विविध >> सब कुछ विचित्र सब कुछ विचित्रउमेश पाण्डे
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इस पुस्तक में कई विचित्र जड़ियों, विचित्र प्रयोगों एवं कई विचित्र वस्तुओं का वर्णन है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आप जानते हैं ?.............
• मात्र शयन दिशा बदलने से आप
तनाव विहीन एवं प्रगाढ़ निद्रा प्राप्त कर सकते हैं।
• गोमूत्र से कैंसर जैसा भयानक रोग भी ठीक किया जा सकता है।
• शिवलिंगी के बीज एक संतानहीन को संतानवान बना सकते हैं।
• एक दवा ऐसी है जिससे 75 रोग ठीक होते हैं।
• अश्वकंचुकी क्या है ?
• अमृता बूटी के कई विचित्र प्रयोग होते हैं।
• तीन गणेश प्रतिमा की पूजा एक साथ अशुभकारी होती है।
• आपके शयन कक्ष में एक सारस जोड़े की प्रतिमाएँ या तस्वीर आपके दाम्पत्य जीवन को आनन्दमय बना सकती है।
• गोमूत्र से कैंसर जैसा भयानक रोग भी ठीक किया जा सकता है।
• शिवलिंगी के बीज एक संतानहीन को संतानवान बना सकते हैं।
• एक दवा ऐसी है जिससे 75 रोग ठीक होते हैं।
• अश्वकंचुकी क्या है ?
• अमृता बूटी के कई विचित्र प्रयोग होते हैं।
• तीन गणेश प्रतिमा की पूजा एक साथ अशुभकारी होती है।
• आपके शयन कक्ष में एक सारस जोड़े की प्रतिमाएँ या तस्वीर आपके दाम्पत्य जीवन को आनन्दमय बना सकती है।
और साथ में
• सर्प विष की अचूक औषधि।
• नेत्र रक्षार्थ विचित्र योग प्रयोग।
• सफेद दागी के उपचार हेतु विचित्र प्रयोग।
• जमीन में कहाँ धन है अथवा कहाँ जल ?- जानने के विचित्र प्रयोग।
• विचित्र तिल विज्ञान।
• छाया पुरुष की विचित्रता।
• अग्नि पुराण के विचित्र मृयुंजय योग।
• गोमूत्र के विचित्र प्रयोग।
• विचित्र रोमन एवं चीनी यंत्र।
• विचित्र स्वरोदय विज्ञान।
• बिच्छू का विष उतारने की विचित्र जड़ी बूटी तथा और भी कई बातें जो आपकी जानकारियों के खजाने में वृद्धि करेंगी सभी कुछ इस पुस्तक में..............
• नेत्र रक्षार्थ विचित्र योग प्रयोग।
• सफेद दागी के उपचार हेतु विचित्र प्रयोग।
• जमीन में कहाँ धन है अथवा कहाँ जल ?- जानने के विचित्र प्रयोग।
• विचित्र तिल विज्ञान।
• छाया पुरुष की विचित्रता।
• अग्नि पुराण के विचित्र मृयुंजय योग।
• गोमूत्र के विचित्र प्रयोग।
• विचित्र रोमन एवं चीनी यंत्र।
• विचित्र स्वरोदय विज्ञान।
• बिच्छू का विष उतारने की विचित्र जड़ी बूटी तथा और भी कई बातें जो आपकी जानकारियों के खजाने में वृद्धि करेंगी सभी कुछ इस पुस्तक में..............
