मनोरंजक कथाएँ >> ख़लीफा का न्याय ख़लीफा का न्यायस्वराज शुचि
|
7 पाठकों को प्रिय 216 पाठक हैं |
एक समय की बात है। मनु के पुत्र राजा शर्याति तीर्थ-यात्रा के लिए तैयार होकर अपने परिवार सहित महानदी नर्मदा के तट पर गये। उनके साथ उनकी बहुत बड़ी सेना भी थी।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
एक समय की बात है। मनु के पुत्र राजा शर्याति तीर्थ-यात्रा के लिए तैयार
होकर अपने परिवार सहित महानदी नर्मदा के तट पर गये। उनके साथ उनकी बहुत
बड़ी सेना भी थी। महानदी नर्मदा में स्नान करके उन्होंने अपने पितरों और
देवताओं का तर्पण किया तथा भगवान् श्रीविष्णु को प्रसन्न करने के लिए
ब्राह्मणों को आभूषण, सुन्दर वस्त्र, बर्तन आदि दान में दिये।
राजा के एक कन्या थी
जिसका नाम सुकन्या था। जो तपे हुए सोने के आभूषण पहना करती थी। उन आभूषणों में वह बहुत सुन्दर लगती थी। एक दिन वृक्षों से सुशोभित वाल्मीकि (मिट्टी का ढेर) देखा, जिसके भीतर एक ऐसा तेज दीख पड़ा जो निमेष और उन्मेष रहित था। उसमें खुलने-मिचने की क्रिया नहीं होती थी।
तब सुकन्या कौतुहलवश उसके पास गई और शलाकाओं से उसने उसे खरोचा। तब बड़ा आश्चर्य हुआ जब उस ढेर से खून की धार निकली। यह देखकर वह बहुत दुखित हुई। साथ ही पश्चाताप से उसका हृदय हाहाकर करने लगा। अपराध-बोध के कारण वह अपने माता-पिता से कुछ न कह सकी। मन-ही-मन शोक करने लगी।
राजा के एक कन्या थी
जिसका नाम सुकन्या था। जो तपे हुए सोने के आभूषण पहना करती थी। उन आभूषणों में वह बहुत सुन्दर लगती थी। एक दिन वृक्षों से सुशोभित वाल्मीकि (मिट्टी का ढेर) देखा, जिसके भीतर एक ऐसा तेज दीख पड़ा जो निमेष और उन्मेष रहित था। उसमें खुलने-मिचने की क्रिया नहीं होती थी।
तब सुकन्या कौतुहलवश उसके पास गई और शलाकाओं से उसने उसे खरोचा। तब बड़ा आश्चर्य हुआ जब उस ढेर से खून की धार निकली। यह देखकर वह बहुत दुखित हुई। साथ ही पश्चाताप से उसका हृदय हाहाकर करने लगा। अपराध-बोध के कारण वह अपने माता-पिता से कुछ न कह सकी। मन-ही-मन शोक करने लगी।
|
लोगों की राय
No reviews for this book