स्वास्थ्य-चिकित्सा >> जीवनी शक्ति वर्धक अष्टवर्ग पादप जीवनी शक्ति वर्धक अष्टवर्ग पादपआचार्य बालकृष्ण
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आयुर्वेद सिर्फ रोगों के उपचार की विधि नहीं है, अपितु स्वस्थ, सुखी एवं आध्यात्मिक जीवन जीने की आचार संहिता भी है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्राक्कथन
आयुर्वेद सिर्फ रोगों के उपचार की विधि नहीं है, अपितु स्वस्थ, सुखी एवं
आध्यात्मिक जीवन जीने की आचार संहिता भी है। आज मानव स्वास्थ्य संबंधी की
विकट समस्याओं से जूझ रहा है और कोई समाधान नहीं मिल रहा है पिछले 5-6
वर्षो से यह महसूस किया जा रहा है कि जब लोगों को अंग्रेजी (Alopethic)
विधि से अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कोई समाधान नहीं मिलता तो वो
आयुर्वेद की तरफ मुँह मोड़ते हैं।
दिव्य योग मन्दिर हजारों लोगों का उपचार एक्युप्रेशर, प्राणायाम, योगासनों द्वारा करने में संलग्न है। यह संस्थान एकल बूटी के प्रयोग व जड़ी बूटियों से रोगोंपचार में अधिक से अधिक प्रयोग में लगा हुआ है। प्रचलित अष्टवर्ग च्यवनप्राश एक भ्रांति है, क्योंकि अष्टवर्ग के पौधों की पहचान अनिश्चित और भ्रमपूर्ण हैं। वर्तमान में च्यवनप्राश के बढ़िया से बढ़िया नमूनों में, अष्टवर्गीय पौधों की केवल चार जातियों- वृद्धि, मेदा, काकोली और जीवक का ही उपयोग किया जाता है शेष चार कर नहीं।
जीवनी शक्तिवर्धक अष्टवर्ग पादप नामक पुस्तिका एक प्रशंसनीय उपहार है। यह दो कारणों से है- प्रथम भारतवर्ष में अष्टवर्ग के पौधों में बहुत लोगों की रुचि, दूसरे वर्तमान में जबकि लोग घातक रोगों से पीड़ित हैं इनसे कोई हल निकल सकता है। जैसा कि विभिन्न आयुर्वेदिक पुस्तकों में उल्लेख मिलता है कि ये पौधे बहुत ही गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं जैसे क्षय, जो आज भी चिकित्सा आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के लिये चुनौती खड़ी करता है, में भी प्रभावशाली है। पौधों का यह समूह हृदयरोग, मूत्र संबंधी अनियमितता, मधुमेह विभिन्न प्रकार के ज्वर में प्रभावी और साथ ही साथ आवश्यक प्राण शक्ति, रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा कोशिकाओं के पुन:निर्माण की क्रिया में वृद्धि कर शरीर को आरोग्य प्रदान करता है। इसलिए हो सकता है कि भविष्य में इनसे एच.आई.वी व एड्स जैसी समस्याओं का कोई समाधान निकल आये।
अष्टवर्ग पर शोधकार्य, यह प्रदर्शित करता है कि दिव्य योग मंदिर आयुर्वेद के परम्परागत पुराने उपचार के तरीकों में ही विश्वास नहीं करता, अपितु इसे वैज्ञानिक जामा भी पहनाना चाहता है। इससे भारतीय समाज में इस महान, विज्ञान के आनन्द का फल भोगेगा। इस विषय में अभी बहुत कुछ किया जाना है, क्योंकि अधिक संख्या पौधों की चाहे वे किसी भी कोने में क्यों न हो, आज की पहचान अनिश्चित