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सावित्री

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6269
आईएसबीएन :81-7508-496-0

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सावित्री और सत्यवान की कथा महाभारत में आती है। यह उन विभिन्न कथाओं में है जो मार्कण्डेय मुनि ने पाण्डवों के उनके बनवास की अवधि में सुनायी थीं।

Savirti A Hindi Book by Anant Pai

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

 

सावित्री और सत्यवान की कथा महाभारत में आती है। यह उन विभिन्न कथाओं में है जो मार्कण्डेय मुनि ने पाण्डवों के उनके बनवास की अवधि में सुनायी थीं। पाण्डवों में सबसे बड़े भाई, युधिष्ठिर, पाँचों भाइयों की पत्नी, द्रौपदी के दुख से बहुत दुखी रहते थे क्योंकि द्रोपदी ने अपने पतियों के प्रेम-वश स्वयं ही अपने पर विपत्ति बुलायी थी। मार्कंडेय ने युधिष्ठिर को समझाया कि चाहे कैसी और कितनी भी विपत्तियाँ उन पर पड़ें, पतिव्रता नारियाँ अन्त में सब पर विजय प्राप्त करती हैं और प्रियजनों को विजयश्री दिलवाती हैं।

द्रौपदी की निष्ठा ने वैसे ही उन्हें आपत्तियों से मुक्ति दिलायी जैसे सती सावित्री ने अपने पति, सत्यवान के प्रति अपनी निष्ठा से अपने माता-पिता और सास-श्वसुर को सौभाग्य की प्राप्ति करायी और अपने लिए गया सुहाग प्राप्त किया। यह उसकी अडिग निष्ठा की ही शक्ति थी जिससे स्वयं यमराज भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहे और उन्हें सत्यवान को फिर से जीवन देना पड़ा।

 

सावित्री

 

प्राचीन काल में मद्र राज्य में अश्वपति राज्य करते थे। वे बड़े पुण्यात्मा थे।
उन दिनों की प्रथा के अनुसार उनके अनेक पत्नियाँ थी। उनके महल में सदा चहल पहल रहती थी।
किन्तु अश्वपति दुखी थे। उनके संतान न थी।
आप दुखी क्यों हैं, महाराज ?
मैंने देवताओं की इतनी पूजा-उपासना की, फिर भी सन्तान से वंचित हूँ।
महाराज, मैंने सुना है सवित्र देव सबकी कामनाएँ पूरी करते हैं !
सवित्र ? तो मैं उन्हीं की शरण जाऊँगा।


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