दो शब्द
ईश्वर की सृष्टि में हर रचना विचित्र है। कहीं एक छोटे से बीज से विशालकाय
वृक्ष का बनना विचित्र है तो कहीं एक अंडे में समाया हुआ उससे कई गुना
बड़ा जीव। एक ही जमीन में से पास-पास जन्म लेने वाले गुलाब और गेंदे के
पुष्प अलग-अलग प्रकार के होते हैं, उनमें सुगन्ध की अलग-अलग, क्या यह
विचित्रता नहीं है ? ईश्वर की अनन्त कृतियों में मानव भी विचित्र है और
ईश्वर की प्रेरणा से ही मानव ने ईश्वर की सृष्टि में न जाने कितनी
विचित्रताओं को जहाँ एक ओर खोजा है और आज भी निरन्तर उसकी खोज जारी है
वहीं दूसरी ओर न जाने कई विचित्रताओं का निर्माण करने में वह स्वयं भी सफल
हो सका है। ऐसी सैकड़ों बातों में से कुछ को आधार बनाकर यह पुस्तक लिखी गई
है इस आशा के साथ प्रबुद्ध पाठक इसे पढ़कर अवश्य ही लाभान्वित होंगे। इस
पुस्तक में कई विचित्र जड़ियों को, विचित्र प्रयोगों का एवं कई विचित्र
वस्तुओं का वर्णन है। इनमें से अनेक प्रयोगों को कई बार आजमाया जा चुका है
जबकि कुछ प्रयोग या तथ्य पाठकों की जानकारी के लिये एवं शोधार्थ लिखे गये
हैं। कई प्रयोग, इस पुस्तक में ऐसे भी हैं, जो सम्पन्न करने में सरल और हम
सभी के लिये परम उपयोगी एवं लाभदायक हैं।
पुस्तक में जहाँ-जहाँ भी मैंने किसी ग्रन्थ से कोई तथ्य उद्धृत किया है वहाँ उस ग्रन्थ का नाम अवश्य लिखा है। मैं उन सभी ग्रंथकारों का हृदय से आभार मानता हूँ साथ ही यदि कहीं कोई तथ्य के साथ यदि ऐसा न हुआ हो तो भी उनका मैं हृदय से आभारी हूँ। मैं, भगवती पॉकेट बुक्स के श्री राजीव जी अग्रवाल का भी हृदय से आभारी हूँ जिनका मूल सहयोग ही इस पुस्तक को आपके समक्ष ला सका है, मैं अपने अन्य सभी सहयोगियों का भी आभार मानता हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुझे इस पुस्तक के निर्माण में सहयोग प्रदान किया। विशेष रूप से मैं डॉ. सी.एम. सोलंकी, प्रो. एस.आर. उपाध्याय, श्री रवि गंगवाल, डॉ. बसंत कुमार जोशी, डॉ. एम.एल. गंगवाल, डॉ. हौसिलाप्रसाद पाण्डे, श्री दीपक मिश्रा, श्री ललित गोखरू तथा डॉ. प्रफुल्ल देव का आभारी हूँ जिन्होंने पुस्तक के लेखन के दौरान समय-समय पर विषय-वस्तु पर चर्चा हेतु अपना अमूल्य समय एवं सहयोग दिया।
अंत में आप सभी से निवेदन है कि पुस्तक के संबंध में आपके विचार एवं आलोचना का मुझे इंतजार रहेगा तथा इसके लिये मैं आपका आभारी रहूँगा।
पुस्तक में जहाँ-जहाँ भी मैंने किसी ग्रन्थ से कोई तथ्य उद्धृत किया है वहाँ उस ग्रन्थ का नाम अवश्य लिखा है। मैं उन सभी ग्रंथकारों का हृदय से आभार मानता हूँ साथ ही यदि कहीं कोई तथ्य के साथ यदि ऐसा न हुआ हो तो भी उनका मैं हृदय से आभारी हूँ। मैं, भगवती पॉकेट बुक्स के श्री राजीव जी अग्रवाल का भी हृदय से आभारी हूँ जिनका मूल सहयोग ही इस पुस्तक को आपके समक्ष ला सका है, मैं अपने अन्य सभी सहयोगियों का भी आभार मानता हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुझे इस पुस्तक के निर्माण में सहयोग प्रदान किया। विशेष रूप से मैं डॉ. सी.एम. सोलंकी, प्रो. एस.आर. उपाध्याय, श्री रवि गंगवाल, डॉ. बसंत कुमार जोशी, डॉ. एम.एल. गंगवाल, डॉ. हौसिलाप्रसाद पाण्डे, श्री दीपक मिश्रा, श्री ललित गोखरू तथा डॉ. प्रफुल्ल देव का आभारी हूँ जिन्होंने पुस्तक के लेखन के दौरान समय-समय पर विषय-वस्तु पर चर्चा हेतु अपना अमूल्य समय एवं सहयोग दिया।
अंत में आप सभी से निवेदन है कि पुस्तक के संबंध में आपके विचार एवं आलोचना का मुझे इंतजार रहेगा तथा इसके लिये मैं आपका आभारी रहूँगा।
उमेश पाण्डे
1
जमीन में जल का पता लगाने हेतु प्रयोग