और भ्रमपूर्ण हैं। इस संबंध में दूसरा संकट यह है कि अधिकांश आयुर्वेदिक चिकित्सकों में औषधीय पौधों के ज्ञान का अभाव है, इसलिये वे इनके चमत्कारिक उपचारों का अनुभव करने में अक्षम रहते हैं। इसके अलावा चिकित्सकों की रुचि एलोपैथिक दवा व इंजेक्शन आदि के उपयोग में अधिक रहती है। आयुर्वेद की पाठ्य पुस्तकें आज भी परम्परागत ढांचे में लिखी गई हैं। उनमें आधुनिक शरीर की बाह्य संरचना आन्तरिक रचना शरीर की क्रिया विज्ञान, अन्य गुण धर्मों, रोग निदान व विज्ञान की नवीनतम शाखाओं का कोई भी समावेश नहीं किया गया है।
जो लोग, आयुर्वेद के इस महान उपचार पद्धति को पुन:जीवित देखने के इच्छुक हैं उन्हें मैं रणभेरी बजाकर आमंत्रित करता हूँ कि वे लोग आये और पीड़ित विश्व मानवता की दिशा में सुधार का संकल्प लें। अन्त में, मैं आशा करता हूँ कि कार्य जारी रहेगा और आगे आनेवाले वर्षों में बहुत कुछ किया जायेगा।
दिव्य योग मन्दिर हजारों लोगों का उपचार एक्युप्रेशर, प्राणायाम, योगासनों द्वारा करने में संलग्न है। यह संस्थान एकल बूटी के प्रयोग व जड़ी बूटियों से रोगोंपचार में अधिक से अधिक प्रयोग में लगा हुआ है। प्रचलित अष्टवर्ग च्यवनप्राश एक भ्रांति है, क्योंकि अष्टवर्ग के पौधों की पहचान अनिश्चित और भ्रमपूर्ण हैं। वर्तमान में च्यवनप्राश के बढ़िया से बढ़िया नमूनों में, अष्टवर्गीय पौधों की केवल चार जातियों- वृद्धि, मेदा, काकोली और जीवक का ही उपयोग किया जाता है शेष चार कर नहीं।
जीवनी शक्तिवर्धक अष्टवर्ग पादप नामक पुस्तिका एक प्रशंसनीय उपहार है। यह दो कारणों से है- प्रथम भारतवर्ष में अष्टवर्ग के पौधों में बहुत लोगों की रुचि, दूसरे वर्तमान में जबकि लोग घातक रोगों से पीड़ित हैं इनसे कोई हल निकल सकता है। जैसा कि विभिन्न आयुर्वेदिक पुस्तकों में उल्लेख मिलता है कि ये पौधे बहुत ही गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं जैसे क्षय, जो आज भी चिकित्सा आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के लिये चुनौती खड़ी करता है, में भी प्रभावशाली है। पौधों का यह समूह हृदयरोग, मूत्र संबंधी अनियमितता, मधुमेह विभिन्न प्रकार के ज्वर में प्रभावी और साथ ही साथ आवश्यक प्राण शक्ति, रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा कोशिकाओं के पुन:निर्माण की क्रिया में वृद्धि कर शरीर को आरोग्य प्रदान करता है। इसलिए हो सकता है कि भविष्य में इनसे एच.आई.वी व एड्स जैसी समस्याओं का कोई समाधान निकल आये।
