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नेहरू बाल पुस्तकालय >> नन्ही खो गयी

नन्ही खो गयी

कमल कांत कोनेर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :14
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6235
आईएसबीएन :81-237-4643-1

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एक छोटी सी चींटी थी। नाम था नन्ही। वह पहाड़ी की चोटी पर एक छेद में अपने परिवार के साथ रहती थी।...

Nanhi Kho Gayi A Hindi Book by Kamal kant Koner

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

नन्ही खो गयी

एक छोटी सी चींटी थी। नाम था नन्ही। वह पहाड़ी की चोटी पर एक छेद में अपने परिवार के साथ रहती थी।
एक सुबह नन्हीं की मां बाजार जा रही थी। उसने नन्ही को समझाया कि उसके बाजार से लौटने तक वह घर से बाहर न निकले।

लेकिन नन्ही बहुत देर तक अपने को रोक नहीं पायी। उसने छेद से बाहर झांका। धीरे-धीरे वह बाहर निकली। तब......उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह पूरा दिन इधर-उधर घूमती रही। वह इस नये संसार को देखना चाहती थी। वह बहुत खुश थी।

दोपहर हो चुकी थी। उसे मालूम ही नहीं हुआ कि वह घास का मैदान, फलों का बगीचा, और चरागाह पार करके बाग में पहुंच गयी है।
तब नन्ही थोड़ी देर के लिए रुकी। अब वह घर कैसे लौटेगी ? पहाड़ी तो बहुत-बहुत दूर है। वहां पहुंचने में घंटों लग जायेंगे।

और उसे लौटने का रास्ता भी मालूम नहीं था। लेकिन उसे सूरज डूबने से पहले लौटना ही होगा। मां उसकी राह देख रही होगी। वह गुस्सा हो जायेगी। परेशान होकर नन्ही एक पत्थर पर बैठकर रोने लगी।

वह थक गयी थी। उसे भूख भी लग रही थी। वह समय पर लौट भी नहीं पायी थी। एक रोयेंदार सुंडी पास से जा रही थी। उसे नन्ही पर तरस आया।

उसने नन्ही की मदद करनी चाही, लेकिन नन्ही को उसके रोयेंदार बालों से डर लग रहा था। रोयेंदार न कहा, ‘‘चिंता न करो। मेरी घोंघा दोस्त शैली तुम्हारी मदद करेगी।’’

 

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