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ज्योतिष सबके लिये

बी. एल. वत्स

प्रकाशक : भगवती पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6270
आईएसबीएन :81-7457-189-2

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ज्योतिष विज्ञान की जटिलताओं को छोड़ते हुए सरलतम ढंग से इस विषय को समझाने का प्रयत्न...

Jyotish Sabke Liye A Hindi Book by B.L.Vats

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भारतीय ज्योतिष एक प्रमुख वेदांग है। प्राचीन काल में यहाँ के ऋषि-मुनि इसी विज्ञान के आधार पर भविष्य दर्शन कर अपने जीवन को दैदीप्यमान बना लेते थे। जन्म कुण्डली के अध्ययन के लिए आज भी ‘भृगु संहिता’ एक प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है जिससे भूत, भविष्य और वर्तमान के साथ-साथ पूर्वजन्मों की भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। ज्योतिष जटिल विषय तो है ही इसका ज्ञान श्रमसाध्य भी है। इसी कारण ‘ज्योतिष सबके लिये’ में हमने जटिलताओं को छोड़ते हुए सरलतम ढंग से इस विषय को समझाने का प्रयत्न किया है जिससे साधारण पढ़ा-लिखा पाठक भी इसकी इतनी जानकारी अर्जित कर सके कि वह अपने भविष्य में तो झाँक ही सके अपने परिवार एवं आस-पड़ोस का भी भविष्य जान सके और अपने विपरीत समय को अनुकूल बना सके।
दरअसल सभी विपत्तियाँ हमारे ही कर्म-दोष के कारण आती हैं। ज्योतिष की सामान्य जानाकारी हो जाने पर हम शूली जैसे बड़े कर्म-दोष को काँटा चुभने जैसा हल्का और प्रभावहीन बना सकते हैं और एक सफल, आदर्श एवं प्रभावी जीवन जी सकते हैं।
ज्योतिष एक विज्ञान है। भारत में और विदेशों में भी इस विषय पर निरन्तर शोधकार्य चल रहा है। अब तो ज्योतिष की पत्रिकायें भी अंग्रेजी तथा हिन्दी भाषा में निकलने लगी हैं। कदाचित ही कोई समाचार-पत्र ऐसा हो जिसमें दैनिक ग्रह-गति एवं राशिफल न छपता हो। यह प्रवृत्ति इस विषय की लोकप्रियता ही दर्शाती है।
छोटे से बड़े प्रत्येक वर्ग के पाठकों में ज्योतिष ज्ञान की बड़ी ललक है किन्तु मार्गदर्शन के अभाव में वह इस ज्ञान से वंचित रह जाता है। इस पुस्तक में इस अभाव की पूर्ति का यथाशक्ति प्रयास किया गया है। आशा है इससे पाठकों की जिज्ञासा शान्त होगी और वे अपने कार्य-व्यापार, शिक्षा-प्रतियोगिता एवं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इसके आलोक से उन्नति के मार्ग की ओर अग्रसर हो सकेंगे।
भगवती प्रकाशन ने इसके प्रकाशन का दायित्व लेकर लोक-मंगल के इस सारस्वत-यज्ञ में अपनी आहुतियाँ समर्पित की हैं। पाण्डुलिपि तैयार करने में निशीथ वत्स ने बड़ी सहायता की है। लेखक इनका कृतज्ञ है। जिन कृतियों की इस पुस्तक में सहायता ली गई है उनके लेखकों तथा प्रकाशकों का लेखक कृतज्ञ है।
समस्याओं से घिरे वर्तमान परिवेश में यदि सुधी पाठकों को इससे अपेक्षित लाभ मिल सका तो लेखक अपने श्रम को सार्थक समझेगा।

कीरति भणिति भूत भल सोई।
सुर-सरि सम सब कहाँ हित होई।।

डॉ.बी.एल.वत्स

विषय प्रवेश


ज्योतिष को वेद चक्षु कहा गया है—

ज्योतिषमयनं चक्षुः।

ज्योतिष के बिना वेद की प्रवृत्ति ही असंभव है।

यथा शिखा मयूराणां नगानां मणयो यथा
तद्वद् वेदांग शास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्।

वेदांग ज्योतिष

प्रत्येक कार्य के पूर्व देशकाल का स्मरण करना चाहिये ऐसा भी निर्देश मिलता है—‘देशकालौ स्मृत्वा’।
आज देश, समाज एवं परिवार जिन विकृतियों से त्रस्त हैं, उन्हें सुख, शान्ति एवं संतुष्टि प्रदान करने के लिए ज्योतिष एक सर्वोपयोगी ज्ञान-धारा है

किन्तु इसका अधकचरा ज्ञान रखने वालों ने इसकी गरिमा को घटाया ही है। इससे लोगों का ज्योतिष में विश्वास क्षीण होता जा रहा है। ‘ज्योतिष सबके लिए’ का प्रणयन इसी उद्देश्य से किया जा रहा है कि इसके यथार्थ स्वरूप का जनसाधारण को परिचय देकर इसकी गरिमा की रक्षा की जाय और इसका लाभ हर वर्ग का पाठक उठा सके।

