाया। चिड़िया लंबी-लंबी साँसें ले रही थी। बाबा उसे सहलाते हुए खिड़की के पास आए। खिड़की की पाटी करीब एक फुट चौड़ी थी। उस पर लिटा बाबा ड्राअर में से डेटॉल, रूई, मलहम, पाउडर इत्यादि निकालने लगे। पूर्ण मनोयोग से वे चिड़िया की तीमारदारी में जुट गए थे। उस वक्त उनकी आँखों का सारा वहशीपन गायब हो चुका था, उसकी जगह असीम कोमलता और स्निग्धता ने ले ली थी। ज्यों-ज्यों चिड़िया का तडफड़ाना कम हो रहा था और उसमें दुबारा उड़ने की हिम्मत व ताकत आती जा रही थी, उनके मुख पर भी शांति व संतोष की आभा पल-पल बढ़ती जा रही थी। पाँच मिनट की सेवा-सुश्रुषा के बाद चिड़िया पुनः उड़ने योग्य हो गई। यह देख उल्लसित भाव से बाबा ने चिड़िया को थपथपाया...उड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। दो मिनट चिड़िया पंखों को तौलती रही...एक-दो बार असफल हुई...और फिर...फुर्र से उड़ गई! बाबा बच्चों की तरह तालियाँ पीटने लगे। संतोष की साँस लेते वे प्रफुल्लित नयनों से चिड़िया को दूर जाता देखते रहे...

उसी वक्त कुत्ता अंदर से वापस आ गया!

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    अनुक्रम

  1. पापा, आओ !
  2. आव नहीं? आदर नहीं...
  3. गुरु-दक्षिणा
  4. लतखोरीलाल की गफलत
  5. कर्मयोगी
  6. कालिख
  7. मैं पात-पात...
  8. मेरी परमानेंट नायिका
  9. प्रतिहिंसा
  10. अनोखा अंदाज़
  11. अंत का आरंभ
  12. लतखोरीलाल की उधारी

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