यह प्रयोग अत्यन्त ही सरल है तथा इसके माध्यम से जमीन में कहां पानी है और
कहाँ नहीं यह ज्ञात किया जा सकता है। दरअसल, कुआँ अथवा ट्यूबवेल खुदवाते
समय हमारे मन में बरबस आ जाता है कि पता नहीं जहाँ कूप खनन करवाया जा रहा
है वहाँ पानी निकलेगा भी अथवा नहीं ? इस प्रयोग को ऐसे समय प्रयोग करना
हितकर है। इसके अन्तर्गत 4-6 मिट्टी के छोटे-छोटे कुल्हड़ ले आयें।
कुल्हड़ मिट्टी के बने हुए छोटे लोटे के समान रचना होती है। अब जिस दिन
पूर्णिमा हो उस दिन 4-6 ऐसे स्थान चुन लें जिनमें से किसी एक स्थान पर
ट्यूबवेल खुदवाना हो। तदुपरान्त प्रत्येक स्थान पर जल से पूर्ण भरकर एवं
उस समय मिट्टी का ही ढक्कन लगाकर, ईश्वर का ध्यानकर एक-एक कुल्हड़ रख दें।
रात्रि पर्यन्त उन्हें वहीं रखा देने दें। दूसरे दिन सुबह सबेरे (सूर्योदय
के समय) प्रत्येक कुल्हड़ का ढक्कन हटाकर देखें। जिस कुल्हड में जल पूर्ण
भरा हो उसके नीचे खुदाई करने पर जल निकलेगा तथा जो कुल्हड़ खाली हो उसके
नीचे जमीन में जल नहीं है-यह जानें। पुन: ऐसा कुल्हड़ जिसमें जल आधा भरा
होगा-उसके नीचे पानी गहराई पर मिलेगा। यह प्रयोग मुझे एक साधु ने बताया था
तथा इसकी सार्थकता को मैंने कई बार अजमाया है। इस प्रयोग में प्रयुक्त
कुल्हड़ कोरे होने चाहिए। अर्थात् वे नवीन होने चाहिये।
वैसे कई पौधे भी ऐसे होते हैं जिनके माध्यम से जमीन में जल के होने की जानकारी होती है। मसलन जहाँ जमीन पर नारियल अथवा बबूल अथवा खजूर के पेड़ होते हैं वहाँ जल होता है। जिस जमीन पर कैक्टस खूब फले फूलें वहाँ जल होता ही नहीं या फिर वह बहुत नीचे होता है। जमीन पर बैर के पेड़ होना भी जमीन में जल की सूचना देते हैं।
वैसे कई पौधे भी ऐसे होते हैं जिनके माध्यम से जमीन में जल के होने की जानकारी होती है। मसलन जहाँ जमीन पर नारियल अथवा बबूल अथवा खजूर के पेड़ होते हैं वहाँ जल होता है। जिस जमीन पर कैक्टस खूब फले फूलें वहाँ जल होता ही नहीं या फिर वह बहुत नीचे होता है। जमीन पर बैर के पेड़ होना भी जमीन में जल की सूचना देते हैं।
2
स्त्री-पुरुष में से कौन संतानोत्पत्ति के लिये सक्षम अथवा असक्षम है ?
कई स्त्री-पुरुष संतान न होने से दु:खी रहते हैं। वे डॉक्टरों के पास
जा-जाकर तमाम पैसा फूँकते रहते हैं यह प्रयोग ऐसे लोगों के लिये है तथा यह
प्रयोग यह स्पष्ट रूप से सिद्ध करने में सक्षम है कि संबंधित दम्पत्ति को
भविष्य में संतान होगी कि नहीं ? अत: किसी भी दम्पत्ति को एक बार यह
प्रयोग अवश्य ही करना चाहिये। इस प्रयोग में यह भी ज्ञात हो जाता है कि
स्त्री-पुरुष दोनों ही अथवा दोनों में से कौन संतानोत्पत्ति के लिये
अयोग्य है या फिर दोनों की संतान उत्पन्न करने में सर्वथा सक्षम हैं।
इस प्रयोग के अन्तर्गत मिट्टी के दो बड़े दीये लिये जाते हैं उन दीयों में सूखी काली मिट्टी भर दी जाती है। तदुपरान्त उनमें थोड़े-थोड़े चने (बीज) डाल दिये जाते हैं। बीजों को इस प्रकार डालें कि वे मिट्टी में अंदर दबे रहें।
अब सूर्योदय के समय अथवा इससे कुछ पूर्व स्त्री-पुरुष दोनों पृथक-पृथक एक-एक दीये में मूत्र त्याग करें। मूत्र का मध्य भाग ही उनमें गिरे। अर्थात् पहले थोड़ा-सा मूत्र संबंधित व्यक्ति बाहर त्याग करे तदुपरान्त कुछ मात्रा दीये में तथा अंत में मूत्र पुन: दीये से बाहर। स्त्री-पुरुष दोनों अपने-अपने दीये का ध्यान रखें। 2-3 रोज तक लगातार उन्हें अपने-अपने दीयों में इसी प्रकार मूत्र त्याग करना पड़ता है। 3 दिन के पश्चात् यदि दोनों ही दीयों के बीज अंकुरित हो जायें तो उन्हें जानना चाहिए कि वे दोनों ही संतान उत्पन्न करने में सक्षम हैं। इसके विपरीत जिसके दीये में बीज अंकुरित न हों वह संतानोत्पत्ति में सक्षम नहीं है, यह जानें अर्थात् उसमें दोष है।