अष्टवर्ग पर शोधकार्य, यह प्रदर्शित करता है कि दिव्य योग मंदिर आयुर्वेद के परम्परागत पुराने उपचार के तरीकों में ही विश्वास नहीं करता, अपितु इसे वैज्ञानिक जामा भी पहनाना चाहता है। इससे भारतीय समाज में इस महान, विज्ञान के आनन्द का फल भोगेगा। इस विषय में अभी बहुत कुछ किया जाना है, क्योंकि अधिक संख्या पौधों की चाहे वे किसी भी कोने में क्यों न हो, आज की पहचान अनिश्चित और भ्रमपूर्ण हैं। इस संबंध में दूसरा संकट यह है कि अधिकांश आयुर्वेदिक चिकित्सकों में औषधीय पौधों के ज्ञान का अभाव है, इसलिये वे इनके चमत्कारिक उपचारों का अनुभव करने में अक्षम रहते हैं। इसके अलावा चिकित्सकों की रुचि एलोपैथिक दवा व इंजेक्शन आदि के उपयोग में अधिक रहती है। आयुर्वेद की पाठ्य पुस्तकें आज भी परम्परागत ढांचे में लिखी गई हैं। उनमें आधुनिक शरीर की बाह्य संरचना आन्तरिक रचना शरीर की क्रिया विज्ञान, अन्य गुण धर्मों, रोग निदान व विज्ञान की नवीनतम शाखाओं का कोई भी समावेश नहीं किया गया है।
जो लोग, आयुर्वेद के इस महान उपचार पद्धति को पुन:जीवित देखने के इच्छुक हैं उन्हें मैं रणभेरी बजाकर आमंत्रित करता हूँ कि वे लोग आये और पीड़ित विश्व मानवता की दिशा में सुधार का संकल्प लें। अन्त में, मैं आशा करता हूँ कि कार्य जारी रहेगा और आगे आनेवाले वर्षों में बहुत कुछ किया जायेगा।
स्वामी रामदेव
दिव्य योग मन्दिर, हरिद्वार
दिव्य योग मन्दिर, हरिद्वार
प्रस्तावना
आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है और प्राचीन भारत में अनेक ऋषियों जैसे
अश्विनी कुमारों, अत्रेय, भारद्वाज, धन्वंतरि, चरक आदि ने इसे समृद्ध
बनाया था। आयुर्वेद के विकास के प्रारम्भिक काल में अश्विनी कुमारों ने,
जिनकी चमत्कारी अद्भुत वैद्यों के रूप में महान् ख्याति थीं, वृद्ध,
जर्जर, कृशकाय, च्यवन ऋषि को देखा और औषधियों के द्वारा उन्हें पुन: युवा
बनाने का मन बनाया। च्यवन ऋषि महर्षि भृगु (जो व्यक्तित्व के बहुत बड़े
विद्वान थे और जिन्होंने लाखों लोगों के जन्म चार्ट बनाये जो आज भी
प्रामाणिक है) के वंशज थे। इसके लिए अश्विनी कुमारों ने अष्टवर्ग के आठ
औषधीय पौधों की खोज की तथा च्यवन ऋषि के कृश, वृद्ध शरीर को पुन: युवा बना
देने का चमत्कार कर दिखाया।
भार्गवश्च्यवन कामी वृद्ध: सन् विकृतिं गत:।
वीर्य वर्ण स्वरोयेत कृतोऽश्रिभ्या पुनर्युवा।। भाव प्रकाश, 1-3।।
वीर्य वर्ण स्वरोयेत कृतोऽश्रिभ्या पुनर्युवा।। भाव प्रकाश, 1-3।।
तैयार किये गये पदार्थ का नाम च्यवनऋषि के नाम पर च्यवनप्राश पड़ा तथा
तबसे राजाओं और धनाढ़्य वर्ग में च्यवनप्राश की भारी मांग रही है। लेकिन
प्रयोगिक ज्ञान पर अधिक तथा पुस्तकीय ज्ञान पर कम आधारित गुरुकुल की
शिक्षा प्रणाली की समाप्ति के साथ-साथ पौधे के प्राकृतिकवास स्थान का
ज्ञान व उनकी पहचान के ज्ञान का भी ह्नास होता चला गया। शताब्दियों से इस
विषय में कोई भी लिखित विवरण उपलब्ध न होने के कारण पौधों की वास्तविक
पहचान भ्रमपूर्ण और अनिश्चित हो गई। अष्टवर्ग के पौधों के साथ भी ऐसा हुआ।
अष्ट वर्ग में सम्मिलित आठ पौधों के नाम इस प्रकार हैं- ऋद्धि, वृद्धि,
जीवक, ऋषभक, काकोली, क्षीरकाकोली, मेदा, महामेदा।
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