जो वेदों का भी चक्षु हो अर्थात् वेदों को समझने के लिए जिसका आश्रय लेना पड़े ऐसा ज्योतिष शास्त्र प्रत्येक के जीवन में संजीवनी का कार्य कर सकता है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आपको किसी ज्योतिषी के पास नहीं जाना पड़ेगा। आप अपना भूत, भविष्य वर्तमान इससे जान सकेंगे और यदि किसी पूर्व कर्म के दोषवश अथवा जानकारी के अभाव में आप दुख भोग रहे हैं तो उसे या तो पूर्णतः निरस्त कर सकते हैं या अपने ही प्रयत्नों द्वारा उसे इतना न्यून कर सकते हैं कि जहाँ शूली लगनी थी वहाँ काँटा ही लग कर रह जाय।

हर वर्ग का पाठक इस पुस्तक को पढ़कर इतना ज्ञान प्राप्त कर ले कि उसे मुहूर्त आदि दिखाने के लिए कहीं न जाना पड़े। अपनी जन्मकुण्डली स्वयं बना ले तथा उसका वाचन भी स्वयं कर ले। किसी भी प्रकार के प्रश्न का उत्तर प्रश्न-कुण्डली बनाकर ज्ञात कर ले। आई हुई आपदा को हटाने का प्रभावी उपाय ज्ञात कर ले और अपने जीवन को सुखी समृद्ध बना ले।
कृति की रचना में व्यावसायिक दृष्टिकोण न रखकर ‘सर्वजन हिताय’ तथा ‘सर्वजन सुखाय’ उद्देश्य रखा गया है।
दुरूह विषय होते हुए भी इसे सरलतम बनाने का प्रयत्न किया गया है। भारी विपदाओं से छुटकारा पाने के उपाय लिखे गए हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें व्यावहारिक पक्ष पर विशेष ध्यान दिया गया है। अनेक ऐसे शास्त्रीय विषयों को छोड़ दिया गया है जिनकी प्रामाणिकता व्यवहार की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। संसार भर में, जहाँ भी इसने विकास पाया, वहीं से इसे ग्रहण किया गया क्योंकि मूलरूप में तो ज्योतिष और भविष्य दर्शन की अवधारणा भारत से ही समग्र विश्व में फैली। यदि किसी विद्वान ने व्यावहारिक पक्ष पर बल देते हुए इस ज्ञान की परीक्षा की है तो उसे इस ग्रन्थ में स्थान देते समय कोई संकोच नहीं किया गया है।

जगे हम लगे जगाने विश्व,
लोक में फैला फिर आलोक।
व्योम-तम पुञ्ज हुआ सब नाश,
लता संसृति हो उठी अशोक।

प्रसाद

ऐसे ही एक विख्यात ज्योतिषी हुए हैं—कीरो। उन्होंने हस्त सामुद्रिक शास्त्र एवं अंक ज्योतिर्विज्ञान जैसे विषयों पर गम्भीर शोध किए और अपने जीवन का अधिकांश समय अनेक देशों की यात्रा में लगाया। वे भारत भी आए और यहाँ से जो कुछ उन्होंने सीखा उसका स्पष्टतः आभार व्यक्त किया। उनकी अधुनातन शोधों ने इस विज्ञान को विकसित किया।
कीरो ने लिखा है कि ‘वे हिन्दू महर्षि ही थे

जिन्होंने सबसे पहले यह गणना की थी कि वह घटना जिसमें समय चक्र में जब दिन-रात बराबर होते हैं प्रत्येक 25,827 वर्ष बाद घटित होती है। जब सूर्य विषुवत रेखा से गुजरता है तब दिन-रात बराबर समय के होते हैं। ऐसा 21 मार्च और 23 दिसम्बर को होता है। वैज्ञानिकों ने सैकड़ों वर्ष इस सम्बन्ध में आधुनिक वैज्ञानिक साधनों से अन्वेषण किया और इसकी पुष्टि की कि भारतीय ऋषि महर्षियों की गणना बिल्कुल ठीक थी।’
शापेनहावर ने एक बड़ी रोचक बात कही है

Man can do what he wills, but
he can not will what he wills.

अर्थात् मनुष्य अपनी इच्छानुसार कुछ भी कर सकता है, मगर यह इच्छा वह स्वयं की इच्छा से नहीं ठहरा सकता।
प्रो. बेवर ने कहा है—
‘अरब में ज्योतिष विज्ञान का विकास भारत से ही हुआ।’
कोलब्रुक ने कहा है कि—

‘भारतवर्ष ने ही चीन व अरब को,
ज्योतिष विद्या व अंकगणित दिया।’

इसी बात की पुष्टि मैथिलीशरण गुप्त ने ‘भारत भारती’ में की है—

कहते अरब वाले अभी तक,
हिन्दसा ही अंक से।

मैक्समुलर का कहना है—
‘मनुष्य के मस्तिष्क में जीवन के सबसे बड़े सिद्धान्त और सबसे बड़ी युक्तियाँ भारतवर्ष ने ही खोज निकाली हैं।’


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