इस प्रयोग के अन्तर्गत मिट्टी के दो बड़े दीये लिये जाते हैं उन दीयों में सूखी काली मिट्टी भर दी जाती है। तदुपरान्त उनमें थोड़े-थोड़े चने (बीज) डाल दिये जाते हैं। बीजों को इस प्रकार डालें कि वे मिट्टी में अंदर दबे रहें।
अब सूर्योदय के समय अथवा इससे कुछ पूर्व स्त्री-पुरुष दोनों पृथक-पृथक एक-एक दीये में मूत्र त्याग करें। मूत्र का मध्य भाग ही उनमें गिरे। अर्थात् पहले थोड़ा-सा मूत्र संबंधित व्यक्ति बाहर त्याग करे तदुपरान्त कुछ मात्रा दीये में तथा अंत में मूत्र पुन: दीये से बाहर। स्त्री-पुरुष दोनों अपने-अपने दीये का ध्यान रखें। 2-3 रोज तक लगातार उन्हें अपने-अपने दीयों में इसी प्रकार मूत्र त्याग करना पड़ता है। 3 दिन के पश्चात् यदि दोनों ही दीयों के बीज अंकुरित हो जायें तो उन्हें जानना चाहिए कि वे दोनों ही संतान उत्पन्न करने में सक्षम हैं। इसके विपरीत जिसके दीये में बीज अंकुरित न हों वह संतानोत्पत्ति में सक्षम नहीं है, यह जानें अर्थात् उसमें दोष है।
3
अपमार्ग के विचित्र प्रयोग
हमारे आस-पास पाये जाने वाले अनेक जंगली किन्तु चमत्कारिक एवं उपयोगी
पौधों में से एक है अपमार्ग। इस पौधे का वर्णन वेदों में भी प्राप्त होता
है। यह दो प्रकार का होता है, एक लाल या रक्त अपमार्ग और दूसरा श्वेत
अपमार्ग। रक्त अपमार्ग का तना लाल होता है। इसके पत्तों पर भी लाल निशान
होते हैं जबकि श्वेत अपमार्ग के तना और पत्ती सफेदी लिये हुए होते हैं।
श्वेत अपामार्ग को संस्कृत में अपामार्ग, खरमंजरी, मयूरिका, शिखरिका आदि नामों से जाना जाता है। जबकि रक्त अपमार्ग को संस्कृत में क्षुद्रापामार्ग, रक्तबिन्दु मयूरचूलिका रक्तापामार्ग, केशपर्णी आदि कहते हैं।
दोनों ही प्रकारों को हिन्दी में ओंगा, आँधी झाड़ा, लटजीरा, चिरचिटा, लपा आदि, पंजाबी में पुठकण्ठा, बंगला में अम्पाडक, फारसी में बासगोता, असमी में उबतीसथ, कन्नड़ में उट्टारानी, मलयालम में काटालेडी तथा लेटिन में ‘एकायरेंथस एस्पेरा’ (Achyranthes aspera) कहते हैं।
अपामार्ग एक शाकीय पौधा है। यह एक फुट से लेकर एक गज की ऊँचाई तक होता है। इसका तना अतिअल्प काष्ठीय होता है। इसकी पत्तियां सलंग किनारे और नुकीले सिरे वाली होती हैं। पौधे के शीर्ष पर एक लम्बी मंजरी विकसित होती है। सफेद अपामार्ग के तने तथा पत्तियों पर सफेदी लिए हुए हरापन होता है जबकि लाल अपामार्ग का तना कुछ लालपन लिये होता है, इसकी पत्तियों पर भी लाल निशान होता है।
श्वेत अपामार्ग को संस्कृत में अपामार्ग, खरमंजरी, मयूरिका, शिखरिका आदि नामों से जाना जाता है। जबकि रक्त अपमार्ग को संस्कृत में क्षुद्रापामार्ग, रक्तबिन्दु मयूरचूलिका रक्तापामार्ग, केशपर्णी आदि कहते हैं।
दोनों ही प्रकारों को हिन्दी में ओंगा, आँधी झाड़ा, लटजीरा, चिरचिटा, लपा आदि, पंजाबी में पुठकण्ठा, बंगला में अम्पाडक, फारसी में बासगोता, असमी में उबतीसथ, कन्नड़ में उट्टारानी, मलयालम में काटालेडी तथा लेटिन में ‘एकायरेंथस एस्पेरा’ (Achyranthes aspera) कहते हैं।
अपामार्ग एक शाकीय पौधा है। यह एक फुट से लेकर एक गज की ऊँचाई तक होता है। इसका तना अतिअल्प काष्ठीय होता है। इसकी पत्तियां सलंग किनारे और नुकीले सिरे वाली होती हैं। पौधे के शीर्ष पर एक लम्बी मंजरी विकसित होती है। सफेद अपामार्ग के तने तथा पत्तियों पर सफेदी लिए हुए हरापन होता है जबकि लाल अपामार्ग का तना कुछ लालपन लिये होता है, इसकी पत्तियों पर भी लाल निशान होता है।
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